पुरोला: जिले में आजकल सेब की पैदावार काफी ज्यादा तादाद में हो रही है. बावजूद इसके ये सेब मार्केट में नहीं पहुंच पा रहे हैं. ऐसा ही एक मामला जिले के सुदूरवर्ती इलाके मोरी ब्लॉक के नुराणू गांव से सामने आया है. जहां ग्रामीण अपने सेब को लेकर उफनती रूपीन नदी को महज एक ट्रॉली के सहारे पार करने को मजबूर हैं. वहीं, ग्रामीणों का कहना है कि नदी पार करते वक्त ट्रॉली का संतुलन बिगड़ने का डर लगातार बना रहता है, अगर जरा सी चूक हुई तो सेब के साथ वे भी उफनती नदी में गिर जाएंगे.
बता दें कि मोरी ब्लॉक के नुराणू गांव में लगभग 80 परिवार रहते हैं. नुराणू गांव के लिए बना लकड़ी का पुल पिछले साल बरसात में बाढ़ की भेंट चढ़ गया था. जिसके बाद से ग्रामीण यहां पर पुल बनाने की मांग शासन-प्रशासन से करर रहें हैं. लेकिन कोई किसी ने उनकी सुध नहीं ली. हालांकि, लोक निर्माण विभाग ने ग्रामीणों की आवाजाही के लिए ट्रॉली की व्यवस्था कर दी थी. बावजूद ग्रामीणों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
पढ़ें: 'अभिव्यक्ति, समानता और स्वतंत्रता को लेकर बहुत याद आ रहे गांधी'
ग्रामीणों का कहना है कि ट्रॉली के सहारे उफनती रूपीन नदी को पार करने में संतुलन बिगड़ने का डर लगातार बना रहता है. अगर ट्रॉली का संतुलन जरा सा भी बिगड़ा तो सेब समेत वे भी नदी में उफनती नदी में गिर जाएंगे. ग्रामीणों ने कहा कि पुल न होने की वजह से बीमार व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कभी-कभी तो बीमार व्यक्ति बीच रास्ते में ही दम तोड़ देता. साथ ही कहा कि स्कूली बच्चे भी ट्रॉली की मदद से स्कूल जाते हैं.
नुराणू गांव के ग्रामिणों का कहना है कि पुल से गांव की दूरी सात किलोमीटर है. यहां तक सेब को लाने के लिए खच्चरों का इस्तेमाल किया जाता है. ट्रॉली को खींचने के लिए भी तीन लोगों की जरूरत पड़ती है. साथ ही ट्रॉली से नदी पार करने के भी अलग से भुगतान करना पड़ता है. वहीं, मंडी तक सेब पहुंचाने के लिए भी अलग से पैसे देने पड़ते हैं.