उत्तरकाशीः मोरी ब्लॉक के आराकोट बंगाण क्षेत्र में आई आपदा को एक साल हो चुके हैं. इसके बावजूद आपदा ग्रस्त क्षेत्र में सड़क, पेयजल, दूर संचार समेत अन्य व्यवस्थाएं अभी भी पटरी पर नहीं आ पाई है. जिसे लेकर ग्रामीणों ने बीते 18 अगस्त को काला दिवस मनाया था. ग्रामीणों के प्रदर्शन के बाद जिला प्रशासन की नींद टूटी है. रविवार को तहसीलदार और लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों ने आपदा प्रभावित क्षेत्रों का निरीक्षण किया. जिसे स्थानीय लोगों ने एक महज औपचारिकता बताया है.
गौर हो कि, बीते साल 18 अगस्त को आराकोट बंगाण के कोठीगाड़ क्षेत्र में बादल फटने से भारी तबाही मची थी. जिसमें 20 लोग काल के गाल में समा गए थे. जबकि, कई घर जमींदोज हो गए थे. चिंवा, टिकोची, आराकोट और सनैल कस्बों में भारी मात्रा में मलबा आ गया था. इस आपदा में कोठीगाड़ पट्टी के माकुड़ी, डगोली, बरनाली, मलाना, गोकुल, धारा, झोटाड़ी, किराणू, जागटा, चिंवा, मौंडा, ब्लावट आदि गांव में कृषि बागवानी तबाह हो गई थी. कास्तकारों की कई हेक्टेयर कृषि भूमि और सेब की फसल आपदा की भेंट चढ़ गई थी. कई मोटर मार्ग, पेयजल योजनाएं, पुल, अस्पताल, स्कूल आदि बह गए थे.
ये भी पढ़ेंः उत्तरकाशी: काला दिवस के रूप में मनाई गई आराकोट आपदा की बरसी
इतना ही नहीं राहत और बचाव में लगा एक हेलीकॉप्टर भी 21 अगस्त को हादसे का शिकार हो गया था. जिसमें पायलट समेत तीन लोगों की मौत हो गई थी. जबकि, 23 अगस्त को एक अन्य हेलीकॉप्टर को आपात लैंडिंग करनी पड़ी थी. जिससे वो भी क्षतिग्रस्त हो गई थी. हालांकि, इस आपात लैंड़िंग में कोई जनहानि नहीं हुई. वहीं, आपदा के चलते सेब की फसल तबाह हो गई थी. ग्रामीण सड़क मार्ग ध्वस्त होने से सेब को मंडियों तक समय पर नहीं पहुंचा पाए थे.
तत्कालीन जिलाधिकारी आशीष चौहान ने एक महीने तक आराकोट में कैंप कर युद्धस्तर पर क्षेत्र में कार्य कर वैकल्पिक व्यवस्था सुचारू की थी. इसके बाद क्षेत्र में कोई भी सुरक्षा और निर्माण कार्य न होने पर ग्रामीणों में भारी रोष है. वहीं, आपदा के एक साल पूरा होने पर बीते 18 अगस्त को स्थानीय लोगों ने काला दिवस मनाया था. अभी भी सड़कें खस्ताहाल स्थिति में है. जिससे ग्रामीणों को सेब की फसल को मंडियों तक पहुंचाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
ये भी पढ़ेंः पुरोला के ओसला गांव भारी भूस्खलन, जान जोखिम में डालकर आवाजाही कर रहे ग्रामीण
इस दौरान उन्होंने राज्य सरकार पर क्षेत्र की उपेक्षा का आरोप लगाया था. साथ ही ग्रामीणों ने लोनिवि, सिंचाई, जल संस्थान, ऊर्जा निगम आदि विभागों से क्षेत्र में आपदा के नाम पर खर्च की गई धनराशि का विवरण उपलब्ध कराने का प्रस्ताव पारित किया. प्रदेश सरकार से काश्तकारों का केसीसी ऋण माफ करने और आपदा पीड़ितों को सरकारी पट्टे देने की मांग की थी.
वहीं, आपदा प्रभावितों के काला दिवस मनाने के बाद प्रशासन की नींद टूटी है. इसी कड़ी में रविवार को मात्र तहसीलदार और लोक निर्माण विभाग के एई ही मौके पर पहुंचे. जिस पर स्थानीय लोगों ने नाराजगी जाहिर की. उनका कहना है कि अधिकारी मौके पर तो आए हैं, लेकिन जनप्रतिनिधियों और स्थानीय लोगों को किसी प्रकार की सूचना नहीं दी गई. अभी भी मात्र आपदा प्रभावित योजनाओं की प्रक्रिया फाइलों में ही दौड़ रही है. जबकि धरातल पर स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा है. साथ ही कहा कि जल्द शासन-प्रशासन की ओर से कार्रवाई नहीं हुई तो उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होना पड़ेगा.