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पर्यावरण संरक्षण के लिए 47 साल से पसीना बहा रहे प्रताप, 'वृक्ष मानव' के नाम से हुए मशहूर - Conservation of forests in Uttarkashi

उत्तरकाशी के 'पर्यावरण प्रेमी' प्रताप पोखरियाल ने जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण का अनूठा मॉडल पेश किया है. वृक्ष मानव के नाम से मशहूर प्रताप पोखरियाल पिछले 40 साल से वनों को आबाद करने का काम कर रहे हैं.

Conservation of forests in Uttarkashi
उत्तरकाशी प्रताप पोखरियाल
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Published : Aug 21, 2020, 10:09 AM IST

Updated : Aug 22, 2020, 3:23 PM IST

उत्तरकाशी: पर्यावरण संरक्षण के नाम पर देश में करोड़ों का बजट खर्च होता है. कई सेमिनार और गोष्ठियां आयोजित होती हैं. जगह-जगह हरेला पर्व मनाया जा रहा है, लेकिन ज्यादातर कार्यक्रम फोटोशूट और सोशल मीडिया तक ही सिमट कर रह जाते हैं. ऐसे में उत्तरकाशी के 'पर्यावरण प्रेमी' प्रताप पोखरियाल ने जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण का अनूठा मॉडल पेश किया है. ईटीवी भारत की विशेष रिपोर्ट..

'वृक्ष मानव' के नाम से हुए मशहूर.

साल 2003 के भूस्खलन में तबाह हो चुका वरुणावत पर्वत आज मिश्रित वन से भरा पड़ा है. जहां आपको सैकड़ों औषधीय पादप, हिमालयी वनस्पति और मैदानी क्षेत्रों की पौधे की प्रजातियां मिल जाएंगी. इसका श्रेय जाता है उत्तरकाशी के 63 वर्षीय 'वृक्ष मानव' प्रताप पोखरियाल को जो करीब 47 वर्षों से वनों को आबाद कर रहे हैं.

प्रताप पोखरियाल बताते हैं कि उन्होंने पिता श्याम पोखरियाल और मां रमावती देवी की प्रेरणा से साल 1973 में अपने पैतृक गांव डुंडा ब्लॉक के भेंत गांव में वनों के सरक्षंण का कार्य शुरू किया था. उन्होंने करीब 142 हेक्टयर भूमि पर 56 प्रजाति के वृक्ष लगाए. आज भेंत गांव में प्रताप पोखरियाल के लगाए गए जंगल ग्रामीणों के लिए वरदान साबित हो रहे हैं.

Conservation of forests in Uttarkashi
करीब 40 हेक्टेयर भूमि पर 200 प्रजाति की पौधे लगाए.

पोखरियाल ने बताया कि उन्होंने साल 1980 में उत्तरकाशी बस अड्डे पर मोटर मैकेनिक की दुकान खोली. लेकिन पर्यावरण से प्रेम होने के चलते उन्होंने यह दुकान जल्द ही बंद कर दी और वरुणावत पर्वत की तलहटी में जंगल बसाने निकल पड़े. लेकिन यह मेहनत साल 2003 में वरुणावत पर्वत पर हुए भूस्खलन में तबाह हो गई. भूस्खलन से हुई तबाही के बाद भी प्रताप पोखरियाल ने हार नहीं मानी. दोबारा मेहनत की और पिता के नाम पर करीब 40 हेक्टेयर भूमि पर 200 प्रजाति के पौधे फिर लगाए. पिता के नाम पर श्याम स्मृति मिश्रित वन शुरू किया.

पढ़ें- युवाओं के लिए मोबाइल फोन एडिक्शन है खतरनाक, जानें क्या कहते हैं मनोचिकित्सक

औषधीय पौधों की मदद से गंभीर बीमारियों का इलाज

प्रताप पोखरियाल बताते हैं कि कई सालों से मिश्रित वन में होने वाले औषधीय पादपों की मदद से स्थानीय लोगों की गंभीर बीमारियों का इलाज भी कर रहे हैं. साथ ही ग्रामीणों को वनों से जोड़कर स्वरोजगार के नए आयाम भी तैयार कर रहे हैं. पर्यावरण प्रेमी पोखरियाल का कहना है कि जब तक जीवन रहेगा वह इन जंगलों को सरंक्षित करते रहेंगे.

Conservation of forests in Uttarkashi
जैव विविधता और पर्यावरण सरक्षंण का अनूठा मॉडल किया पेश.

वनस्पति विज्ञान और शोधकर्ताओं के लिए यह वन ज्ञान का भंडार- वनस्पति विज्ञान विशेषज्ञ

वनस्पति विज्ञान विशेषज्ञ डॉ. शम्भू नौटियाल बताते हैं कि श्याम स्मृति मिश्रित वन में आज कई प्रकार के औषधीय वृक्ष हैं. रुद्राक्ष से लेकर काफल तक और मैदानी इलाकों में पाई जाने वाली वनस्पति भी इस मिश्रित वन में हैं. इसके साथ ही प्रताप पोखरियाल ने चेकडैम बनाकर एक मॉडल स्थापित किया है. आज जिले के महाविद्यालय के वनस्पति विज्ञान और शोधकर्ताओं के लिए यह मिश्रित वन किसी ज्ञान के भंडार से कम नहीं है. जहां शोध कर रहे सैकड़ों छात्र पौधों के बारे में जानने के लिए यहां पहुंचते हैं.

उत्तरकाशी: पर्यावरण संरक्षण के नाम पर देश में करोड़ों का बजट खर्च होता है. कई सेमिनार और गोष्ठियां आयोजित होती हैं. जगह-जगह हरेला पर्व मनाया जा रहा है, लेकिन ज्यादातर कार्यक्रम फोटोशूट और सोशल मीडिया तक ही सिमट कर रह जाते हैं. ऐसे में उत्तरकाशी के 'पर्यावरण प्रेमी' प्रताप पोखरियाल ने जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण का अनूठा मॉडल पेश किया है. ईटीवी भारत की विशेष रिपोर्ट..

'वृक्ष मानव' के नाम से हुए मशहूर.

साल 2003 के भूस्खलन में तबाह हो चुका वरुणावत पर्वत आज मिश्रित वन से भरा पड़ा है. जहां आपको सैकड़ों औषधीय पादप, हिमालयी वनस्पति और मैदानी क्षेत्रों की पौधे की प्रजातियां मिल जाएंगी. इसका श्रेय जाता है उत्तरकाशी के 63 वर्षीय 'वृक्ष मानव' प्रताप पोखरियाल को जो करीब 47 वर्षों से वनों को आबाद कर रहे हैं.

प्रताप पोखरियाल बताते हैं कि उन्होंने पिता श्याम पोखरियाल और मां रमावती देवी की प्रेरणा से साल 1973 में अपने पैतृक गांव डुंडा ब्लॉक के भेंत गांव में वनों के सरक्षंण का कार्य शुरू किया था. उन्होंने करीब 142 हेक्टयर भूमि पर 56 प्रजाति के वृक्ष लगाए. आज भेंत गांव में प्रताप पोखरियाल के लगाए गए जंगल ग्रामीणों के लिए वरदान साबित हो रहे हैं.

Conservation of forests in Uttarkashi
करीब 40 हेक्टेयर भूमि पर 200 प्रजाति की पौधे लगाए.

पोखरियाल ने बताया कि उन्होंने साल 1980 में उत्तरकाशी बस अड्डे पर मोटर मैकेनिक की दुकान खोली. लेकिन पर्यावरण से प्रेम होने के चलते उन्होंने यह दुकान जल्द ही बंद कर दी और वरुणावत पर्वत की तलहटी में जंगल बसाने निकल पड़े. लेकिन यह मेहनत साल 2003 में वरुणावत पर्वत पर हुए भूस्खलन में तबाह हो गई. भूस्खलन से हुई तबाही के बाद भी प्रताप पोखरियाल ने हार नहीं मानी. दोबारा मेहनत की और पिता के नाम पर करीब 40 हेक्टेयर भूमि पर 200 प्रजाति के पौधे फिर लगाए. पिता के नाम पर श्याम स्मृति मिश्रित वन शुरू किया.

पढ़ें- युवाओं के लिए मोबाइल फोन एडिक्शन है खतरनाक, जानें क्या कहते हैं मनोचिकित्सक

औषधीय पौधों की मदद से गंभीर बीमारियों का इलाज

प्रताप पोखरियाल बताते हैं कि कई सालों से मिश्रित वन में होने वाले औषधीय पादपों की मदद से स्थानीय लोगों की गंभीर बीमारियों का इलाज भी कर रहे हैं. साथ ही ग्रामीणों को वनों से जोड़कर स्वरोजगार के नए आयाम भी तैयार कर रहे हैं. पर्यावरण प्रेमी पोखरियाल का कहना है कि जब तक जीवन रहेगा वह इन जंगलों को सरंक्षित करते रहेंगे.

Conservation of forests in Uttarkashi
जैव विविधता और पर्यावरण सरक्षंण का अनूठा मॉडल किया पेश.

वनस्पति विज्ञान और शोधकर्ताओं के लिए यह वन ज्ञान का भंडार- वनस्पति विज्ञान विशेषज्ञ

वनस्पति विज्ञान विशेषज्ञ डॉ. शम्भू नौटियाल बताते हैं कि श्याम स्मृति मिश्रित वन में आज कई प्रकार के औषधीय वृक्ष हैं. रुद्राक्ष से लेकर काफल तक और मैदानी इलाकों में पाई जाने वाली वनस्पति भी इस मिश्रित वन में हैं. इसके साथ ही प्रताप पोखरियाल ने चेकडैम बनाकर एक मॉडल स्थापित किया है. आज जिले के महाविद्यालय के वनस्पति विज्ञान और शोधकर्ताओं के लिए यह मिश्रित वन किसी ज्ञान के भंडार से कम नहीं है. जहां शोध कर रहे सैकड़ों छात्र पौधों के बारे में जानने के लिए यहां पहुंचते हैं.

Last Updated : Aug 22, 2020, 3:23 PM IST
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