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काशीपुर: गेहूं की नौ नई प्रजातियां किसानों की आर्थिकी बढ़ाएंगी - Nine new varieties of wheat will benefit farmers

काशीपुर कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से कहा गया है कि गेहूं की नौ नई प्रजातियां अब किसानों की आमद का ग्राफ बढ़ाएंगी. जिससे किसानों का लाभ होगा.

Krishi Vigyan Kendra Kashipur
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Published : Oct 29, 2021, 8:39 AM IST

काशीपुर: अगले माह गेहूं की बुवाई शुरू हो जाएगी. इस बार गेहूं की 9 नई प्रजातियां किसानों की आमदनी का जरिया बनने के लिए तैयार है. काशीपुर कृषि विज्ञान केंद्र प्रभारी डॉ. जितेंद्र क्वात्रा का कहना है कि किसानों को समय-समय पर बीज बदलने की जरूरत है.

गेहूं की बुवाई अमूमन नवंबर के दूसरे सप्ताह से प्रारंभ हो जाती है. कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अधिकारी डॉ. जितेंद्र क्वात्रा के मुताबिक किसान अब तक गेहूं की पुरानी प्रजातियां एचडी-3086, एचडी-2967, 2733, डीबीडब्ल्यू-22, एचडी 336, यूपी 2784 व 2865 इत्यादि ही इस्तेमाल करते हैं. समय-समय पर अगर बीज बदला जाए तो उसके सार्थक परिणाम आ सकते हैं. इसे ध्यान में रख गेहूं की नौ नई प्रजातियों डीबीडब्ल्यू-222, पीबीडब्ल्यू-771, डीबीडब्ल्यू-173, डीबीडब्ल्यू-187, एचडी-3226, एचडी-3237, पीबीडब्ल्यू-752, वीएल-953 व एचडी-2967 को मान्यता दी गई है. जो पैदावार बढ़ाने में कारगर हो सकती हैं.

पढ़ें: हरक के बदले सुर ने बढ़ाई BJP की चिंता, निर्णायक की भूमिका में हरीश रावत बन रहे रोड़ा?

उन्होंने बताया कि एक एकड़ क्षेत्र में लगभग 40 किलो गेहूं के बीज का प्रयोग करना चाहिए. एक किलो बीज को दो ग्राम बाविस्टिन और कार्बेंडाजिम से उपचारित कर बुवाई करनी चाहिए. किसानों को उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना चाहिए. गेहूं की अच्छी उपज के लिए खरीफ की फसल के बाद भूमि में 60 किग्रा. फास्फोरस और 40 किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर, देर से बुवाई करने पर 60 किग्रा. फास्फोरस और 40 किग्रा. पोटाश सहित 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर की खाद आदि का प्रयोग करना चाहिए.

गोबर की खाद और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा का प्रयोग खेत की आखिरी बुवाई के समय करना चाहिए.

काशीपुर: अगले माह गेहूं की बुवाई शुरू हो जाएगी. इस बार गेहूं की 9 नई प्रजातियां किसानों की आमदनी का जरिया बनने के लिए तैयार है. काशीपुर कृषि विज्ञान केंद्र प्रभारी डॉ. जितेंद्र क्वात्रा का कहना है कि किसानों को समय-समय पर बीज बदलने की जरूरत है.

गेहूं की बुवाई अमूमन नवंबर के दूसरे सप्ताह से प्रारंभ हो जाती है. कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अधिकारी डॉ. जितेंद्र क्वात्रा के मुताबिक किसान अब तक गेहूं की पुरानी प्रजातियां एचडी-3086, एचडी-2967, 2733, डीबीडब्ल्यू-22, एचडी 336, यूपी 2784 व 2865 इत्यादि ही इस्तेमाल करते हैं. समय-समय पर अगर बीज बदला जाए तो उसके सार्थक परिणाम आ सकते हैं. इसे ध्यान में रख गेहूं की नौ नई प्रजातियों डीबीडब्ल्यू-222, पीबीडब्ल्यू-771, डीबीडब्ल्यू-173, डीबीडब्ल्यू-187, एचडी-3226, एचडी-3237, पीबीडब्ल्यू-752, वीएल-953 व एचडी-2967 को मान्यता दी गई है. जो पैदावार बढ़ाने में कारगर हो सकती हैं.

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उन्होंने बताया कि एक एकड़ क्षेत्र में लगभग 40 किलो गेहूं के बीज का प्रयोग करना चाहिए. एक किलो बीज को दो ग्राम बाविस्टिन और कार्बेंडाजिम से उपचारित कर बुवाई करनी चाहिए. किसानों को उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना चाहिए. गेहूं की अच्छी उपज के लिए खरीफ की फसल के बाद भूमि में 60 किग्रा. फास्फोरस और 40 किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर, देर से बुवाई करने पर 60 किग्रा. फास्फोरस और 40 किग्रा. पोटाश सहित 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर की खाद आदि का प्रयोग करना चाहिए.

गोबर की खाद और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा का प्रयोग खेत की आखिरी बुवाई के समय करना चाहिए.

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