उत्तरकाशी: उत्तराखंड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता. यहां सदियों से चली आ रही मान्यताएं आज भी जिंदा हैं. इसका एक उदाहरण वरुणावत पर्वत के शीर्ष पर बसे संग्राली गांव में देखने को मिलता है. यहां कंडार देवता का आदेश ही सर्वमान्य होता है. कंडार देवता (Significance of Kandar Devta) को ग्रामीण न्यायाधीश के तौर पर पूजते हैं. मान्यता है कि कंडार देवता ग्रामीणों व बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं की हर समस्या का समाधान करते है. यहां पंडित की पोथी, दवा और कोतवाल का डंडा भी काम नहीं आता है. कंडार देवता का आदेश ही सर्वमान्य है.
धूमधाम से मनाया गया कंडार देवता का मेला: वरुणावत पर्वत के शीर्ष पर बसे संग्राली गांव में एक दिवसीय भंडाणी मेले का आयोजन किया गया. इसमें ग्रामीणों ने पारंपरिक लोक नृत्य कर अपने आराध्य कंडार देवता से सुख, समृद्धि एवं खुशहाली की कामना की. सुबह से ही कंडार देवता मंदिर परिसर में धार्मिक अनुष्ठान के साथ भंडाणी मेले का शुभारंभ किया गया. इसमें संग्राली सहित पाटा, बग्याल गांव, गंगोरी, लक्षेश्वर, साल्ड, ज्ञाणजा आदि गांवों से ग्रामीण शामिल हुए.
इस दौरान श्रद्धालुओं ने देवता की डोली के साथ देर रात तक रासौं तांदी नृत्य किया. वहीं, दिनभर उत्सव मनाते हुए ग्रामीणों ने देवता से क्षेत्र की खुशहाली व सुख समृद्धि की कामना की. मेले के समापन पर पुजारियों ने कंडार देवता की मूर्ति को तीन दिन तक विश्राम के लिए कोठार में रख दिया.
वरुणावत पर्वत पर बसा है संग्राली गांव: उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 13 किमी. दूर वरुणावत पर्वत पर बसे संग्राली गांव में कंडार देवता का प्राचीन मंदिर आस्था का केंद्र के साथ एक न्यायालय भी है. इस न्यायालय में फैसले कंडार देवता की डोली सुनाती है. लोग यहां जन्मपत्री, विवाह, मुंडन, धार्मिक अनुष्ठान, जनेऊ, मकान बनाने का दिन सहित अन्य संस्कारों की तिथि तय करने के लिए पंडित की तलाश नहीं करते. कंडार देवता मंदिर के परिसर में ग्रामीण आपनी समस्यआों को लेकर आते हैं, जहां श्रद्धालु डोली को कंधे पर रख कंडार देवता का स्मरण करते हैं. इस दौरान डोली डोलने लगती है, जो ग्रामीणों की समस्याओं का समाधान करती है.
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कंडार देवता को ज्योति के तौर पर भी जाना जाता है. कंडार देवता ही जन्म कुंडली देखकर विवाह का तय कर देते हैं. कई ऐसे जोड़ों का विवाह भी कंडार देवता करवा चुके हैं, जिनकी जन्मपत्री को देखने के बाद पंडितों ने स्पष्ट कह दिया था कि विवाह हो ही नहीं सकता. यही नहीं बल्कि, आसपास के गांवों में जब कोई व्यक्ति बीमार हो जाता है तो उसे उपचार के लिए कंडार देवता के पास ले जाया जाता है. गांव वाले मानते हैं कि सिरर्दद, बुखार, दांत दर्द तो ऐसे दूर होता है, जैसे पहले रोगी को यह दर्द था ही नहीं.
आचार्य दिवाकर नैथानी ने बताया कि बाडाहाट क्षेत्र के आराध्य कंडार देवता का आदेश ग्रामीणों के लिए सर्वमान्य होता है, जो कंडार देवता की डोली बोलेगी वही ग्रामीणों को करना पड़ता है. यहां देवता के कहे अनुसार ही धार्मिक अनुष्ठान सहित अन्य काम किये जाते हैं. आचार्य ने कहा कि इस देवता के पास आसपास के ग्रामीणों सहित देश के अन्य भागों से भी लोग अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आते हैं.
ऐसे पहुंचे संग्राली गांव: कंडार देवता के दर्शन करने के लिए ऋषिकेश से 170 किलोमीटर व देहरादून से 140 किलोमीटर की सड़क मार्ग की दूरी तय कर उत्तरकाशी पहुंचा जाता है. उत्तरकाशी बस अड्डे से 13 किलोमीटर दूर संग्राली गांव के पास कंडार देवता का भव्य मंदिर है. यह मंदिर वर्षों पुराना है.