उत्तरकाशी: जाड़-भोटिया समुदाय बहुल क्षेत्र डुंडा में उद्योग विभाग का ग्रोथ सेंटर बनकर तैयार हो गया है. इससे ऊनी वस्त्र उद्योग को नई धार मिलने जा रही है. अभी तक डुंडा में ऊनी वस्त्र उद्योग हथकरघा व पारंपरिक हाथ की बुनाई पर आधारित है. लेकिन अब लगभग 1.87 करोड़ रुपए की लागत से बनकर तैयार हुए ग्रोथ सेंटर में ऊन की कार्डिंग, फिनिशिंग, स्प्रीनिंग आदि से संबंधित 17 अत्याधुनिक मशीनें स्थापित की गई हैं.
सीमांत जिले के हर्षिल, बगोरी व डुंडा गांवों में रहने वाले जाड़-भोटिया समुदाय के लोग पारंपरिक भेड़-बकरी पालन और ऊन उत्पादन उद्योग से जुड़े हुए हैं. इनमें भी डुंडा और बगोरी के मध्य मौसमी पलायन करने वाले सर्वाधिक 600 लोग इस उद्योग से जुड़े हैं, जो कि कुल 55 से 60 हजार किलो कच्ची ऊन हर साल उत्पादन करते हैं. लेकिन डुंडा में पिछले आठ सालों से संकल्प सामाजिक संस्था के कार्डिंग व वाशिंग प्लांट के अलावा सरकारी स्तर पर कोई प्लांट या ग्रोथ सेंटर बनाने के प्रयास नहीं हुए. इस कमी को देखते हुए यहां उद्योग विभाग ने वर्ष 2022 में ग्रोथ सेंटर निर्माण की कवायद शुरू की थी.
ग्रामीण निर्माण विभाग के माध्यम से 1.87 करोड़ की लागत से अत्याधुनिक ग्रोथ सेंटर का निर्माण पूरा हो गया है. इसमें कार्डिंग, फिनिशिंग, स्प्रीनिंग आदि से संबधित 17 मशीनें लगाई जा चुकी हैं. ग्रामीण निर्माण विभाग के ईई नितिन पांडेय ने बताया कि सेंटर में 17 मशीनें स्थापित कर दी गई हैं. एक मशीन का एक पार्ट आना शेष है. जिसके बाद इसका ट्रायल कर संबंधित एजेंसी को हस्तांतरित करने की कार्रवाई शुरू की जाएगी. जिला उद्योग केंद्र की महाप्रबंधक शैली डबराल ने कहा कि डुंडा में ग्रोथ सेंटर बनकर तैयार हो गया है. जिसके ट्रायल के बाद इसका उद्घाटन कराया जाएगा. इससे ऊनी वस्त्र उद्योग को नई गति मिलने की उम्मीद है.
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स्वयं सहायता समूह करेंगे संचालन: ग्रोथ सेंटर का संचालन सांची ग्राम संगठन व स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से होगा. सांची ग्राम संगठन की अध्यक्ष भागीरथी नेगी ने बताया कि इसमें नालंदा स्वयं सहायता समूह के साथ गंगा, नीलकंठ, बुद्ध, संगम, सरस्वती, हिमालय, मैत्री व भागीरथी आदि स्वयं सहायता से जुड़ी करीब 80 महिलाएं सहयोग करेंगी.
इनका होता है उत्पादन: डुंडा में हथकरद्या से तैयार ऊनी वस्त्रों में नेहरू जैकेट, कोट, पंखी, पागड़ा, मफलर, शॉल, स्टॉल, स्वेटर, टोपी, दस्तानें, जुराबें व पायजामा आदि तैयार किये जाते हैं. इसके अलावा कंबल और भोटिया दन (कालीन) का भी निर्माण होता है.
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