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गंगा विश्व धरोहर मंच ने किया वृक्षारोपण, पिरूल इकठ्ठा कर पर्यावरण संरक्षण का दिया संदेश - Uttarkashi news

उत्तरकाशी में गंगा विश्व धरोहर मंच की ओर से हिमालय प्लांट बैंक श्याम स्मृति वन में वृक्षारोपण किया गया. इसके साथ ही वरुणावत पर जाकर चीड़ की पत्तियों को इकठ्ठा कर जमीन में आग नियंत्रण के लिए पानी संग्रहण के लिए छोटे-छोटे गड्डे भी खोदे गए.

tree planting
वृक्षारोपण
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Published : Mar 24, 2022, 2:14 PM IST

उत्तरकाशी: गंगा विश्व धरोहर मंच की ओर से हिमालय प्लांट बैंक श्याम स्मृति वन में वृक्षारोपण किया गया. इसके साथ ही वरुणावत पर जाकर चीड़ की पत्तियों को इकठ्ठा कर जमीन में आग नियंत्रण के लिए पानी संग्रहण के लिए छोटे-छोटे गड्डे भी खोदे गए. इस अवसर पर संस्कृत महाविद्यालय व पीजी कॉलेज के राष्ट्रीय सेवा योजना ने गंगा क्लब के स्वयंसेवियों के साथ संवाद भी किया.

इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि वनों में आग लगने से वनस्पतियों के साथ-साथ वन्य जीवों को भी नुकसान होता है. कई दुर्लभ प्राणि इस आग में झुलस कर दम तोड़ देते हैं. इनमें जमीन पर रेंगने वाले छोटे जीवों व पक्षियों की संख्या अधिक होती है. वनाग्नि के कारण आसपास के संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र और पर्यावरण पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है, इसलिए इसकी रोकथाम के लिए व्यापक स्तर पर सामुदायिक भागीदारी के साथ स्थानीय लोगों और वन विभाग के बीच सामंजस्य, प्रकृति और पर्यावरण के प्रति लोगों में व्यापक स्तर पर जागरुकता फैलाए जाने की आवश्यकता है.

पढ़ें: हरदा ने किशोर को बताया हनुमान, बोले- 'लंका विजय के समय वो रावण के कक्ष में बैठे थे'

वनाग्नि को तेजी से बढ़ने में चीड़ की पत्तियां मददगार होती हैं. ऐसे स्थानों पर चीड़ के पेड़ों के स्थान पर अन्य पेड़ों को महत्त्व देना चाहिए. चीड़ के पेड़ से निकलने वाले लीसा के संपर्क में आने से आग विकराल रूप धारण कर लेती है. कई बार अधिक लीसा दोहन करने के लिए पेड़ों पर गहरा घाव कर दिया जाता है. लीसा के अत्यधिक ज्वलनशील होने की वजह से आसपास के पेड़ों को वनाग्नि के दौरान बड़े पैमाने पर नुकसान होता है.

उत्तरकाशी: गंगा विश्व धरोहर मंच की ओर से हिमालय प्लांट बैंक श्याम स्मृति वन में वृक्षारोपण किया गया. इसके साथ ही वरुणावत पर जाकर चीड़ की पत्तियों को इकठ्ठा कर जमीन में आग नियंत्रण के लिए पानी संग्रहण के लिए छोटे-छोटे गड्डे भी खोदे गए. इस अवसर पर संस्कृत महाविद्यालय व पीजी कॉलेज के राष्ट्रीय सेवा योजना ने गंगा क्लब के स्वयंसेवियों के साथ संवाद भी किया.

इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि वनों में आग लगने से वनस्पतियों के साथ-साथ वन्य जीवों को भी नुकसान होता है. कई दुर्लभ प्राणि इस आग में झुलस कर दम तोड़ देते हैं. इनमें जमीन पर रेंगने वाले छोटे जीवों व पक्षियों की संख्या अधिक होती है. वनाग्नि के कारण आसपास के संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र और पर्यावरण पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है, इसलिए इसकी रोकथाम के लिए व्यापक स्तर पर सामुदायिक भागीदारी के साथ स्थानीय लोगों और वन विभाग के बीच सामंजस्य, प्रकृति और पर्यावरण के प्रति लोगों में व्यापक स्तर पर जागरुकता फैलाए जाने की आवश्यकता है.

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वनाग्नि को तेजी से बढ़ने में चीड़ की पत्तियां मददगार होती हैं. ऐसे स्थानों पर चीड़ के पेड़ों के स्थान पर अन्य पेड़ों को महत्त्व देना चाहिए. चीड़ के पेड़ से निकलने वाले लीसा के संपर्क में आने से आग विकराल रूप धारण कर लेती है. कई बार अधिक लीसा दोहन करने के लिए पेड़ों पर गहरा घाव कर दिया जाता है. लीसा के अत्यधिक ज्वलनशील होने की वजह से आसपास के पेड़ों को वनाग्नि के दौरान बड़े पैमाने पर नुकसान होता है.

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