काशीपुर: बेजान पत्थर की तकदीर तराशने का हुनर रखने वाले आज खुद अपने भाग्य के लिए तरस रहे हैं. कारण है कोरोना महामारी. दरअसल, पत्थर तराशकर उसको नया रूप देने वाले कारीगर दो वक्त की रोटी की तलाश में अपने आशियानों के कोसों दूर तक चले जाते हैं. ईटीवी भारत आपको ऐसे हुनरबाजों से रूबरू कराएगा, जो पैसों की खातिर मैदान से पहाड़ तक का सफर तय करते हैं और हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी उचित मेहनताना नहीं मिलता है.
हम बात कर रहे हैं काशीपुर के लगे चैती मेले में पहुंचे पत्थर के कारीगरों की. उत्तर भारत के सुप्रसिद्ध मेलों में शुमार काशीपुर में चैती मेला का शुभारंभ दो अप्रैल से हो गया है. कोरोना के कारण यहां दो साल से चैती मेला नहीं लग रहा था. लेकिन कोरोना कमजोर पड़ते ही इस साल चैती मेले का आयोजन किया गया है. चैती मेले में पहुंचे पत्थर के कारीगरों का मानना है कि दो साल से उनका काम बंद था. लेकिन इस बार उनको उम्मीद है कि इस बार उनकी आमदनी अच्छी होगी.
इस बार अच्छी आमदनी की उम्मीद: पत्थर का काम करने वाले कारीगर सूरज कहते हैं कि उनके यहां ये काम पीढ़ियों से हो रहा है. कोरोना काल के बाद इस साल भी वो सिल बट्टे, चक्की, खरल और चकला आदि सामान लेकर आए हैं. सूरज कहना है कि दो साल बाद लगे इस मेले से उनका काफी उम्मीदें हैं कि बिक्री काफी अच्छी होगी. उन्होंने कहा कि महंगाई ने सभी कारीगरों की कमर तोड़ रखी है. दुकानदार मेले में आते हैं और ग्राहकों के अभाव में खाली हाथ लौट जाते हैं.
पत्थर के कारीगरों का कहना है कि सरकार द्वारा चैती मेले को राजकीय मेला घोषित करने के बाद उनकी कुछ उम्मीद तो बंधी थी कि उनका रोजगार आगे बढ़ेगा. लेकिन जमीन के ठेकेदार ऊंचे दामों पर दुकान और फड़ बेच रहे हैं. ऐसे में वो आखिर कमाएंगे क्या और बचाएंगे क्या. उनका कहना कहना है कि इस संबंध में प्रशासन को ध्यान देना चाहिए कि ठेकेदार उनसे इतना ज्यादा किराया क्यों वसूल रहे हैं.
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मध्य प्रदेश और ग्वालियर से मंगाते हैं पत्थर: पत्थर के कारीगरों ने बताया कि वो मध्यप्रदेश के ग्वालियर और राजस्थान से पत्थर मंगाते हैं, जिसका सिलबट्टा बनता है. खरल का पत्थर चित्तौड़गढ़, मकराना और किशनगढ़ से लाया जाता है. वहीं, कुंडी (चटनी बनाने के पात्र) के लिए पत्थर चित्तौड़गढ़ और चकला बेलन आदि अन्य उत्पादों के लिए मकराना तथा किशनगढ़ का पत्थर उपयोग में लाया जाता है.
पत्थर भी हुआ महंगा: कारीगरों ने बताया कि से 6 साल पहले तक उनको एक पत्थर ₹80 से ₹90 का मिल जाता था. लेकिन अब एक पत्थर उनको ₹150 के करीब मिलता है. उसके बाद उस पत्थर को तराशने में दिन रात मेहनत करनी पड़ती है. तब जाकर एक पत्थर तैयार होता है. उसके बाद तैयार किया गए पत्थर का सामान ₹200 से ₹250 तक बिकता है.
ठेकेदार पर उत्पीड़न का आरोप: पत्थर तराशने वाले कारीगरों का कहना है कि महंगाई चरम पर है. एक तरफ मेले में उनके सामानों के खरीदार कम पहुंच रहे हैं. तो वहीं, मेले के ठेकेदार उनका उत्पीड़न करने पर लगे हुए हैं. पत्थर कारीगरों के मुताबिक पहले जो दुकान और फड़ उन्हें पहले ₹5 हजार के आसपास मिल जाया करते थे, वह 25 हजार और ₹30 हजार में उपलब्ध मिल रहे हैं. इतनी महंगाई के बावजूद उनसे दो से तीन गुना ज्यादा पैसा वसूला जा रहा है, जबकि मेले में सुविधाएं न के बरारबर हैं. इसके लिए वो प्रशासन को ही जिम्मेदार मानते हैं. इस मामले में एसडीएम काशीपुर का कहना है कि अगर ऐसा है तो इसकी जांच की जाएगी.
ऐतिहासिक है चैती मेला: बता दें, पिछले कई वर्षों से चैत्र मास की प्रथम नवरात्रि से काशीपुर के मां बाल सुंदरी देवी के मंदिर में चैती मेले का आयोजन होता आया है लेकिन बीते दो वर्षों से कोरोना महामारी के चलते यहां आयोजन नहीं हो पाया था. इस बार कोरोना संक्रमण में आई कमी के बाद प्रशासन ने चैती मेले के आयोजन का फैसला लिया है. ऐसे में ऐतिहासिक चैती मेले का पूरे विधि विधान और ध्वजारोहण के साथ शुभारंभ हो हो गया. यह मेला 1 महीने तक चलता है.