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सेब उत्पादकों को सता रहा नुकसान का खतरा, नहीं मिल रही कीटनाशक दवाइयां

उत्तरकाशी के सेब पट्टी उपला टकनोर में नहीं पहुंची कीटनाशक दवाइयां. दवाओं के अभाव में सेब के उत्पादन को खतरा. विभाग ने सीमित संसाधनों का दिया हवाला.

सेब का बगान.
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Published : Apr 27, 2019, 10:10 AM IST

Updated : Apr 27, 2019, 3:31 PM IST

उत्तरकाशी: प्रदेश में उद्यानों को बढ़ावा देने के लिए कई प्रकार की योजनाओं की बात होती है, लेकिन आलम ये है कि सेब बागवानों को कीटनाशक दवाइयां तक नहीं मिल पा रही हैं. जिसके चलते पट्टी उपला टकनोर में सेब बागवानों को उत्पादन के नुकसान का खतरा सता रहा है. क्योंकि कीटनाशक दवाइयों के न मिलने से सेब के फूलों को थ्रिप्स जैसे कीट नुकसान पहुंचाते हैं, जोकि फल नहीं बनने देते. बागवानों का आरोप है कि जब वो विभाग से इसकी शिकायत करते हैं, तो विभाग सीमित संसाधनों का रोना रोता है.

उत्तरकाशी में हर्षिल घाटी को मिलाकर प्रति वर्ष 20 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है. इस बार जमकर हुई बर्फबारी से सेब बागवानों को उम्मीद थी कि इस बार उत्पादन अच्छा होगा. सेब बागवानों का कहना है कि उद्यान विभाग की लापरवाही के कारण इस बार अप्रैल माह में सेब के पेड़ों पर डलने वाली कीटनाशक दवा डायथेन, बावस्टीन नहीं मिल रही है.

सेब बागवानों को सता रहा उत्पादन के नुकसान का खतरा.

सेब बागवान दिनेश रावत ने बताया कि अप्रैल मध्य माह के बाद फ्लॉवरिंग शुरू ही जाती है. इससे पहले अप्रैल माह के पहले हफ्ते में सेब की पिंक बर्ड स्टेज शुरू हो जाती है. फ्लॉवरिंग के दौरान सेब के कोंपल पर कीट न लगे इसलिए दवाइयों की आवश्यकता होती है. इन दवाइयों के न पड़ने से सेब के फूलों को कीट खा जाते हैं, जो फलों को नहीं बनने देते. रावत ने बताया कि इस संबंध में जब विभागीय अधिकारियों को सूचित किया गया तो वो संसाधनों की कमी बताकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं.

जिला उद्यान अधिकारी प्रभाकर सिंह ने ईटीवी भारत को फोन पर बताया कि अभी जितनी दवाइयां विभाग के पास मौजूद थी उतनी उपला टकनोर क्षेत्र में बागवानों को भेजी गई है. उसके बाद भी अगर बागवानों को शिकायत है, तो उसका समाधान जल्द किया जाएगा.

उत्तरकाशी: प्रदेश में उद्यानों को बढ़ावा देने के लिए कई प्रकार की योजनाओं की बात होती है, लेकिन आलम ये है कि सेब बागवानों को कीटनाशक दवाइयां तक नहीं मिल पा रही हैं. जिसके चलते पट्टी उपला टकनोर में सेब बागवानों को उत्पादन के नुकसान का खतरा सता रहा है. क्योंकि कीटनाशक दवाइयों के न मिलने से सेब के फूलों को थ्रिप्स जैसे कीट नुकसान पहुंचाते हैं, जोकि फल नहीं बनने देते. बागवानों का आरोप है कि जब वो विभाग से इसकी शिकायत करते हैं, तो विभाग सीमित संसाधनों का रोना रोता है.

उत्तरकाशी में हर्षिल घाटी को मिलाकर प्रति वर्ष 20 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है. इस बार जमकर हुई बर्फबारी से सेब बागवानों को उम्मीद थी कि इस बार उत्पादन अच्छा होगा. सेब बागवानों का कहना है कि उद्यान विभाग की लापरवाही के कारण इस बार अप्रैल माह में सेब के पेड़ों पर डलने वाली कीटनाशक दवा डायथेन, बावस्टीन नहीं मिल रही है.

सेब बागवानों को सता रहा उत्पादन के नुकसान का खतरा.

सेब बागवान दिनेश रावत ने बताया कि अप्रैल मध्य माह के बाद फ्लॉवरिंग शुरू ही जाती है. इससे पहले अप्रैल माह के पहले हफ्ते में सेब की पिंक बर्ड स्टेज शुरू हो जाती है. फ्लॉवरिंग के दौरान सेब के कोंपल पर कीट न लगे इसलिए दवाइयों की आवश्यकता होती है. इन दवाइयों के न पड़ने से सेब के फूलों को कीट खा जाते हैं, जो फलों को नहीं बनने देते. रावत ने बताया कि इस संबंध में जब विभागीय अधिकारियों को सूचित किया गया तो वो संसाधनों की कमी बताकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं.

जिला उद्यान अधिकारी प्रभाकर सिंह ने ईटीवी भारत को फोन पर बताया कि अभी जितनी दवाइयां विभाग के पास मौजूद थी उतनी उपला टकनोर क्षेत्र में बागवानों को भेजी गई है. उसके बाद भी अगर बागवानों को शिकायत है, तो उसका समाधान जल्द किया जाएगा.

Intro:हेडलाइन- सेब बागवानों को नहीं मिली दवाई। Slug- Uk_uttarkashi_vipin negi_no pesticides medicine for gardeners_26 april 2019. उत्तरकाशी। एक और शासन प्रशासन प्रदेश में उद्यानों को बढ़ावा देने के लिए कई प्रकार की योजनाओं की बात कर रही है। तो दूसरी और इस बार जनपद की सेब पट्टी उपला टकनोर में सेब बागवानों को अप्रैल माह में फ्लॉवरिंग से पहले पिंकब्रड में सेब के पेड़ों पर डालने के लिए कीटनाशक दवाइयां नहीं मिल पाई हैं। जिससे कि सेब बागवानों को फिर उत्पादन के नुकसान का खतरा सता रहा है। क्योंकि इन दवाईयों के न मिलने से सेब के फूलों को थ्रिप्स जैसे कीट नुकसान पहुचाते हैं। जो कि सेब के फल को नहीं बनने देता है। बागवानों का आरोप है कि जब वह विभाग के पास इसकी शिकायत लेकर गए तो,विभाग संसाधनों का रोना रो रहा है।


Body:वीओ-1, जनपद की बात करें,तो हर्षिल घाटी को मिलाकर प्रति वर्ष 20 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है। साथ ही इस बार हुई बर्फबारी से सेब बागवानों को उम्मीद थी। कि सेब का अच्छा उत्पादन होगा। सेब बागवानो का कहना है कि उद्यान विभाग की लापरवाही के कारण इस बार अप्रैल माह में सेब के पेड़ों पर डालने वाली कीटनाशक दवा डायथिन, वाबस्टीन नहीं मिल पाई है। सेब बागवान दिनेश रावत ने बताया कि अप्रैल मध्य माह के बाद फ्लॉवरिंग शुरू ही जाती है। इससे पहले अप्रैल माह के प्रथम सप्ताह में सेब के पेड़ों पर जब पिंकबर्ड होता है। उस समय इन दवाइयों की आवश्यकता होती है। जिससे कि फ्लॉवरिंग के दौरान सेब के फूलों पर कीट न लगे। लेकिन दवाई न मिल पाने के कारण इस बार नुकसान उठाना पड़ सकता है।


Conclusion:वीओ-2, रावत ने बताया कि इस सम्बंध में जब विभाग को सूचित किया गया। तो वह संसाधनों की कमी बताकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं।कहा कि इन दवाइयों के न पड़ने से सेब के फूलों को कीट खा जाते हैं। जो कि फलों को नहीं बनने देते। वहीं दूसरी और जिला उद्यान अधिकारी प्रभाकर सिंह ने फ़ोन पर दी जानकारी में बताया कि अभी जितना संसाधन विभाग के पास उपलब्ध था। उतनी दवाइयां उपला टकनोर क्षेत्र में भेजी गई है। उसके बाद भी अगर बागवानों की शिकायत है। तो उसका समाधान जल्द ही किया जाएगा। बाईट- दिनेश रावत,सेब बागवान हर्षिल।
Last Updated : Apr 27, 2019, 3:31 PM IST
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