काशीपुर: देश में यूं तो अनेकों शक्ति पीठ हैं, जिनका अपना अलग-अलग महत्व है. 51 शक्ति पीठों में एक शक्ति पीठ काशीपुर में भी स्थित है, जिनका नाम है मां बाल सुंदरी देवी. इनको चैती मंदिर भी कहा जाता है. इसीलिए हर साल चैत्र मास में यहां पर मेले का आयोजन किया जाता है. जहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और मन्नत मांगते हैं.
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उत्तर भारत का सबसे प्रसिद्ध मेला कहा जाने वाला चैती मेला सैकड़ों वर्षों से काशीपुर में लगता चला रहा है, इसका इतिहास महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है. मान्यता है कि मां भगवती की बाईं भुजा चैती में आकर गिरी थी, इसलिए इसको 51 शक्ति पीठों में एक माना जाता है. मां बाल सुंदरी देवी मंदिर में माता लक्ष्मी, माता सरस्वती और माता काली की पूजा की जाती है. यहां पूजा-अर्चना करने वाले सभी श्रद्धालुओं को मनाकामनाएं पूरी होती हैं.
मंदिर के पुजारी प्रधान पंडित विकास अग्निहोत्री ने बताया कि मैया का डोला सप्तमी की मध्यरात्रि में काशीपुर के स्थानीय मंदिर से चल कर चैती मंदिर में पहुंचता है. जहां मां बाल सुंदरी की स्वर्ण प्रतिमा स्थापित होने के बाद श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है.
मां बाल सुंदरी देवी के मंदिर से मुगल शासक औरंगजेब की भी कहानी जुड़ी है. किदवंती है कि जब मुगल शासक औरंगजेब का साम्राज्य स्थापित हुआ तो मुगल सम्राट ने देश के सभी मंदिरों को तुड़वा दिया था. मंदिर को तुड़वाते ही औरंगजेब की बहन जहांआरा की तबीयत अचानक बिगड़ने लगी. जिसके बाद औरंगजेब अपनी बहन के लिए कई मौलवियों और मजारों पर जाकर स्वास्थ्य लाभ की कामना कर रहे थे, लेकिन औरंगजेब की बहन जहांआरा की तबीयत सुधरने का नाम नहीं ले रही थी.
औरंगजेब के जानकार ने उनको चैती मंदिर की जीर्णोद्धार करने की बात कही. मां बाल सुंदरी देवी ने औरंगजेब की मनोकामना को तुरंत पूरा किया और कुछ ही दिन में उसकी बहन स्वस्थ हो गई. जिसके बाद मुगल सम्राट औरंगजेब ने ढोल-नगाड़ों के साथ काशीपुर के मां बाल सुंदरी देवी के मंदिर की जीर्णोद्धार किया और उनको नमन भी किया.
एक मान्यता और है कि मां काली की पूजा कर रहे पंडित की पूजा में विघ्न पड़ा तो पंडित ने जैसे ही आंख खुली एक वृक्ष जल कर सूख गया, जिसके बाद राजा ने मंदिर के पुजारी को उस वृक्ष को फिर से हरा भरा करने की बात कही. जैसे ही पुजारी ने कुछ जल की बूंदें पेड़ पर डालीं तो वह वृक्ष फिर से हरा-भरा हो गया.