उत्तरकाशीः मां गंगा की उत्सव डोली अपने शीतकालीन प्रवास स्थल मुखबा गांव से गंगोत्री धाम के लिए रवाना हो गई. पारंपरिक रीति-रिवाज और आर्मी बैंड की धुन के साथ मां गंगा की डोली को ग्रामीणों ने विदाई दी. मंगलवार यानी कल अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर वैदिक मंत्रोच्चार के साथ गंगोत्री धाम के कपाट खोल दिए जाएंगे.
सोमवार को शीतकालीन प्रवास मुखबा गांव में सुबह से ही मां गंगा की विदाई की तैयारियां शुरू हो गई थी. सुबह विशेष पूजा अर्चना और आरती के बाद तीर्थ पुरोहितों ने मां गंगा की उत्सव डोली को सजाया. इसके बाद तय मुहूर्त के अनुसार 12:15 पर मां गंगा की उत्सव डोली (Maa Ganga Utsav Doli) पारंपरिक वाद्य यंत्र ढोल व दमाऊं के साथ ही आर्मी के बैंड की धुन पर मुखबा से गंगोत्री धाम के लिए रवाना हुई.
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भैरों घाटी में करेगी रात्रि विश्रामः गंगा की डोली यात्रा में देश विदेश के यात्री, मंदिर समिति के पदाधिकारी, तीर्थ पुरोहितों समेत पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारी शामिल हुए. मार्कण्डेय पुरी स्थित दुर्गा मंदिर में पहुंचने के बाद मां गंगा के साथ तीर्थ पुरोहितों ने अल्प विश्राम किया. इसके बाद मुखबा के प्राचीन पैदल यात्रा पथ से होते हुए डोली शाम को भैरों घाटी पहुंचेगी.
सुबह 11 बजकर 15 मिनट पर खुलेंगे गंगोत्री धाम के कपाटः भैरों घाटी में रात्रि जागरण के साथ ही भंडारे एवं पूरी रात भजन कीर्तन किया जाएगा. वहीं, मंगलवार को तड़के सुबह डोली गंगोत्री धाम के लिए रवाना होगी. गंगोत्री मंदिर समिति के अध्यक्ष हरीश सेमवाल ने बताया कि मंगलवार को तड़के डोली गंगोत्री के लिए रवाना होगी. जहां विधिवत पूजा अर्चना और वैदिक मंत्रोचारण के साथ 11:15 बजे गंगोत्री धाम के कपाट (Gangotri Dham Kapat) श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे.
ग्रामीणों ने बेटी की तरह दी विदाईः उत्तरकाशी से 80 किमी दूर गंगोत्री राजमार्ग पर स्थित धराली से दो किमी की दूरी पर बसा मुखबा गांव मां गंगा का शीतकालीन प्रवास है. जहां गंगोत्री धाम के कपाट बंद हो जाने के बाद शीतकाल के दौरान मां गंगा के दर्शन किए जाते हैं. 6 महीने तक मां गंगा के प्रवास के दौरान मुखबा गांव का माहौल खुशियों से भरा रहता है.
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देश-विदेश के श्रद्धालु गंगा को मां के रूप में पूजते हैं. वहीं, मुखबा के लोग गंगा को बेटी की तरह गंगोत्री धाम के लिए विदा करते हैं. इसके लिए प्रवासी लोग शीतकाल के बाद अपने गांव पहुंचते हैं और बेटी की विदाई की तैयारियों में जुट जाते हैं. गंगा की उत्सव डोली समेत गंगा के मंदिर को फूल मालाओं से सजाया जाता है.
ग्रामीणों के लिए होता है भावुक पलः जब मां गंगा की डोली विदा होती है तो ग्रामीणों के लिए यह बहुत ही भावुक क्षण होता है. इस दौरान ऐसा प्रतीत होता है, जैसे गांव के हर घर से बेटी की विदाई हो रही हो. 6 महीने तक मुखबा में प्रवास करने के बाद मां गंगा सोमवार को अपने धाम गंगोत्री के लिए रवाना हुई तो इस दौरान ग्रामीण मां गंगा को डोली में बैठाकर महिलाएं आधे रास्ते तक छोड़ने आईं. जहां से नम आंखों से बेटी की तरह विदाई दी.
ग्रामीणों का कहना है कि पूरे गांव के लिए यह भावुक क्षण रहता है. इस दौरान ग्रामीण विभिन्न पकवानों से कलेऊ बनाकर कंडी में डोली के साथ रखते हैं. इन पकवानों में चावल के आटे के अरसे, रोट व पूरी आदि रहती हैं. गंगा को विदा करने के लिए गांव की महिलाएं भी आधे रास्ते भी आती हैं.
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