उत्तरकाशी: सदियों से विश्वप्रसिद्ध गंगोत्री धाम हिंदुओ की आस्था का प्रतीक रहा है, लेकिन गंगोत्री धाम मंदिर के स्थापना की इतिहास की बात करें तो 18 वीं सदी में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने भागीरथी शिला के निकट काष्ठ से बने गंगोत्री मंदिर का निर्माण करवाया था, उसके बाद 20 वीं सदी में जयपुर नरेश राजा सवाई माधो सिंह द्वितीय ने वर्तमान मंदिर का निर्माण करवाया था. उस समय जयपुर नरेश और गंगा जी के पुजारी सेमवाल ब्राह्मणों के बीच एक अंग्रेज ने गंगोत्री मंदिर धाम निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी, जिसका नाम आज भी गंगोत्री धाम के पुरोहितों के अभिलेखों में दर्ज है.
गंगोत्री धाम में गंगा जी कि पूजा मुखबा के सेमवाल जाति के ब्राह्मण के द्वारा कि जाती हैं. गंगोत्री मंदिर धाम समिति के सचिव दीपक सेमवाल के अनुसार 18 वीं सदी में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा के काष्ठ से गंगोत्री मंदिर निर्माण के बाद 20 वीं सदी तक मंदिर जीर्णशीर्ण हो गया था, उसके बाद मुखबा गांव के सेमवाल जाती के पांच पुरोहित देश की यात्रा पर निकले कि चंदा एकत्रित कर गंगोत्री धाम के मंदिर का निर्माण करवाया जाएगा.
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जब वह हरिद्वार पहुंचे, तो वहां कुंभ में उनकी मुलाकात डी फ्रीजर नाम के अंग्रेज से हुई, जो कि उस समय अंग्रेजी शासन काल में टकनौर परगना की गंगोत्री प्रशासनिक पट्टी में कुछ वर्ष बिताकर वापस लौटा था, इसलिए वह गंगोत्री धाम के पुरोहितों से परिचित था. डी फ्रीजर से मुलाकात के बाद पंडों ने अपनी समस्या उन्हें नहीं बताई और और मंदिर निर्माण के विषय पर भी चर्चा कि. पुरोहितों की बात सुन डी फ्रीजर ने गंगोत्री के पुरोहितों को सुझाव दिया था कि क्यों न सब मिलकर कुंभ स्नान करने आए और जयपुर नरेश से मुलाकात कर मंदिर निर्माण का प्रस्ताव रखें.
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गंगोत्री धाम के पुरोहित डी फ्रीजर के साथ गंगाजल लेकर जयपुर नरेश के पास पहुंचे और उनसे गंगोत्री मंदिर निर्माण में मदद का आग्रह किया. पुरोहितों के आग्रह पर जयपुर नरेश ने मंदिर का निर्माण करवाया और अभिलेखों में दर्ज करवाया कि मंदिर निर्माण के बाद मंदिर के आधिपत्य और पूजा का अधिकार मुखबा गांव के सेमवाल ब्राह्मणों का रहेगा, तो वहीं इन अभिलेखों में डी फ्रीजर की मदद का उल्लेख भी उस समय के पुरोहितों ने दर्ज किया.