उत्तरकाशी: भले ही सरकार लाख दावे करती हो, लेकिन पर्वतीय अंचलों में स्वास्थ्य सुविधा का हाल किसी से छुपा नहीं है. जिसकी स्याह हकीकत अकसर देखने को मिल ही जाती है. वर्तमान में डबल इंजन की सरकार से लोगों को काफी उम्मीदें थी, वहीं जमीनी हकीकत दावों से पर्दा हटा रही हैं.
गौर हो कि पहाड़ के अस्पतालों से हायर सेंटर रेफर मरीज एंबुलेंस बदलते-बदलते दम तोड़ देते हैं. इन मौतों के सही आंकड़े इसलिए सामने नहीं आते हैं. क्योंकि कौन मरीज कहां पर दम तोड़ दे, इसका कोई प्रमाण नहीं होता है. साथ ही रेफर मरीज हायर सेंटर तक सुरक्षित पहुंचता है या नहीं, इसकी भी कोई गारंटी नहीं है. बावजूद इस समस्या के समाधान के लिए आज तक कोई कारगर योजना नहीं बन पाई है. साथ ही शासन-प्रशासन को लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देने से कोई सरोकार नहीं है.
सूबे के नीति निर्धारकों की ओर से 108 जीवनदायिनी सेवा शुरू की गई है. जिससे कि पहाड़ के व्यक्ति को सही समय पर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया हो सकें. लेकिन इस जीवनदायिनी को एक सीमित सीमा में बांध कर लगातार लोगों के जीवन से खिलवाड़ किया जा रहा है. पहाड़ों के अस्पताल रेफर सेंटर के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं. यहां से रेफर होने के बाद 108 सेवा मात्र अपनी सीमित सीमा तक मरीज को छोड़ते हैं. उसके बाद दूसरी एंबुलेंस मरीज को लेने आती है और उसके बाद हायर सेंटर पहुंचने में मरीज को 4 से 5 एंबुलेंस बदलने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
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उत्तरकाशी जनपद की बात करें, तो आज भी यहां के मरीजों के लिए एंबुलेंस बदलना एक नियति बन गया है. इसमें भी हायर सेंटर तक जीवित पहुंचने की कोई गारंटी नहीं रहती है. जानकारी के अनुसार हाल ही में चिन्यालीसौड़ में एक नवजात ने एंबुलेंस बदलते-बदलते आखिरकार अस्पताल में दम तोड़ दिया. वहीं, कुछ माह पूर्व यमुना घाटी में भी एक मरीज को देहारादून में सड़क पर छोड़ने का वीडियो वायरल हुआ था. इसके बाद भी जिम्मेदारों की कुंभकरणीय नींद नहीं टूट रही है. वहीं, पहाड़ का जीवन जीवनदायिनी बदलते-बदलते दम तोड़ रहा है.