पुरोला: रवाईं घाटी में उगने वाला लाल चावल कोई आम चावल नहीं होता. ये चावल मधुमेह और कैंसर रोगियों के लिए रामबाण है. इस चावल को स्थानीय भाषा में चरधान कहा जाता है. चरधान चावल का सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने के साथ ही ब्लड प्रेशर भी दुरुस्त होता है. इस चावल के उपयोग को देखते हुए हिमाचल, दिल्ली सहित अन्य राज्यों में भी इसकी अच्छी खासी डिमांड है, लेकिन ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण लगातार इस फसल की जोत भूमि घट रही है. जिसका खामियाजा किसानों को उठाना पड़ रहा है.
रवांई घाटी में लाल कटोरे के नाम से प्रसिद्ध रामा सिराई व कमल सिराई पट्टी में व्यापक मात्रा में लाल चावल का उत्पादन किया जाता है. यहां उगाये जाने वाले लाल चावल में पौष्टिकता के साथ ही औषधीय गुण प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं. जिससे ये चावल स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होते हैं. ये चावल रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, कैंसर, उच्च रक्तचाप, मधुमेह,आदि के रोगियों के लिये फादेमंद हैं. वनस्पति विज्ञान के जानकारों का मानना है कि चरधान (स्थानीय लाल धान) में एंटी कैंसर रोधी मात्रा प्रयाप्त मात्रा में पाई जाती है.
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मध्य हिमालय के विशेष क्षेत्रों में उगाई जाने वाली ये फसल यहां की परम्परागत फसल है. जिससे किसानों की आमदनी जुड़ी है. लगातार बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग की समस्या ने रवांई घाटी के माथे पर भी बल ला दिये हैं. दरअसल, बढ़ती ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या के कारण लगातार लाल चावल की जोत भूमि घट रही है. जिसके कारण इसके उत्पादन में दिनों दिन कमी आ रही है. कम होते उत्पादन के कारण किसानों की आजीविका भी घटी है. जिसके कारण वे फसल के लिए लगाई गई लागत को भी पूरा नहीं कर पा रहे हैं.
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पुरोला क्षेत्र के 1057 हेक्टेयर भूमि पर उगाये जाने वाले लाल चावलों की पड़ोसी राज्य हिमाचल में खूब मांग है. रेड राइस (चरधान) के नाम से बिकने वाले लाल चावल की बाजार में कीमत 80 से 100 रुपये प्रति किलो है. मौसम में हो रहे बदलाव से किसान अब खेतों में अन्य फसलों को बो रहे हैं. जिससे पहाड़ का रामबाण कहे जाने वाले 'चरधान' (लाल धान)पर संकट के बादल मंडराते देखे जा सकते हैं.