उत्तरकाशी: कूड़ा प्रबंधन को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी का स्वच्छ भारत मिशन हो या फिर एनजीटी और कोर्ट के आदेश, गंगा-यमुना के उद्गम उत्तरकाशी जनपद में सभी निष्प्रभावी साबित हो रहे हैं. जिला मुख्यालय वाली नगर पालिका बाड़ाहाट उत्तरकाशी में वैज्ञानिक ढंग से कचरे का निस्तारण तो दूर कूड़ा डंपिंग के लिए जमीन तक नहीं तलाशी जा सकी है. यही कारण है कि नगर का सारा कूड़ा तांबाखानी सुरंग के मुहाने पर गंगा भागीरथी से लगे गंगोत्री हाईवे पर डंप किया जा रहा है. चारधाम यात्रा शुरू होने से समस्या और विकराल हो गई है.
जिले के अन्य शहरी इलाकों में भी वैज्ञानिक ढंग से कूड़ा निस्तारण के ठोस इंतजाम नहीं होने से कूड़ा बड़ी समस्या बनता जा रहा है. उपभोक्ता बाजार में अधिकांश वस्तुएं प्लास्टिक पैकिंग में होने के कारण कूड़े में प्लास्टिक कचरे की मात्रा बढ़ती जा रही है. वहीं पालिका के कर्मचारी द्वारा सुबह नगर क्षेत्र में कूड़ा जलाया जा रहा है, जिससे पर्यावरण और अधिक प्रदूषित हो रहा है.
गांवों से शहरों की ओर पलायन के चलते आबादी के दबाव में शहरी इलाकों में कूड़े की समस्या भयावह रूप लेती जा रही है. स्वच्छ भारत मिशन के तहत जिले में आए दिन सफाई अभियान चलाकर बड़ी मात्रा में कचरा एकत्र तो किया जाता है, लेकिन इसके निस्तारण के इंतजाम अभी तक नहीं हो पाए हैं. कई वर्षों से नगर पालिका बाड़ाहाट का सारा कूड़ा तेखला गदेरे में उड़ेला जा रहा था, जहां से पानी के साथ बहकर यह कचरा सीधे भागीरथी में पहुंचता था. इस पर संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट ने तेखला गदेरे में कूड़ा डालने पर पाबंदी लगा दी है. तब से अभी तक यहां कूड़ा डंप करने के लिए कहीं जमीन नहीं तलाशी जा सकी है.
वर्तमान में स्थिति यह है कि नगर का सारा कूड़ा नगर के मध्य स्थित तांबाखानी सुरंग के बाहरी हिस्से में गंगा भागीरथी से लगे गंगोत्री हाईवे पर डाला जा रहा है. इसके बावजूद यहां और नगर में जगह-जगह लगे कूड़ेदानों में कूड़े के अंबार दिनों दिन बढ़ते जा रहे हैं. फिलहाल तांबाखानी के बाहरी हिस्से में प्लास्टिक कूड़ा छंटवाकर इस समस्या से निपटने के प्रयास तो पालिका कर रही है, लेकिन कूड़े से उठती दुर्गंध और कीड़े मकोड़ों का प्रकोप आम जन के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक उत्तरकाशी जिले की बात करें तो हर दिन यहां से 14 से 15 टन कूड़ा निकलता है, जो चारधाम यात्रा के दौरान 20 टन तक पहुंच जाता है, लेकिन निस्तारण सिर्फ 9 टन ही हो पाता है. बाकी का बचा कूड़ा या तो नदियों में डाल दिया जाता या फिर उसे जला दिया जाता था. कूड़ा निस्तारण के ठोस इंतजाम करने के बजाय पालिका और जिला प्रशासन एक दूसरे की जिम्मेदारी बताकर पल्ला झाड़ रहे हैं. आजकल यात्रा सीजन में बाहरी क्षेत्रों से बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों के यहां पहुंचने के कारण कूड़े की समस्या भयावह रूप लेती जा रही है.