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उत्तरकाशी और मसूरी में तिब्बती समुदाय के नव वर्ष लोसर का आगाज, 3 दिन रहेगी धूम - जाड़ भोटिया जनजाति

उत्तरकाशी में जाड़ भोटिया जनजाति बहुल डुंडा गांव में लोसर का पर्व हर्षोल्लास के साथ शुरू हुआ. वहीं, मसूरी में तिब्बती और भोटिया जनजाति समुदाय का नये साल का पर्व लोसर धूमधाम से मनाया जा रहा है. तीन दिन तक चलने वाले इस पर्व को लेकर इस समुदाय के लोगों में खासा उत्साह देखा जा रहा है.

losar festival
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Published : Mar 3, 2022, 2:04 PM IST

उत्तरकाशी/मसूरी: नेलांग और जाड़ूंग गांव से विस्थापित होकर हर्षिल, बगोरी न डुंडा में बसे जाड़ भोटिया समुदाय के लोग लोसर पर्व को विशेष उत्साह व हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं. उत्तरकाशी में हर साल जाड़ भोटिया समुदाय के लोग बौद्ध पंचाग के अनुसार नए साल के स्वागत में लोसर पर्व को तीन दिन तक मनाते है. इस पर्व में दीपावली, दशहरा व आटे से खेली जाने वाली अनूठी होली भी देखने को मिलती है.

तीन दिनों तक मनाये जाने वाले इस पर्व के पहले दिन चीड़ के छिल्लों से बनी मशालें जलाकर ग्रामीणों द्वारा दीपावली मनाई गई. देर रात तक ग्रामीण झूमते नाचते नजर आए. मशालों को गांव के तिराहे पर विसर्जित कर तमाम बुराइयों के अंत की कामना वीरपुर डुंडा गांव के ग्रामीणों द्वारा की गई.

तीन दिन तक मनाया जाता है लोसर: आज से अब दो दिन तक जाड़ भोटिया समुदाय के ग्रामीणों द्वारा लोसर पर्व को मनाया जाएगा. ग्रामीणों की मानें तो हिंदुस्तान के सारे पर्व एक साथ अलग-अलग दिन लोसर पर्व में मनाये जाते हैं. बता दें कि, तिब्बती भाषा में ‘लो’ का मतलब नया और ‘सर’ का मतलब साल होता है. बौद्ध परंपराओं का पालन करने वाले तिब्बती, भूटानी समुदाय के लोग इस त्योहार को मनाते हैं.

मसूरी में लोसर पर्व की धूम: तिब्बती और भोटिया जनजाति समुदाय का नये साल का पर्व लोसर धूमधाम से मनाया जा रहा है. तीन दिनों तक चलने वाले इस पर्व को लेकर इस समुदाय के लोगों में खासा उत्साह देखा जा रहा है. पहले दिन तिब्बती समुदाय के लोगों ने बुद्ध मंदिर में पूजा अर्चना कर भगवान बुद्ध से विश्व शांति की कामना की.

दलाई हिल पर बांधी झंडी: इस मौके पर मसूरी में तिब्बती समुदाय के लोग सुबह के समय दलाई हिल पहुंचे. वहां पर उन्होंने पारंपरिक झण्डी बांधकर पूजा अर्चना की. साथ ही पुराने साल की विदाई और नए साल का जोरदार तरीके से स्वागत किया. तिब्बती कैलेंडर के अनुसार ये वर्ष के पहले महीने का पहला दिन होता है. विश्व में जहां कहीं भी बौद्ध लोग बसे हुए हैं वहां ये पर्व मनाया जाता है. आपको बता दें कि लोसर का अर्थ नया साल होता है.

वार्षिक बौद्धिक त्योहार है लोसर: नव वर्ष लोसर का इतिहास बताता है कि ये तिब्बत के नवें काजा पयूड गंगयाल के समय वार्षिक बौद्धिक त्योहार के रूप में मनाया जाता था. लेकिन एक अंतराल के बाद ये पारंपरिक फसली त्योहार में बदल गया. इस दौर में तिब्बत में खेत जुताई की कला विकसित हुई. साथ ही सिंचाई व्यवस्था और पुलों का विकास भी हुआ. जिसे बाद में ज्योतिषीय आधार देकर नव वर्ष के रूप में लोसर पर्व को मनाया जाने लगा.

नए साल का प्रतीक है लोसर: तिब्बती और भोटिया जनजाति समुदाय के लोगों ने बताया कि तिब्बतियों में एक आम कहावत है लोसर इज लोसर. जिसका अर्थ है नया साल नया काम. इस पर्व के मुख्य व्यंजनों में ताजा जौ का सत्तू, फेईमार ग्रोमां, ब्राससिल, लोफूड और छांग हैं. इस दिन घरों की साफ सफाई करते हैं. उन्होंने बताया कि रसोई की दीवारों पर एक या आठ शुभ प्रतीक बनाए जाते हैं.

बर्तनों के मुंह पर बांधते हैं ऊन के धागे: इसके साथ ही घरेलू बर्तनों के मुंह ऊन के धागों से बांध दिए जाते हैं. रोचक बात यह है कि इस दिन छोटी-मोटी दुर्घटनाओं को तिब्बती लोग शुभ मानते हैं. उन्होने बताया कि अपने घरों में यह समारोह समाप्त होने पर लोग तशीदेलेक कहते हुए पड़ोसियों के घरों में जाते हैं और लोसर की बधाई देते हैं. कुछ स्थानों पर यह त्योहार एक सप्ताह तक चलता है. पर आम तौर पर तीन दिन तक ही चलता है. कुछ लोग इस दिन शादी भी करते हैं.
पढ़ें: अल्मोड़ा: सांस्कृतिक नगरी में बैठकी होली की धूम, जम रही महफिलें

नेपाल और भूटान में भी मनाते हैं लोसर: लोसर तिब्बती भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ 'नया वर्ष' होता है. लोसर तिब्बत, नेपाल और भूटान का सबसे महत्वपूर्ण बौद्ध पर्व (त्योहार) है. भारत के असम और सिक्किम राज्यों में ये त्योहार विशेष तौर पर मनाया जाता है. लोसर तिब्बती बौद्ध धर्म में एक त्योहार है. इस त्योहार द्वारा बौद्ध एक तरह से नए साल का जश्न मनाते हैं.

आटे की होली है विशेषता: मान्यता है कि आज से भोटिया जनजाति का नया साल शुरू होता है. जिसे ये लोग आटे की होली खेल कर मनाते हैं. जिसके बाद ये सभी को शुभकामनाएं देते हैं. इस अवसर पर भोटिया समुदाय की महिलाएं पारंपरिक वेश भूषा धारण कर भगवान बुद्ध की पूजा करतीं हैं. जिसके बाद सभी लोग एक साथ पर जमा होकर इस त्योहार को विशेष रूप से मनाने के लिए विभिन्न प्रकार के पकवान बनाते हैं.

उत्तरकाशी/मसूरी: नेलांग और जाड़ूंग गांव से विस्थापित होकर हर्षिल, बगोरी न डुंडा में बसे जाड़ भोटिया समुदाय के लोग लोसर पर्व को विशेष उत्साह व हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं. उत्तरकाशी में हर साल जाड़ भोटिया समुदाय के लोग बौद्ध पंचाग के अनुसार नए साल के स्वागत में लोसर पर्व को तीन दिन तक मनाते है. इस पर्व में दीपावली, दशहरा व आटे से खेली जाने वाली अनूठी होली भी देखने को मिलती है.

तीन दिनों तक मनाये जाने वाले इस पर्व के पहले दिन चीड़ के छिल्लों से बनी मशालें जलाकर ग्रामीणों द्वारा दीपावली मनाई गई. देर रात तक ग्रामीण झूमते नाचते नजर आए. मशालों को गांव के तिराहे पर विसर्जित कर तमाम बुराइयों के अंत की कामना वीरपुर डुंडा गांव के ग्रामीणों द्वारा की गई.

तीन दिन तक मनाया जाता है लोसर: आज से अब दो दिन तक जाड़ भोटिया समुदाय के ग्रामीणों द्वारा लोसर पर्व को मनाया जाएगा. ग्रामीणों की मानें तो हिंदुस्तान के सारे पर्व एक साथ अलग-अलग दिन लोसर पर्व में मनाये जाते हैं. बता दें कि, तिब्बती भाषा में ‘लो’ का मतलब नया और ‘सर’ का मतलब साल होता है. बौद्ध परंपराओं का पालन करने वाले तिब्बती, भूटानी समुदाय के लोग इस त्योहार को मनाते हैं.

मसूरी में लोसर पर्व की धूम: तिब्बती और भोटिया जनजाति समुदाय का नये साल का पर्व लोसर धूमधाम से मनाया जा रहा है. तीन दिनों तक चलने वाले इस पर्व को लेकर इस समुदाय के लोगों में खासा उत्साह देखा जा रहा है. पहले दिन तिब्बती समुदाय के लोगों ने बुद्ध मंदिर में पूजा अर्चना कर भगवान बुद्ध से विश्व शांति की कामना की.

दलाई हिल पर बांधी झंडी: इस मौके पर मसूरी में तिब्बती समुदाय के लोग सुबह के समय दलाई हिल पहुंचे. वहां पर उन्होंने पारंपरिक झण्डी बांधकर पूजा अर्चना की. साथ ही पुराने साल की विदाई और नए साल का जोरदार तरीके से स्वागत किया. तिब्बती कैलेंडर के अनुसार ये वर्ष के पहले महीने का पहला दिन होता है. विश्व में जहां कहीं भी बौद्ध लोग बसे हुए हैं वहां ये पर्व मनाया जाता है. आपको बता दें कि लोसर का अर्थ नया साल होता है.

वार्षिक बौद्धिक त्योहार है लोसर: नव वर्ष लोसर का इतिहास बताता है कि ये तिब्बत के नवें काजा पयूड गंगयाल के समय वार्षिक बौद्धिक त्योहार के रूप में मनाया जाता था. लेकिन एक अंतराल के बाद ये पारंपरिक फसली त्योहार में बदल गया. इस दौर में तिब्बत में खेत जुताई की कला विकसित हुई. साथ ही सिंचाई व्यवस्था और पुलों का विकास भी हुआ. जिसे बाद में ज्योतिषीय आधार देकर नव वर्ष के रूप में लोसर पर्व को मनाया जाने लगा.

नए साल का प्रतीक है लोसर: तिब्बती और भोटिया जनजाति समुदाय के लोगों ने बताया कि तिब्बतियों में एक आम कहावत है लोसर इज लोसर. जिसका अर्थ है नया साल नया काम. इस पर्व के मुख्य व्यंजनों में ताजा जौ का सत्तू, फेईमार ग्रोमां, ब्राससिल, लोफूड और छांग हैं. इस दिन घरों की साफ सफाई करते हैं. उन्होंने बताया कि रसोई की दीवारों पर एक या आठ शुभ प्रतीक बनाए जाते हैं.

बर्तनों के मुंह पर बांधते हैं ऊन के धागे: इसके साथ ही घरेलू बर्तनों के मुंह ऊन के धागों से बांध दिए जाते हैं. रोचक बात यह है कि इस दिन छोटी-मोटी दुर्घटनाओं को तिब्बती लोग शुभ मानते हैं. उन्होने बताया कि अपने घरों में यह समारोह समाप्त होने पर लोग तशीदेलेक कहते हुए पड़ोसियों के घरों में जाते हैं और लोसर की बधाई देते हैं. कुछ स्थानों पर यह त्योहार एक सप्ताह तक चलता है. पर आम तौर पर तीन दिन तक ही चलता है. कुछ लोग इस दिन शादी भी करते हैं.
पढ़ें: अल्मोड़ा: सांस्कृतिक नगरी में बैठकी होली की धूम, जम रही महफिलें

नेपाल और भूटान में भी मनाते हैं लोसर: लोसर तिब्बती भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ 'नया वर्ष' होता है. लोसर तिब्बत, नेपाल और भूटान का सबसे महत्वपूर्ण बौद्ध पर्व (त्योहार) है. भारत के असम और सिक्किम राज्यों में ये त्योहार विशेष तौर पर मनाया जाता है. लोसर तिब्बती बौद्ध धर्म में एक त्योहार है. इस त्योहार द्वारा बौद्ध एक तरह से नए साल का जश्न मनाते हैं.

आटे की होली है विशेषता: मान्यता है कि आज से भोटिया जनजाति का नया साल शुरू होता है. जिसे ये लोग आटे की होली खेल कर मनाते हैं. जिसके बाद ये सभी को शुभकामनाएं देते हैं. इस अवसर पर भोटिया समुदाय की महिलाएं पारंपरिक वेश भूषा धारण कर भगवान बुद्ध की पूजा करतीं हैं. जिसके बाद सभी लोग एक साथ पर जमा होकर इस त्योहार को विशेष रूप से मनाने के लिए विभिन्न प्रकार के पकवान बनाते हैं.

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