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पहाड़ों में दम तोड़ता कुटीर उद्योग, भेड़ पालन से मुंह मोड़ रहा युवा पीढ़ी

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Published : Sep 19, 2020, 6:15 PM IST

पहाड़ों में आजीविका का मुख्य साधन भेड़ पालन अब सिमट रहा है. उपेक्षा के चलते पारंपरिक उद्योग से युवा पीढ़ी मुंह मोड़ रहा है.

Cottage industry dies in uttarakhand
पहाड़ों में दम तोड़ता कुटीर उद्योग

उत्तरकाशी: पहाड़ों में आजीविका का मुख्य साधन भेड़ पालन अब सिमट रहा है. इस वजह से ऊन का उत्पादन भी कम हो रहा है और इस ऊन के दम पर पनपने वाले कुटीर उद्योग जमीन पर टिक ही नहीं पा रहे हैं. हाल ये है कि एक समय में सबसे अधिक ऊन का उत्पादन करने वाले उत्तरकाशी में ही आठ गुना ऊन उत्पादन कम हो गया. ऊन का प्रयोग केवल दरियां और कालीन बनाने तक ही रह गया है.

कभी पहाड़ों में हर घर में बुजुर्ग के हाथ में तकली घूमा करती थी. इनके हाथों से तकली गायब हो गई है. उत्तराखंड के 6 जिलों में करीब 17 हजार परिवार ही भेड़पालन व्यवसाय से जुड़े हैं. चारे की समस्या और ऊन के सही दाम न मिलने की वजह से नई पीढ़ी पुश्तैनी व्यवसाय अपनाने में रुचि नहीं दिखा रही है. उत्तरकाशी जिले में अकेले 1200 मीट्रिक टन ऊन का उत्पादन होता था. जो महज 180 मीट्रिक टन पर सिमट कर रह गया है.

Cottage industry dies in uttarakhand
पहाड़ों में दम तोड़ता कुटीर उद्योग.

भेड़ और बकरी पालन से जुड़े लोगों का कहना है कि पशुपालन विभाग का ध्यान मात्र दुधारू पशुओं तक केंद्रित हो गया है और फाइलें दफ्तरों की चक्कर काटते-काटते कहीं गुम हो गईं हैं. उत्तरकाशी बगोरी गांव के नारायण सिंह का कहना है कि आज भेड़ का ऊन 40 रुपए प्रति किलो बाजार में मिल रहा है. जिसमें सिर्फ 15 रुपए ही भेड़ पालकों को मिलता है, जिसकी वजह से अब पहाड़ों में भेड़ और ऊन उद्योग दम तोड़ रहा है.

ये भी पढ़ें: तिब्बत के साथ कैसा रहा चीन का सलूक, सुनें शरणार्थियों की जुबानी

हर्षिल घाटी में जाड़ जनजातीय समुदाय का बगोरी गांव स्थित है. जो अपने ऊन उद्योग और ऊनी सामानों के लिए देश और विदेश में विख्यात है. लेकिन आज यहां का ऊन उद्योग मात्र बुजुर्गों तक सीमित रह गया है. ग्रामीणों का कहना है कि पहले भेड़ पालन और ऊन उद्योग के लिए उद्योग विभाग और खादी ग्रामोद्योग की तरफ से ऊन खरीदी जाती थी. लेकिन आज किसी प्रकार का प्रोत्साहन इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए नहीं किया जा रहा है.

भेड़ पालन से मुंह मोड़ रहा युवा पीढ़ी.

यही कारण है कि इस पारंपरिक उद्योग से युवा पीढ़ी मुंह मोड़ रहा है. वर्ष 2012 में हुई पशु गणना में प्रदेश में भेड़ों की संख्या 3.69 लाख थी. लेकिन 2018 में हुई पशु गणना में भेड़ों की संख्या में कमी आई है. वर्तमान में उत्तराखंड में 538.24 हजार किलोग्राम ऊन का उत्पादन हो रहा है.

उत्तरकाशी: पहाड़ों में आजीविका का मुख्य साधन भेड़ पालन अब सिमट रहा है. इस वजह से ऊन का उत्पादन भी कम हो रहा है और इस ऊन के दम पर पनपने वाले कुटीर उद्योग जमीन पर टिक ही नहीं पा रहे हैं. हाल ये है कि एक समय में सबसे अधिक ऊन का उत्पादन करने वाले उत्तरकाशी में ही आठ गुना ऊन उत्पादन कम हो गया. ऊन का प्रयोग केवल दरियां और कालीन बनाने तक ही रह गया है.

कभी पहाड़ों में हर घर में बुजुर्ग के हाथ में तकली घूमा करती थी. इनके हाथों से तकली गायब हो गई है. उत्तराखंड के 6 जिलों में करीब 17 हजार परिवार ही भेड़पालन व्यवसाय से जुड़े हैं. चारे की समस्या और ऊन के सही दाम न मिलने की वजह से नई पीढ़ी पुश्तैनी व्यवसाय अपनाने में रुचि नहीं दिखा रही है. उत्तरकाशी जिले में अकेले 1200 मीट्रिक टन ऊन का उत्पादन होता था. जो महज 180 मीट्रिक टन पर सिमट कर रह गया है.

Cottage industry dies in uttarakhand
पहाड़ों में दम तोड़ता कुटीर उद्योग.

भेड़ और बकरी पालन से जुड़े लोगों का कहना है कि पशुपालन विभाग का ध्यान मात्र दुधारू पशुओं तक केंद्रित हो गया है और फाइलें दफ्तरों की चक्कर काटते-काटते कहीं गुम हो गईं हैं. उत्तरकाशी बगोरी गांव के नारायण सिंह का कहना है कि आज भेड़ का ऊन 40 रुपए प्रति किलो बाजार में मिल रहा है. जिसमें सिर्फ 15 रुपए ही भेड़ पालकों को मिलता है, जिसकी वजह से अब पहाड़ों में भेड़ और ऊन उद्योग दम तोड़ रहा है.

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हर्षिल घाटी में जाड़ जनजातीय समुदाय का बगोरी गांव स्थित है. जो अपने ऊन उद्योग और ऊनी सामानों के लिए देश और विदेश में विख्यात है. लेकिन आज यहां का ऊन उद्योग मात्र बुजुर्गों तक सीमित रह गया है. ग्रामीणों का कहना है कि पहले भेड़ पालन और ऊन उद्योग के लिए उद्योग विभाग और खादी ग्रामोद्योग की तरफ से ऊन खरीदी जाती थी. लेकिन आज किसी प्रकार का प्रोत्साहन इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए नहीं किया जा रहा है.

भेड़ पालन से मुंह मोड़ रहा युवा पीढ़ी.

यही कारण है कि इस पारंपरिक उद्योग से युवा पीढ़ी मुंह मोड़ रहा है. वर्ष 2012 में हुई पशु गणना में प्रदेश में भेड़ों की संख्या 3.69 लाख थी. लेकिन 2018 में हुई पशु गणना में भेड़ों की संख्या में कमी आई है. वर्तमान में उत्तराखंड में 538.24 हजार किलोग्राम ऊन का उत्पादन हो रहा है.

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