ETV Bharat / state

कोठीगाड़ में जलप्रलय ने लीला रोजगार, सेब बागवानों पर गहराया आर्थिक संकट

आराकोट बंगाण क्षेत्र की कोठीगाड़ पट्टी स्थित गांवों का मुख्या आजीविका का साधन बागवानी ही है. वहीं, बीते दिनों आई जलप्रलय से सेब बागवानों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है.

सेब बागवानी पर आपदा की पड़ी मार .
author img

By

Published : Aug 30, 2019, 10:07 PM IST

उत्तरकाशी: बीते दिनों कोठीगाड़ में आई जलप्रलय से स्थानीय लोगों का जीवन अस्त व्यस्त कर दिया है. वहीं, इस आपदा ने बागवानी की भी कमर तोड़ कर रख दी. जहां इस माह के अंत तक सेब मंडियों तक पहुंच जाते थे, वहीं, आज ये नकदी फसल यूं ही बर्बाद हो रही है.

Etv Bharat
बीते दिनों आई जलप्रलय से सेब बागवानों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है.

बता दें आराकोट बंगाण क्षेत्र की कोठीगाड़ पट्टी स्थित गांवों का मुख्या आजीविका का साधन बागवानी ही है. वहीं, बीते दिनों आई जलप्रलय से सेब बागवानों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है. स्थिति यह है कि जिस जमीन पर कभी सेब की बागान थे. वहां अब जमीन तक नहीं है. पूरे क्षेत्र की बात करें तो यहां करीब 128 हेक्टेयर बागवानी को नुकसान पहुंचा है.

सेब बागवानी पर आपदा की पड़ी मार .

माकुड़ी गांव निवासी अमन भट्ट का कहना है कि कोठीगाड़ क्षेत्र के हर व्यक्ति की आजीविका सेब उत्पादन पर टिकी हुई है. इस महीने तक हर गांव में सेब मंडियों तत पहुंचाने का काम होता था. लेकिन इस साल सेब बागवान आपदा की मार झेल रहे हैं.

यह भी पढ़ें-उत्तरकाशी आपदा में 9 करोड़ 84 लाख रुपये का हुआ नुकसान, निरीक्षण कर लौटी केंद्रीय गृह मंत्रालय की टीम

ग्रामीणों का कहना है कि जलप्रलय के कारण अभी भी कई सड़कें नहीं खुल पाई है. जिस कारण ग्रामीणों के सेब खेतों या कोल्ड स्टोर में ही सड़ रहे हैं. जिसका मुख्य कारण गांव की सड़कों का नहीं खुल पाना है. ऐसे में मंडियों से भी आढ़ती गांव नहीं पहुंच पा रहे हैं.

जिला प्रशासन से प्राप्त आंकड़ों की बात करें तो बीते 18 अगस्त को कोठीगाड़ में आई जलप्रलय में 128 हेक्टेयर बागवानी का नुकसान हुआ है. ऐसे में स्थानीय लोगों की आजीविका पर भी भारी संकट खड़ा हो गया है.

उत्तरकाशी: बीते दिनों कोठीगाड़ में आई जलप्रलय से स्थानीय लोगों का जीवन अस्त व्यस्त कर दिया है. वहीं, इस आपदा ने बागवानी की भी कमर तोड़ कर रख दी. जहां इस माह के अंत तक सेब मंडियों तक पहुंच जाते थे, वहीं, आज ये नकदी फसल यूं ही बर्बाद हो रही है.

Etv Bharat
बीते दिनों आई जलप्रलय से सेब बागवानों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है.

बता दें आराकोट बंगाण क्षेत्र की कोठीगाड़ पट्टी स्थित गांवों का मुख्या आजीविका का साधन बागवानी ही है. वहीं, बीते दिनों आई जलप्रलय से सेब बागवानों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है. स्थिति यह है कि जिस जमीन पर कभी सेब की बागान थे. वहां अब जमीन तक नहीं है. पूरे क्षेत्र की बात करें तो यहां करीब 128 हेक्टेयर बागवानी को नुकसान पहुंचा है.

सेब बागवानी पर आपदा की पड़ी मार .

माकुड़ी गांव निवासी अमन भट्ट का कहना है कि कोठीगाड़ क्षेत्र के हर व्यक्ति की आजीविका सेब उत्पादन पर टिकी हुई है. इस महीने तक हर गांव में सेब मंडियों तत पहुंचाने का काम होता था. लेकिन इस साल सेब बागवान आपदा की मार झेल रहे हैं.

यह भी पढ़ें-उत्तरकाशी आपदा में 9 करोड़ 84 लाख रुपये का हुआ नुकसान, निरीक्षण कर लौटी केंद्रीय गृह मंत्रालय की टीम

ग्रामीणों का कहना है कि जलप्रलय के कारण अभी भी कई सड़कें नहीं खुल पाई है. जिस कारण ग्रामीणों के सेब खेतों या कोल्ड स्टोर में ही सड़ रहे हैं. जिसका मुख्य कारण गांव की सड़कों का नहीं खुल पाना है. ऐसे में मंडियों से भी आढ़ती गांव नहीं पहुंच पा रहे हैं.

जिला प्रशासन से प्राप्त आंकड़ों की बात करें तो बीते 18 अगस्त को कोठीगाड़ में आई जलप्रलय में 128 हेक्टेयर बागवानी का नुकसान हुआ है. ऐसे में स्थानीय लोगों की आजीविका पर भी भारी संकट खड़ा हो गया है.

Intro:उत्तरकाशी के कोटिगाड़ में आई जलप्रलय ने उस क्षेत्र के ग्रामीणों की बागवानी की कमर तोड़ कर रख दी है। ग्रामीणों के सेब अभी भी पेड़ो पर झड़ते नजर आ रहे हैं। जबकि इस माह के अंत तक पूरी घाटी के सेब मंडियों तक पहुंच जाते थे। उत्तरकाशी। आराकोट बंगाण क्षेत्र का कोटिगाड़ के सभी गांव की मुख्य आजीविका का साधन सेब बागवानी है। जिसको इस क्षेत्र में आई आपदा में सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। आज स्थिति यह है कि कई ग्रामीणों के सामने सेब बागवानी बह जाने के बाद अब जमीन के नाम पर कुछ नहीं बचा है। तो जिनके बचे भी,वह बागवानी और कोल्ड स्टोर में सड़ रहे हैं। पूरे क्षेत्र की बात करें,तो 128 हेक्टेयर बागवानी को नुकसान हुआ है। Body:वीओ-1, माकुड़ी गांव के अमन भट्ट का कहना है कि कोटिगाड़ क्षेत्र का हर व्यक्ति की आजीविका सेब उत्पादन पर टिकी हुई है। इस माह की बात करें,तो हर गांव में सेब को पेड़ो से तोड़कर मंडियों में पहुचाने का काम होता था। लेकिन इस वर्ष सेब बागवान प्रकृति की बेरुखी की मार झेल रहे हैं। जलप्रलय के कारण अभी भी कई गांव तक सड़क नहीं खुल पाई है। जिस कारण ग्रामीणों के सेब खेतों में और स्टोर रूम में सड़ रहे हैं। आराकोट के सेबों की बात करें,तो यह मंडियों में अपनी अलग पहचान रखते हैं। वहीं सड़क मार्ग न खुल पाने के कारण मंडियों से आर्थी भी गांव तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। Conclusion:वीओ-2, जिला प्रशासन के आंकड़ों की बात करें, बीती 18 अगस्त को आराकोट के कोटिगाड़ में आई जलप्रलय में 128 हेक्टेयर बागवानी का नुकसान हुआ है। वहीं ग्रामीणों का कहना है कि घर हो या अन्य चीजें, वह रिकवर हो जाएंगे। लेकिन सेब के बागानों को बनाने के लिए अभी कई वर्ष लग जाएंगे। क्योंकि यह बागीचे वर्षों की मेहनत के बाद तैयार हुए थे। लेकिन अब जलप्रलय के कारण ग्रामीणों की आजीविका 5 से 10 वर्ष पीछे चली गई है। बाइट- अमन भट्ट,ग्रामीण।
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.