उत्तरकाशी: प्रदेश में उद्यानों को बढ़ावा देने के लिए कई प्रकार की योजनाओं की बात होती है, लेकिन आलम ये है कि सेब बागवानों को कीटनाशक दवाइयां तक नहीं मिल पा रही हैं. जिसके चलते पट्टी उपला टकनोर में सेब बागवानों को उत्पादन के नुकसान का खतरा सता रहा है. क्योंकि कीटनाशक दवाइयों के न मिलने से सेब के फूलों को थ्रिप्स जैसे कीट नुकसान पहुंचाते हैं, जोकि फल नहीं बनने देते. बागवानों का आरोप है कि जब वो विभाग से इसकी शिकायत करते हैं, तो विभाग सीमित संसाधनों का रोना रोता है.
उत्तरकाशी में हर्षिल घाटी को मिलाकर प्रति वर्ष 20 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है. इस बार जमकर हुई बर्फबारी से सेब बागवानों को उम्मीद थी कि इस बार उत्पादन अच्छा होगा. सेब बागवानों का कहना है कि उद्यान विभाग की लापरवाही के कारण इस बार अप्रैल माह में सेब के पेड़ों पर डलने वाली कीटनाशक दवा डायथेन, बावस्टीन नहीं मिल रही है.
सेब बागवान दिनेश रावत ने बताया कि अप्रैल मध्य माह के बाद फ्लॉवरिंग शुरू ही जाती है. इससे पहले अप्रैल माह के पहले हफ्ते में सेब की पिंक बर्ड स्टेज शुरू हो जाती है. फ्लॉवरिंग के दौरान सेब के कोंपल पर कीट न लगे इसलिए दवाइयों की आवश्यकता होती है. इन दवाइयों के न पड़ने से सेब के फूलों को कीट खा जाते हैं, जो फलों को नहीं बनने देते. रावत ने बताया कि इस संबंध में जब विभागीय अधिकारियों को सूचित किया गया तो वो संसाधनों की कमी बताकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं.
जिला उद्यान अधिकारी प्रभाकर सिंह ने ईटीवी भारत को फोन पर बताया कि अभी जितनी दवाइयां विभाग के पास मौजूद थी उतनी उपला टकनोर क्षेत्र में बागवानों को भेजी गई है. उसके बाद भी अगर बागवानों को शिकायत है, तो उसका समाधान जल्द किया जाएगा.