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सड़क न होने से डंडी-कंडी के सहारे चल रही जिंदगी, मीलों का सफर पैदल तय करना बनी नियति - patients not having ambulance

कांडाऊ गांव की जहां अस्पताल व संचार सेवाओं का आज भी अभाव है. जहां इस डिजिटल युग में भी ग्रामीणों को बीमार या गर्भवती महिला को पीठ पर या डंडी-कंडी के सहारे सड़क तक पहुंचाना पड़ता है

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कांडाऊ गांव में पीठ पर लादकर बीमार को पहुंचा रहे अस्पताल
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Published : Jul 13, 2020, 1:13 PM IST

उत्तरकाशी: देश को आजाद हुए कई दशक बीत चुके हैं और भले ही जमाना हाइटेक हो गया हो, लेकिन पहाड़ के दर्जनों गांव आज भी सड़क सविधा से वंचित हैं. जिससे ग्रामीणों को आज भी मीलों का सफर पैदल तय करना पड़ता है. अगर कोई बीमार हो जाए तो स्थिति और भी खराब हो जाती है. जिसे ग्रामीण डोली या पीठ पर लादकर मुख्य मार्ग तक पहुंचाते हैं. जहां एक ओर सरकार विकास का दावा करती है वहीं दूसरी ओर जमीनी हकीकत ठीक उलट है.

गौर हो कि कई बार समय पर उपचार न होने के कारण मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं. सरकार भले ही लाख दावे करती रहे कि पहाड़ के अंतिम गांव तक विकास पहुंच रहा है, लेकिन इन खोखले दावों की बानगी पहाड़ के आज भी कई गांव बयां कर रहे हैं. हम बात कर रहे हैं पहाड़ के नौगांव ब्लॉक के कांडाऊ गांव की जहां अस्पताल व संचार सेवाओं का आज भी अभाव है. जहां इस डिजिटल युग में भी ग्रामीणों को बीमार या गर्भवती महिला को पीठ पर या डंडी-कंडी के सहारे सड़क तक पहुंचाना पड़ता है. तो वहीं इस बीच क्या हो जाए, इसका किसी को पता नहीं होता.

पढ़ें- उत्तराखंड की 10 बड़ी खबरें @9AM

अब तक न जाने कितने ग्रामीण रास्ते में दम तोड़ चुके हैं. ग्रामीणों का कहना है कि अब मरीजों को पीठ पर लादकर सड़क तक पहुंचाने की नियति ही बनकर रह गई है. गांव से सड़क तक पहुंचाने के लिए घने जंगलों से होकर गुजरना पड़ता है. वहीं गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुंचाने के लिए डंडी-कंडी का सहारा लेना पड़ता है.

ग्रामीण मोहन सेमवाल ने बताया कि आजादी के कई दशक बीतने के बाद आज भी गांव में सड़क नहीं पहुंच पाई है. बीते रविवार को कंडाऊ गांव की विनीता देवी उम्र 28 वर्ष पत्नी राजकुमार की अचानक तबीयत खराब हो गई. अस्पताल ले जाने के लिए उनके पति और ग्रामीणों को करीब 6 किमी पीठ पर लाद तक किम्मी गांव तक पहुंचाया, उसके बाद वाहन से 10 किमी दूर अस्पताल पहुंचाया गया. वहीं, लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता एसके गर्ग का कहना है कि कंडाऊ की सड़क के निर्माण पर कोर्ट से स्टे लगाया गया है. उनका कहना है कि विभाग ने अपना पक्ष कोर्ट में रख दिया है, फैसला आने के बाद ही सड़क निर्माण की कार्रवाई की जाएगी.

उत्तरकाशी: देश को आजाद हुए कई दशक बीत चुके हैं और भले ही जमाना हाइटेक हो गया हो, लेकिन पहाड़ के दर्जनों गांव आज भी सड़क सविधा से वंचित हैं. जिससे ग्रामीणों को आज भी मीलों का सफर पैदल तय करना पड़ता है. अगर कोई बीमार हो जाए तो स्थिति और भी खराब हो जाती है. जिसे ग्रामीण डोली या पीठ पर लादकर मुख्य मार्ग तक पहुंचाते हैं. जहां एक ओर सरकार विकास का दावा करती है वहीं दूसरी ओर जमीनी हकीकत ठीक उलट है.

गौर हो कि कई बार समय पर उपचार न होने के कारण मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं. सरकार भले ही लाख दावे करती रहे कि पहाड़ के अंतिम गांव तक विकास पहुंच रहा है, लेकिन इन खोखले दावों की बानगी पहाड़ के आज भी कई गांव बयां कर रहे हैं. हम बात कर रहे हैं पहाड़ के नौगांव ब्लॉक के कांडाऊ गांव की जहां अस्पताल व संचार सेवाओं का आज भी अभाव है. जहां इस डिजिटल युग में भी ग्रामीणों को बीमार या गर्भवती महिला को पीठ पर या डंडी-कंडी के सहारे सड़क तक पहुंचाना पड़ता है. तो वहीं इस बीच क्या हो जाए, इसका किसी को पता नहीं होता.

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अब तक न जाने कितने ग्रामीण रास्ते में दम तोड़ चुके हैं. ग्रामीणों का कहना है कि अब मरीजों को पीठ पर लादकर सड़क तक पहुंचाने की नियति ही बनकर रह गई है. गांव से सड़क तक पहुंचाने के लिए घने जंगलों से होकर गुजरना पड़ता है. वहीं गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुंचाने के लिए डंडी-कंडी का सहारा लेना पड़ता है.

ग्रामीण मोहन सेमवाल ने बताया कि आजादी के कई दशक बीतने के बाद आज भी गांव में सड़क नहीं पहुंच पाई है. बीते रविवार को कंडाऊ गांव की विनीता देवी उम्र 28 वर्ष पत्नी राजकुमार की अचानक तबीयत खराब हो गई. अस्पताल ले जाने के लिए उनके पति और ग्रामीणों को करीब 6 किमी पीठ पर लाद तक किम्मी गांव तक पहुंचाया, उसके बाद वाहन से 10 किमी दूर अस्पताल पहुंचाया गया. वहीं, लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता एसके गर्ग का कहना है कि कंडाऊ की सड़क के निर्माण पर कोर्ट से स्टे लगाया गया है. उनका कहना है कि विभाग ने अपना पक्ष कोर्ट में रख दिया है, फैसला आने के बाद ही सड़क निर्माण की कार्रवाई की जाएगी.

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