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जल्द खुलने जा रही विश्व की सबसे 'अद्भुत' गली, भारत-तिब्बत व्यापार की है गवाह

रोमांच के शौकीनों के लिए जल्द ही भारत-चीन सीमा पर स्थित ऐतिहासिक गरतांग गली खुलने जा रही है. गरतांग गली उत्तरकाशी के जाड़ गंगा घाटी में करीब 11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. साथ ही दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में शुमार है.

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गर्तांग गली
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Published : Mar 27, 2021, 10:12 AM IST

Updated : Mar 28, 2021, 7:14 AM IST

उत्तरकाशीः समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर भारत-चीन सीमा पर स्थित गरतांग गली का पुनर्निर्माण कार्य शुरू हो गया है. नायाब इंजीनियरिंग का नमूना और भारत-तिब्बत व्यापार का गवाह रहा दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में शुमार ये विश्व धरोहर गरतांग गली का जल्द ही पर्यटक फिर से दीदार कर सकेंगे. उत्तरकाशी जिले के जाड़ गंगा घाटी में स्थित सीढ़ीनुमा यह मार्ग दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में शामिल है. जो संरक्षण के अभाव में अपना अस्तित्व खो रहा था, लेकिन अब सरकार करीब 64 लाख रुपये की लागत से गरतांग गली का पुनर्निर्माण करा रही है, जिससे साहसिक पर्यटन को बढ़ावा मिल सके.

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ऐतिहासिक गरतांग गली.

दरअसल, लोक निर्माण विभाग की ओर से करीब 64 लाख रुपये लागत से 150 मीटर लंबी गरतांग गली का जीर्णोद्धार कराया जा रहा है. खराब हो चुकी लकड़ी और लोहे को बदलकर रास्ता बनाया जा रहा है. डीएम मयूर दीक्षित का कहना है कि भारत-तिब्बत व्यापार का जीता जागता गवाह रही गरतांग गली पर लोनिवि ने काम शुरू कर दिया है, जो आने वाले समय में एडवेंचर टूरिज्म और इतिहास के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण साबित होगा.

विश्व धरोहर गरतांग गली पर स्पेशल रिपोर्ट.

17वीं शताब्दी में पेशावर के पठानों ने चट्टान काटकर तैयार किया था रास्ता

17वीं शताब्दी (लगभग 300 साल पहले) पेशावर के पठानों ने समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी में हिमालय की खड़ी पहाड़ी को काटकर दुनिया का सबसे खतरनाक रास्ता तैयार किया था. कहा जाता है कि जाड़ समुदाय के एक सेठ ने व्यापारियों की मांग पर पेशावर के पठानों की मदद से गरतांग गली से एक सुगम मार्ग बनवाया था. करीब 150 मीटर लंबी लकड़ी से तैयार यह सीढ़ीनुमा गरतांग गली भारत-तिब्बत व्यापार की साक्षी रही है.

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धरोहर है ये गली

1962 से पूर्व भारत-तिब्बत के व्यापारी याक, घोड़ा-खच्चर एवं भेड़-बकरियों पर सामान लादकर इसी रास्ते से आते-जाते थे. गरतांग गली सबसे पुरानी व्यापारिक मार्ग हुआ करती थी. यहां से ऊन, गुड़ और मसाले वगैरह भेजे जाते थे. 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान गरतांग गली ने सेना को अंतरराष्ट्रीय सीमा तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी.

ये भी पढ़ेंः पेशावर के पठानों के लिए बनाई गई गड़तांग गली की सीढ़ियां बदहाल, ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षण की दरकार

गरतांग गली की सीढ़ियां आज की तकनीक को भी देती हैं चुनौती

गरतांग गली की सीढ़ियों को खड़ी चट्टान वाले हिस्से में लोहे की रॉड गाड़कर और उसके ऊपर लकड़ी बिछाकर रास्ता तैयार किया था. बेहद संकरा और जोखिम भरा यह रास्ता गरतांग गली के नाम से प्रसिद्ध हुआ. जो अपने आप में एक कारीगरी का एक नया नमूना था क्योंकि, गरतांग गली के ठीक नीचे 300 मीटर गहरी खाई है जबकि, नीचे जाड़ गंगा नदी भी बहती है.

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कारीगरी देखकर रह जाएंगे चकित.

पहाड़ पर उकेरा गया ये पुराना मार्ग आज भी लोगों के लिए रोमांच और हैरानी का सबब बना हुआ है. साल 1975 तक सेना भी इसका इस्तेमाल करती रही, लेकिन बाद में इसे बंद कर दिया गया. पिछले 46 वर्षों से गरतांग गली का उपयोग और रखरखाव न होने के कारण इसका अस्तित्व मिटता जा रहा है.

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व्यापार का पुराना मार्ग

भारत-तिब्बत व्यापार की गवाह गरतांग गली

1962 की भारत-चीन युद्ध से पहले व्यापारी याक, घोड़ा-खच्चर एवं भेड़-बकरियों पर सामान लादकर इसी रास्ते से आते-जाते थे. व्यापारी इसी रास्ते से ऊन, चमड़े से बने वस्त्र व नमक लेकर बाड़ाहाट पहुंचते थे. बाड़ाहाट का अर्थ है बड़ा बाजार. उस वक्त दूर-दूर से लोग बाड़ाहाट आते थे और सामान खरीदते थे. युद्ध के बाद इस मार्ग पर आवाजाही बंद हो गई, लेकिन सेना का आना-जाना जारी रहा. करीब दस साल बाद 1975 में सेना ने भी इस रास्ते का इस्तेमाल बंद कर दिया है. तब से लेकर इस रास्ते में सन्नाटा पसरा हुआ है.

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सेना का था महत्वपूर्ण मार्ग

सामरिक दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र है नेलांग घाटी

गरतांग गली भैरव घाटी से नेलांग को जोड़ने वाले पैदल मार्ग पर जाड़ गंगा घाटी में मौजूद है. वन्यजीव और वनस्पति के लिहाज से ये जगह काफी समृद्ध है. उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी चीन सीमा से लगी है. सीमा पर भारत की सुमला, मंडी, नीला पानी, त्रिपानी, पीडीए और जादूंग अंतिम चौकियां हैं.

नेलांग घाटी जाने के लिए इजाजत जरूरी

1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद बने हालात के मद्देनजर भारत सरकार ने उत्तरकाशी के इनर लाइन क्षेत्र में पर्यटकों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया था, तभी से नेलांग घाटी और जाडुंग गांव को खाली करवाकर वहां अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया था.

यहां के गांवों में रहने वाले लोगों को एक निश्चित प्रक्रिया पूरी करने के बाद साल में एक ही बार अपने देवी-देवताओं को पूजने के लिए जाने की इजाजत दी जाती रही है. इसके बाद भारत के आम लोगों को भी नेलांग घाटी तक जाने की इजाजत गृह मंत्रालय भारत सरकार ने 2015 में दे दी थी. हालांकि, विदेशियों पर प्रतिबंध बरकरार है.

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सामरिक दृष्टि से संवेदनशील.

ये भी पढ़ेंः भारत-तिब्बत व्यापार की गवाह इन हेरिटेज सीढ़ियों को संरक्षण की दरकार

गरतांग गली की सीढ़ियों के विकास के लिए खर्च हो चुके लाखों रुपये

गंगोत्री नेशनल पार्क की और गरतांग गली की सीढ़ियों के विकास के लिए लाखों की धनराशि खर्च की गई, लेकिन उसका प्रयोग मात्र खानापूर्ति के लिए किया गया. माना जा रहा था कि अगर यही स्थिति रही तो जिले की ये ऐतिहासिक धरोहर संरक्षण के अभाव में नष्ट हो जाएगी. इतना ही नहीं, देखरेख के अभाव में गरतांग गली की सीढ़ियां जर्जर हो चुकी थी, लेकिन अब सरकार ने साहसिक पर्यटन से जोड़ने और इसे संरक्षित करने के लिए गरतांग गली का जीर्णोद्धार करा रही है.

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गरतांग गली का जीर्णोधार.

इनर लाइन क्षेत्र में है गरतांग गली

गौर हो कि दूसरे देशों की सीमा के नजदीक स्थित वह क्षेत्र, जो सामरिक दृष्टि से महत्व रखता हो, उसे इनर लाइन घोषित किया जाता है. ऐसे क्षेत्रों में सिर्फ स्थानीय लोग ही प्रवेश कर सकते हैं. विदेशी सैलानियों को वहां जाने को इनर लाइन परमिट लेना होता है. इसमें भी वह तय सीमा तक ही इनर लाइन क्षेत्र में घूम सकते हैं, रात्रि विश्राम नहीं कर सकते. यही कारण रहा कि सामरिक दृष्टि से संवेदनशील होने के कारण इस क्षेत्र को इनर लाइन क्षेत्र घोषित किया गया है.

इनर लाइन से बाहर करने की मंत्री की मांग

पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखंड सरकार ने चीन सीमा से सटे उत्तरकाशी की नेलांग घाटी में स्थित गरतांग गली को इनर लाइन (प्रतिबंधित क्षेत्र) से बाहर करने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा था. पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने केंद्र से कहा था कि इनर लाइन से बाहर हो जाने के बाद जनजातीय क्षेत्र में पर्यटन को न सिर्फ बढ़ावा मिलेगा, बल्कि उस क्षेत्र का विकास भी होगा. इसके साथ ही सैलानी इन खूबसूरत वादियों का दीदार कर सकेंगे. हालांकि, अभी तक इस विषय पर केंद्र की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया है.

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गरतांग गली का जीर्णोधार.

ये भी पढ़ेंः भारत-तिब्बत व्यापार की गवाह इन हेरिटेज सीढ़ियों को संरक्षण की दरकार

64 लाख रुपये से हो रहा है गरतांग गली का पुनर्निर्माण

लोक निर्माण विभाग 64 लाख रुपये की लागत से इस 150 मीटर लंबी गरतांग गली का पुनर्निर्माण करा रहा है. अगर तय समय पर पुनर्निर्माण का कार्य पूरा हो जाता है तो जुलाई महीने से गरतांग गली में पर्यटक साहसिक रोमांच का लुत्फ उठा सकेंगे. गरतांग गली में कार्य के दौरान सभी प्रकार के सुरक्षा मानकों का ध्यान रखा जा रहा है. इसकी ऊंचाई के रिस्क को देखते हुए इस बात का विशेष ध्यान रखा जा रहा है कि इसके पुनर्निर्माण की गुणवत्ता सर्वश्रेष्ठ हो.

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गरतांग गली के जीर्णोधार में जुटे लोग.

नेलांग घाटी में रहते हैं दुर्लभ स्नो लेपर्ड और हिमायलन ब्लू शीप

गरतांग गली की इन सीढ़ियों से नेलांग घाटी का रोमांचक दृश्य दिखाई देता है. गंगोत्री नेशनल पार्क के रेंज ऑफिसर प्रताप सिंह पंवार की मानें तो यह क्षेत्र वनस्पति और वन्यजीवों के लिहाज से काफी समृद्ध है. यहां दुर्लभ वन्यजीव जैसे स्नो लेपर्ड और हिमालयन ब्लू शीप रहते हैं. जो कभी-कभार नजर आ जाते हैं.

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दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में शुमार गरतांग गली.

पर्यटकों की संख्या और टिकट की कीमत भी की जाएगी तय

गरतांग गली का पुनर्निर्माण कार्य पूरा होने के बाद इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया जाएगा, जिसमें पर्यटकों की संख्या भी निर्धारित की जाएगी. साथ ही टिकट की कीमत भी तय की जाएगी. हालांकि, बाकी औपचारिकताएं 50 फीसदी तक बहाली का काम होने के बाद की जाएगी. ऐसे में जल्द ही पर्यटक यहां करीब तीन सौ मीटर गहरी खाई के ऊपर खड़ी चट्टान से गुजरने वाली गरतांग गली पर रोमांच का लुत्फ उठा सकेंगे.

उत्तरकाशीः समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर भारत-चीन सीमा पर स्थित गरतांग गली का पुनर्निर्माण कार्य शुरू हो गया है. नायाब इंजीनियरिंग का नमूना और भारत-तिब्बत व्यापार का गवाह रहा दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में शुमार ये विश्व धरोहर गरतांग गली का जल्द ही पर्यटक फिर से दीदार कर सकेंगे. उत्तरकाशी जिले के जाड़ गंगा घाटी में स्थित सीढ़ीनुमा यह मार्ग दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में शामिल है. जो संरक्षण के अभाव में अपना अस्तित्व खो रहा था, लेकिन अब सरकार करीब 64 लाख रुपये की लागत से गरतांग गली का पुनर्निर्माण करा रही है, जिससे साहसिक पर्यटन को बढ़ावा मिल सके.

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ऐतिहासिक गरतांग गली.

दरअसल, लोक निर्माण विभाग की ओर से करीब 64 लाख रुपये लागत से 150 मीटर लंबी गरतांग गली का जीर्णोद्धार कराया जा रहा है. खराब हो चुकी लकड़ी और लोहे को बदलकर रास्ता बनाया जा रहा है. डीएम मयूर दीक्षित का कहना है कि भारत-तिब्बत व्यापार का जीता जागता गवाह रही गरतांग गली पर लोनिवि ने काम शुरू कर दिया है, जो आने वाले समय में एडवेंचर टूरिज्म और इतिहास के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण साबित होगा.

विश्व धरोहर गरतांग गली पर स्पेशल रिपोर्ट.

17वीं शताब्दी में पेशावर के पठानों ने चट्टान काटकर तैयार किया था रास्ता

17वीं शताब्दी (लगभग 300 साल पहले) पेशावर के पठानों ने समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी में हिमालय की खड़ी पहाड़ी को काटकर दुनिया का सबसे खतरनाक रास्ता तैयार किया था. कहा जाता है कि जाड़ समुदाय के एक सेठ ने व्यापारियों की मांग पर पेशावर के पठानों की मदद से गरतांग गली से एक सुगम मार्ग बनवाया था. करीब 150 मीटर लंबी लकड़ी से तैयार यह सीढ़ीनुमा गरतांग गली भारत-तिब्बत व्यापार की साक्षी रही है.

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धरोहर है ये गली

1962 से पूर्व भारत-तिब्बत के व्यापारी याक, घोड़ा-खच्चर एवं भेड़-बकरियों पर सामान लादकर इसी रास्ते से आते-जाते थे. गरतांग गली सबसे पुरानी व्यापारिक मार्ग हुआ करती थी. यहां से ऊन, गुड़ और मसाले वगैरह भेजे जाते थे. 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान गरतांग गली ने सेना को अंतरराष्ट्रीय सीमा तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी.

ये भी पढ़ेंः पेशावर के पठानों के लिए बनाई गई गड़तांग गली की सीढ़ियां बदहाल, ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षण की दरकार

गरतांग गली की सीढ़ियां आज की तकनीक को भी देती हैं चुनौती

गरतांग गली की सीढ़ियों को खड़ी चट्टान वाले हिस्से में लोहे की रॉड गाड़कर और उसके ऊपर लकड़ी बिछाकर रास्ता तैयार किया था. बेहद संकरा और जोखिम भरा यह रास्ता गरतांग गली के नाम से प्रसिद्ध हुआ. जो अपने आप में एक कारीगरी का एक नया नमूना था क्योंकि, गरतांग गली के ठीक नीचे 300 मीटर गहरी खाई है जबकि, नीचे जाड़ गंगा नदी भी बहती है.

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कारीगरी देखकर रह जाएंगे चकित.

पहाड़ पर उकेरा गया ये पुराना मार्ग आज भी लोगों के लिए रोमांच और हैरानी का सबब बना हुआ है. साल 1975 तक सेना भी इसका इस्तेमाल करती रही, लेकिन बाद में इसे बंद कर दिया गया. पिछले 46 वर्षों से गरतांग गली का उपयोग और रखरखाव न होने के कारण इसका अस्तित्व मिटता जा रहा है.

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व्यापार का पुराना मार्ग

भारत-तिब्बत व्यापार की गवाह गरतांग गली

1962 की भारत-चीन युद्ध से पहले व्यापारी याक, घोड़ा-खच्चर एवं भेड़-बकरियों पर सामान लादकर इसी रास्ते से आते-जाते थे. व्यापारी इसी रास्ते से ऊन, चमड़े से बने वस्त्र व नमक लेकर बाड़ाहाट पहुंचते थे. बाड़ाहाट का अर्थ है बड़ा बाजार. उस वक्त दूर-दूर से लोग बाड़ाहाट आते थे और सामान खरीदते थे. युद्ध के बाद इस मार्ग पर आवाजाही बंद हो गई, लेकिन सेना का आना-जाना जारी रहा. करीब दस साल बाद 1975 में सेना ने भी इस रास्ते का इस्तेमाल बंद कर दिया है. तब से लेकर इस रास्ते में सन्नाटा पसरा हुआ है.

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सेना का था महत्वपूर्ण मार्ग

सामरिक दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र है नेलांग घाटी

गरतांग गली भैरव घाटी से नेलांग को जोड़ने वाले पैदल मार्ग पर जाड़ गंगा घाटी में मौजूद है. वन्यजीव और वनस्पति के लिहाज से ये जगह काफी समृद्ध है. उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी चीन सीमा से लगी है. सीमा पर भारत की सुमला, मंडी, नीला पानी, त्रिपानी, पीडीए और जादूंग अंतिम चौकियां हैं.

नेलांग घाटी जाने के लिए इजाजत जरूरी

1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद बने हालात के मद्देनजर भारत सरकार ने उत्तरकाशी के इनर लाइन क्षेत्र में पर्यटकों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया था, तभी से नेलांग घाटी और जाडुंग गांव को खाली करवाकर वहां अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया था.

यहां के गांवों में रहने वाले लोगों को एक निश्चित प्रक्रिया पूरी करने के बाद साल में एक ही बार अपने देवी-देवताओं को पूजने के लिए जाने की इजाजत दी जाती रही है. इसके बाद भारत के आम लोगों को भी नेलांग घाटी तक जाने की इजाजत गृह मंत्रालय भारत सरकार ने 2015 में दे दी थी. हालांकि, विदेशियों पर प्रतिबंध बरकरार है.

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सामरिक दृष्टि से संवेदनशील.

ये भी पढ़ेंः भारत-तिब्बत व्यापार की गवाह इन हेरिटेज सीढ़ियों को संरक्षण की दरकार

गरतांग गली की सीढ़ियों के विकास के लिए खर्च हो चुके लाखों रुपये

गंगोत्री नेशनल पार्क की और गरतांग गली की सीढ़ियों के विकास के लिए लाखों की धनराशि खर्च की गई, लेकिन उसका प्रयोग मात्र खानापूर्ति के लिए किया गया. माना जा रहा था कि अगर यही स्थिति रही तो जिले की ये ऐतिहासिक धरोहर संरक्षण के अभाव में नष्ट हो जाएगी. इतना ही नहीं, देखरेख के अभाव में गरतांग गली की सीढ़ियां जर्जर हो चुकी थी, लेकिन अब सरकार ने साहसिक पर्यटन से जोड़ने और इसे संरक्षित करने के लिए गरतांग गली का जीर्णोद्धार करा रही है.

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गरतांग गली का जीर्णोधार.

इनर लाइन क्षेत्र में है गरतांग गली

गौर हो कि दूसरे देशों की सीमा के नजदीक स्थित वह क्षेत्र, जो सामरिक दृष्टि से महत्व रखता हो, उसे इनर लाइन घोषित किया जाता है. ऐसे क्षेत्रों में सिर्फ स्थानीय लोग ही प्रवेश कर सकते हैं. विदेशी सैलानियों को वहां जाने को इनर लाइन परमिट लेना होता है. इसमें भी वह तय सीमा तक ही इनर लाइन क्षेत्र में घूम सकते हैं, रात्रि विश्राम नहीं कर सकते. यही कारण रहा कि सामरिक दृष्टि से संवेदनशील होने के कारण इस क्षेत्र को इनर लाइन क्षेत्र घोषित किया गया है.

इनर लाइन से बाहर करने की मंत्री की मांग

पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखंड सरकार ने चीन सीमा से सटे उत्तरकाशी की नेलांग घाटी में स्थित गरतांग गली को इनर लाइन (प्रतिबंधित क्षेत्र) से बाहर करने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा था. पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने केंद्र से कहा था कि इनर लाइन से बाहर हो जाने के बाद जनजातीय क्षेत्र में पर्यटन को न सिर्फ बढ़ावा मिलेगा, बल्कि उस क्षेत्र का विकास भी होगा. इसके साथ ही सैलानी इन खूबसूरत वादियों का दीदार कर सकेंगे. हालांकि, अभी तक इस विषय पर केंद्र की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया है.

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गरतांग गली का जीर्णोधार.

ये भी पढ़ेंः भारत-तिब्बत व्यापार की गवाह इन हेरिटेज सीढ़ियों को संरक्षण की दरकार

64 लाख रुपये से हो रहा है गरतांग गली का पुनर्निर्माण

लोक निर्माण विभाग 64 लाख रुपये की लागत से इस 150 मीटर लंबी गरतांग गली का पुनर्निर्माण करा रहा है. अगर तय समय पर पुनर्निर्माण का कार्य पूरा हो जाता है तो जुलाई महीने से गरतांग गली में पर्यटक साहसिक रोमांच का लुत्फ उठा सकेंगे. गरतांग गली में कार्य के दौरान सभी प्रकार के सुरक्षा मानकों का ध्यान रखा जा रहा है. इसकी ऊंचाई के रिस्क को देखते हुए इस बात का विशेष ध्यान रखा जा रहा है कि इसके पुनर्निर्माण की गुणवत्ता सर्वश्रेष्ठ हो.

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गरतांग गली के जीर्णोधार में जुटे लोग.

नेलांग घाटी में रहते हैं दुर्लभ स्नो लेपर्ड और हिमायलन ब्लू शीप

गरतांग गली की इन सीढ़ियों से नेलांग घाटी का रोमांचक दृश्य दिखाई देता है. गंगोत्री नेशनल पार्क के रेंज ऑफिसर प्रताप सिंह पंवार की मानें तो यह क्षेत्र वनस्पति और वन्यजीवों के लिहाज से काफी समृद्ध है. यहां दुर्लभ वन्यजीव जैसे स्नो लेपर्ड और हिमालयन ब्लू शीप रहते हैं. जो कभी-कभार नजर आ जाते हैं.

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दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में शुमार गरतांग गली.

पर्यटकों की संख्या और टिकट की कीमत भी की जाएगी तय

गरतांग गली का पुनर्निर्माण कार्य पूरा होने के बाद इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया जाएगा, जिसमें पर्यटकों की संख्या भी निर्धारित की जाएगी. साथ ही टिकट की कीमत भी तय की जाएगी. हालांकि, बाकी औपचारिकताएं 50 फीसदी तक बहाली का काम होने के बाद की जाएगी. ऐसे में जल्द ही पर्यटक यहां करीब तीन सौ मीटर गहरी खाई के ऊपर खड़ी चट्टान से गुजरने वाली गरतांग गली पर रोमांच का लुत्फ उठा सकेंगे.

Last Updated : Mar 28, 2021, 7:14 AM IST
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