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जान जोखिम में डालकर सफर करने को मजबूर लोग, सालों से टूटी है सड़क

पुरोला के सीमांत क्षेत्र लीवाडी फिताड़ी, राला, कासला, रेकचा, हरिपुर गांव की एकमात्र सड़क है. जो पिछले सात सालों से टूटी हुई हैं. वहीं, विभागीय आलाधिकारी की मिली भगत से सड़कों की लागत से अधिक मरम्मत के नाम पर खर्च कर दी गई है.

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Published : Oct 2, 2020, 11:01 PM IST

पुरोला: मोरी विकासखंड की अधिकांश सड़कें चलने लायक नहीं है. वहीं, इस विकासखंड की सड़कें विभागीय आला अधिकारियों के लिए कामधेनु बनी हुई है. कई सड़कें ऐसी हैं, जहां सड़कों की लागत से अधिक मरम्मत के नाम पर खर्च कर दी गई है. बावजूद इसके इन सड़कों पर सफर करना जान हथेली में रखने जैसा है.

खस्ताहाल सड़क

मोरी विकासखंड की सीमांत क्षेत्र लीवाडी फिताड़ी, राला, कासला, रेकचा, हरिपुर गांव की एकमात्र सड़क है. जिसका निर्माण कार्य 2013 में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत शुरू किया गया था. 7 साल बीत जाने के बावजूद भी यह सड़क अभी तक चलने लायक नहीं बन पाई है. इतना ही नहीं इन 7 सालों में दो विभाग बदल दिए गए हैं, लेकिन अभी तक एक स्थाई पुल के लिए जगह का चयन नहीं हुआ है.

ये भी पढ़ें: देहरादून: स्कूल खोले जाने पर निजी संचालकों ने उठाये सवाल, पत्र लिखकर जताई चिंता

घटिया निर्माण कार्य व धीमी प्रगति के चलते ठेकेदार को पीएमजीएसवाई ने ब्लैक लिस्टेड कर दिया था. अब उसी ब्लैक लिस्टेड ठेकेदार से कार्य करवाया जा रहा है. जिससे कार्य की धीमी प्रगति आज भी बदस्तूर बनी हुई है. जिसकी वजह से स्थानीय लोगों को जान जोखिम में डालकर सफर करना पड़ रहा है.

विभागीय आला अधिकारियों की ठेकेदारों के साथ सांठगांठ आमजन पर भारी पड़ता दिखाई दे रहा है, लेकिन सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है. चुनावी मौसम में विकास का नारा देकर नेता विधायक तो बन जाते हैं, लेकिन जीतने के बाद विधायक को इन लोगों के दर्द से कोई वास्ता नहीं होता.

पुरोला: मोरी विकासखंड की अधिकांश सड़कें चलने लायक नहीं है. वहीं, इस विकासखंड की सड़कें विभागीय आला अधिकारियों के लिए कामधेनु बनी हुई है. कई सड़कें ऐसी हैं, जहां सड़कों की लागत से अधिक मरम्मत के नाम पर खर्च कर दी गई है. बावजूद इसके इन सड़कों पर सफर करना जान हथेली में रखने जैसा है.

खस्ताहाल सड़क

मोरी विकासखंड की सीमांत क्षेत्र लीवाडी फिताड़ी, राला, कासला, रेकचा, हरिपुर गांव की एकमात्र सड़क है. जिसका निर्माण कार्य 2013 में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत शुरू किया गया था. 7 साल बीत जाने के बावजूद भी यह सड़क अभी तक चलने लायक नहीं बन पाई है. इतना ही नहीं इन 7 सालों में दो विभाग बदल दिए गए हैं, लेकिन अभी तक एक स्थाई पुल के लिए जगह का चयन नहीं हुआ है.

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घटिया निर्माण कार्य व धीमी प्रगति के चलते ठेकेदार को पीएमजीएसवाई ने ब्लैक लिस्टेड कर दिया था. अब उसी ब्लैक लिस्टेड ठेकेदार से कार्य करवाया जा रहा है. जिससे कार्य की धीमी प्रगति आज भी बदस्तूर बनी हुई है. जिसकी वजह से स्थानीय लोगों को जान जोखिम में डालकर सफर करना पड़ रहा है.

विभागीय आला अधिकारियों की ठेकेदारों के साथ सांठगांठ आमजन पर भारी पड़ता दिखाई दे रहा है, लेकिन सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है. चुनावी मौसम में विकास का नारा देकर नेता विधायक तो बन जाते हैं, लेकिन जीतने के बाद विधायक को इन लोगों के दर्द से कोई वास्ता नहीं होता.

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