उत्तराकाशी: उत्तरकाशी के मुखबा गांव निवासी चित्रकार डॉ मनीष सेमवाल ने अपनी चित्रकला को पहाड़ी विरासत को संजोए रखने का माध्यम बनाया है. उन्होंने अपने गांव में पुरखों के बनाए पहाड़ी शैली के भवन की पेंटिंग तैयार की है. इसके साथ ही वह पहाड़ी आभूषण और वाद्य यंत्र आदि की पेंटिंग तैयार कर पहाड़ी लोककला और विरासत को संजोने का काम कर रहे हैं.
चित्रकला से विरासत सहेजने की कोशिश: राजकीय इंटर कॉलेज सौरा भटवाड़ी में सहायक अध्यापक 37 वर्षीय डॉ मनीष सेमवाल ने श्रीनगर गढ़वाल केंद्रीय विवि से जनपद उत्तरकाशी की रुपप्रद कला का विश्लेषाणात्मक अध्ययन विषय में पीएचडी की है. वह चित्रकला विषय में बीए व एमए की पढ़ाई के दौरान से ही पेंटिंग तैयार कर रहे हैं. अपने मुखबा गांव में पुरखों द्वारा तैयार पहाड़ी शैली के भवन को उन्होंने हूबहू कैनवास पर उकेरा है. डॉ मनीष सेमवाल बताते हैं कि विद्यालय से अवकाश के बाद मिलने वाले समय में उन्होंने ऑयल कलर से यह पेंटिंग तैयार की.
10 लाख में पेंटिंग खरीदने का ऑफर: डॉक्टर सेमवाल ने बताया कि उन्हें दो साल और सात महीने का समय इस पेंटिंग को बनाने में लगा. इस पेंटिंग को दिल्ली के व्यापारी ने भी दस लाख रुपए में खरीदने का ऑफर दिया है. हालांकि फिलहाल वह इसे बेचने को तैयार नहीं हैं. उन्होंने बताया कि इसके अलावा उन्होंने पहाड़ी वास्तुकला, आभूषण, वाद्य यंत्र आदि पर आधारित पेंटिंग्स तैयार की हैं. उनका कहना है कि पहाड़ी विरासत को संजोए रखने का चित्रकला से अच्छा कोई माध्यम नहीं है.
करीब 227 साल पुराना है भवन: चित्रकार डॉ मनीष सेमवाल ने अपने गांव में पुरखों द्वारा तैयार जिस पहाड़ी भवन की पेंटिंग बनाई है, वह करीब 227 साल पुराना है. अब इस तरह के भवन पहाड़ में गिने चुने ही रह गए हैं. डॉ मनीष ने बताया कि इस भवन को उनके पूर्वज नरोत्तम सेमवाल ने बताया था. उनके नाम पर उन्होंने पेंटिंग का नाम भी नरोत्तम द ग्रेट रखा है. जिसमें पहाड़ी काष्टकला के साथ पारंपरिक जनजीवन को बारीकी से दर्शाया गया है. डॉ मनीष सेमवाल ने इस पेंटिंग के लिए अपने भाई विकास सेमवाल और भाभी दीपिका सेमवाल और पत्नी सुरभि सेमवाल को सहयोग के लिए श्रेय दिया है.
सड़क हादसे में मौत को दी थी मात: वर्ष 2017 में गंगोत्री हाईवे पर हुई एक सड़क दुर्घटना में डॉ मनीष सेमवाल मौत को मात देकर जिंदा बचे थे. हादसे में दो लोगों की मौत हो गई थी. हालांकि इस हादसे से उबरने में उन्हें डेढ़ से दो साल का समय लगा और वह चित्रकला से भी दूर रहे थे.
ये भी पढ़ें: ऐसे शुरू हुआ था मोला राम का गढ़वाल स्कूल ऑफ आर्ट, औरंगजेब और दारा शिकोह से भी है कनेक्शन