उत्तरकाशी: उत्तरकाशी में एक शिव मंदिर ऐसा भी है, जहां शिव के साथ शनि देव की भी पूजा होती है. यह शिव मंदिर है जोशियाड़ा स्थित कालेश्वर महादेव का मंदिर. मान्यता है कि यहां सच्चे मन से कोई भक्त भगवान शिव और शनि की पूजा-अर्चना करता है, तो वह उसके सभी संकट दूर होते हैं. शनिवार को यहां दर्शन व पूजन के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.
कालेश्वर महादेव मंदिर की कहानी: उत्तरकाशी जिला मुख्यालय के जोशियाड़ा क्षेत्र में पौराणिक कालेश्वर महादेव मंदिर स्थित है. मंदिर के मुख्य पुजारी ब्रह्मानंद पुरी बताते हैं कि यहां कभी खेतों में हल लगाते समय शिवलिंग हल से टकराया था. जब पत्थर समझकर उसे निकालना चाहा तो वह और नीचे चला जाता. चार से साढ़े पांच फीट गहराई में जब गणेश, अंबा, कार्तिकेय, शिव परिवार की मूर्तियां मिलीं, तो वह शिवलिंग उससे नीचे नहीं गया. इससे नीचे खोदाई भी संभव नहीं हो पाई. जिसके बाद से यहां प्रकट स्वयंभू शिवलिंग को कालेश्वर महादेव के रूप में पूजा जाता है.
ऐसे पड़ा कालेश्वर महादेव नाम: कालेश्वर नाम पड़ने के पीछे बताया जाता है कि यहां पहले कभी काले सांपों का डेरा भी था. शिवलिंग पर भी काले-काले सांप देखे जाते थे. जिसके चलते इसका नाम कालेश्वर पड़ा. बताया जाता है कि मंदिर के आसपास ग्रामीण भी पूजा-अर्चना के बाद ही खेतीबाड़ी से जुड़ा काम शुरू करते हैं. पंडित अजय शास्त्री ने बताया कि ये मंदिर शनि, शिव के अधीन नवगृहों में से एक है. इस कारण यहां कलियुग में शनि देव की पूजा का प्रचलन बढ़ा है. जीवन में किसी भी तरह का संकट जैसे कालसर्प दोष, शनि की साढ़े साती या ढैय्या आदि में सच्चे मन से भक्त पूजा-अर्चना करते हैं तो शिव और शनि भक्तों के सभी संकट दूर करते हैं.
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तिल, तेल और वस्त्र दान का है महात्म्य: पंडित अजय शास्त्री बताते हैं कि सोमवार को श्रद्धालु काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन व पूजन करते हैं. वहीं शनिवार को कालेश्वर मंदिर में पूजा-अर्चन का विशेष महत्व है. यहां तिल, तेल और वस्त्र दान से शनि की पूजा की जाती है. इसके साथ काली दाल के साथ तुला दान व छाया दान भी किया जाता है.
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नोट: ये समाचार पौराणिक मान्यताओं और स्थानीय लोगों की आस्था पर आधारित है.