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15 अगस्त को लालकिले से 400 किमी दूर झंडा फहराएंगे टिकैत, बोले- काम नहीं कर रही उत्तराखंड सरकार

15 अगस्त की तैयारियों को लेकर राकेश टिकैत ने कहा कि वह लालकिले से 400 किलोमीटर दूर काशीपुर के एक गांव में झंडा फहराकर स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे. राकेश टिकैत ने कहा कि उत्तराखंड सरकार ठीक से काम नहीं कर रही है.

farmer leader rakesh tikait
15 अगस्त को झंडा फहराएंगे राकेश टिकैत.
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Published : Aug 11, 2021, 1:30 PM IST

देहरादून: कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर देश के किसान पिछले करीब 9 महीने से दिल्ली की सीमा पर डटे हैं. भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता और किसान नेता राकेश टिकैत देशभर में घूम-घूमकर किसानों की महापंचायत कर उन्हें केंद्र सरकार के खिलाफ लामबंद करने में जुटे हैं. इस क्रम में राकेश टिकैत देहरादून पहुंचे थे. यहां वह किसानों की आगामी रणनीति को लेकर ईटीवी भारत से मुखातिब हुए.

किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि केंद्र सरकार ने जबरन कृषि कानूनों को किसानों के ऊपर थोपा है. ऐसे में जब तक केंद्र सरकार तीनों कानूनों को वापस नहीं लेती, तबतक किसान दिल्ली के बॉर्डर पर डटे रहेंगे. उन्होंने मीडिया से उत्तराखंड में किसानों की आवाज बुलंद करने की बात भी कही. उन्होंने कहा कि कलम पर भी अब संगीनों का पहरा है.

काशीपुर में झंडा फहराएंगे टिकैत.

वहीं, 15 अगस्त की तैयारियों को लेकर राकेश टिकैत ने कहा कि वह लालकिले से 400 किलोमीटर दूर काशीपुर के एक गांव में झंडा फहराकर स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे. लालकिले पर पूछे सवाल पर टिकैत ने कहा कि केंद्र सरकार ने वहां बड़ी-बड़ी चारदीवारी खड़ी कर दी है. ऐसे में कौन वहां पर झंडा फहराने जा सकता है.

इसके अलावा राकेश टिकैत ने उत्तराखंड में लगातार हो रहे पलायन और बंजर होते खेतों पर चिंता जाहिर की है. टिकैत ने कहा कि यहां की सरकार किसानों की सुध ले और यहां की उपजाऊ जमीन को किसानों के हित में लाने का फैसला करे. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार किसानों के हित में फैसले नहीं ले रही है.

पढ़ें- यूपी में गेहूं और धान खरीद में घोटाला : राकेश टिकैत

कृषि कानून पर सरकार और किसानों के बीच बातचीत का दौर अभी बंद है. ऐसे में किसान आंदोलन का क्या समाधान है? इस सवाल पर टिकैत ने कहा कि किसानों की सिर्फ एक ही मांग है कि सरकार इन काले कानूनों का वापस ले, लेकिन सरकार इन कानूनों में संशोधन की बात पर अड़ी है.

राकेश टिकैत ने कहा कि संसद में किसान बिल आने से पहले देश में गोदाम बनने शुरू हो चुके थे. इस पर सरकार की मंशा साफ दिखाई देती है. यह कानून उद्योगपतियों के लिए बनाए गए, न कि किसानों के हित में. उन्होंने कहा कि इसलिए इन कानूनों में किसी तरह के विचार-विमर्श की गुंजाइश नहीं बचती. लिहाजा, सरकार को कृषि कानून वापस लेने ही पड़ेंगे.

भारतीय किसान विरोध प्रदर्शन 2020-2021 पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और करीब पूरे देश के किसानों द्वारा मुख्य रूप से 2020 में भारतीय संसद द्वारा पारित तीन कृषि अधिनियमों के विरुद्ध चल रहा विरोध है. किसान यूनियनों द्वारा अधिनियमों को 'किसान विरोधी' और 'कृषक विरोधी' के रूप में वर्णित किया गया है. जबकि विपक्षी राजनेताओं के आरोप से ये निगमों की दया पर किसानों को छोड़ देगा.

अधिनियमों के लागू होने के तुरंत बाद यूनियनों ने स्थानीय विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिये. ज्यादातर पंजाब और हरियाणा राज्यों में प्रदर्शन हुए. दो महीने के विरोध के बाद, किसानों ने दो राज्यों पंजाब और हरियाणा से विशेष रूप से दिल्ली चलो नाम से एक आंदोलन शुरू किया, जिसमें हजारों किसानों ने राष्ट्रीय राजधानी की ओर कूच किया.

किसानों को दिल्ली में प्रवेश से रोकने के लिए पुलिस और कानून प्रवर्तन ने वाटर कैनन और आंसू गैस का इस्तेमाल किया. 26 नवंबर को एक राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल किसानों के समर्थन में हुई.

देहरादून: कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर देश के किसान पिछले करीब 9 महीने से दिल्ली की सीमा पर डटे हैं. भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता और किसान नेता राकेश टिकैत देशभर में घूम-घूमकर किसानों की महापंचायत कर उन्हें केंद्र सरकार के खिलाफ लामबंद करने में जुटे हैं. इस क्रम में राकेश टिकैत देहरादून पहुंचे थे. यहां वह किसानों की आगामी रणनीति को लेकर ईटीवी भारत से मुखातिब हुए.

किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि केंद्र सरकार ने जबरन कृषि कानूनों को किसानों के ऊपर थोपा है. ऐसे में जब तक केंद्र सरकार तीनों कानूनों को वापस नहीं लेती, तबतक किसान दिल्ली के बॉर्डर पर डटे रहेंगे. उन्होंने मीडिया से उत्तराखंड में किसानों की आवाज बुलंद करने की बात भी कही. उन्होंने कहा कि कलम पर भी अब संगीनों का पहरा है.

काशीपुर में झंडा फहराएंगे टिकैत.

वहीं, 15 अगस्त की तैयारियों को लेकर राकेश टिकैत ने कहा कि वह लालकिले से 400 किलोमीटर दूर काशीपुर के एक गांव में झंडा फहराकर स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे. लालकिले पर पूछे सवाल पर टिकैत ने कहा कि केंद्र सरकार ने वहां बड़ी-बड़ी चारदीवारी खड़ी कर दी है. ऐसे में कौन वहां पर झंडा फहराने जा सकता है.

इसके अलावा राकेश टिकैत ने उत्तराखंड में लगातार हो रहे पलायन और बंजर होते खेतों पर चिंता जाहिर की है. टिकैत ने कहा कि यहां की सरकार किसानों की सुध ले और यहां की उपजाऊ जमीन को किसानों के हित में लाने का फैसला करे. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार किसानों के हित में फैसले नहीं ले रही है.

पढ़ें- यूपी में गेहूं और धान खरीद में घोटाला : राकेश टिकैत

कृषि कानून पर सरकार और किसानों के बीच बातचीत का दौर अभी बंद है. ऐसे में किसान आंदोलन का क्या समाधान है? इस सवाल पर टिकैत ने कहा कि किसानों की सिर्फ एक ही मांग है कि सरकार इन काले कानूनों का वापस ले, लेकिन सरकार इन कानूनों में संशोधन की बात पर अड़ी है.

राकेश टिकैत ने कहा कि संसद में किसान बिल आने से पहले देश में गोदाम बनने शुरू हो चुके थे. इस पर सरकार की मंशा साफ दिखाई देती है. यह कानून उद्योगपतियों के लिए बनाए गए, न कि किसानों के हित में. उन्होंने कहा कि इसलिए इन कानूनों में किसी तरह के विचार-विमर्श की गुंजाइश नहीं बचती. लिहाजा, सरकार को कृषि कानून वापस लेने ही पड़ेंगे.

भारतीय किसान विरोध प्रदर्शन 2020-2021 पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और करीब पूरे देश के किसानों द्वारा मुख्य रूप से 2020 में भारतीय संसद द्वारा पारित तीन कृषि अधिनियमों के विरुद्ध चल रहा विरोध है. किसान यूनियनों द्वारा अधिनियमों को 'किसान विरोधी' और 'कृषक विरोधी' के रूप में वर्णित किया गया है. जबकि विपक्षी राजनेताओं के आरोप से ये निगमों की दया पर किसानों को छोड़ देगा.

अधिनियमों के लागू होने के तुरंत बाद यूनियनों ने स्थानीय विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिये. ज्यादातर पंजाब और हरियाणा राज्यों में प्रदर्शन हुए. दो महीने के विरोध के बाद, किसानों ने दो राज्यों पंजाब और हरियाणा से विशेष रूप से दिल्ली चलो नाम से एक आंदोलन शुरू किया, जिसमें हजारों किसानों ने राष्ट्रीय राजधानी की ओर कूच किया.

किसानों को दिल्ली में प्रवेश से रोकने के लिए पुलिस और कानून प्रवर्तन ने वाटर कैनन और आंसू गैस का इस्तेमाल किया. 26 नवंबर को एक राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल किसानों के समर्थन में हुई.

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