सितारगंज: भारतीय लोगों में भिंडी की सब्जी को बहुत पसंद किया जाता है. इसकी सूखी और तरी वाली सब्जी लोगों की स्वादिष्ट लगती है. कलौंजी वाले भरवां भिंडी की तो अपनी अलग ही पहचान है. शादी विवाह जैसे समारोह तक में भिंडी की शान बनी रहती है और इसकी मांग साल भर बरकरार रहती है. हरे रंग की भिंडी तो हर किसी ने खाई होगी, लेकिन लाल रंग की भिंडी का उत्पाद सितारगंज के एक किसान ने कर दिखाया है. आइए आपको बताते हैं कि कहां और कैसे उगाई जाती है लाल रंग की भिंडी.
सितारगंज के किसान ने उगाई लाल भिंडी...
सितारगंज क्षेत्र के किसान अनिलदीप सिंह बरार ने काशी लालिमा भिंडी को अपने खेतों में उगाया है. इसका रंग बैगनी-लाल होता है. इसकी लंबाई सामान्य भिंडी जैसी ही होती है. भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ बिजेंद्र के नेतृत्व में लाल भिंडी की प्रजाति पर साल 1995-96 में शोध कार्य शुरू हो गया था. इसके बाद काशी लालिमा का विकास शुरू हुआ. इसमें डॉ. एस के सानवाल, डॉ. जी पी मिश्रा और तकनीकी सहायक सुभाष चंद्र ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया.
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जानिए लाल भिंडी की खासियत...
बताते चलें कि नई प्रजाति काशी लालिमा विकसित लाल रंग की यह भिंडी एंटी ऑक्सीडेंट, आयरन और कैल्शियम सहित अन्य पोषक तत्वों से भरपूर होती है. इसकी खासियत यह है कि ये भिंडी गर्भवती महिलाओं, शुगर मरीज और दिल की बीमारियों के लिए सबसे अधिक स्वास्थ्य वर्धक है. गर्भ में पलने वाले शिशु के मस्तिष्क के विकास के लिए ये बहुत ही उपयोगी होती है. गर्भवती महिलाएं इस लाल भिंडी का सेवन करें तो उनके अंदर फोलिक एसिड की कमी दूर हो जाती है.
विदेशों में हो चुका है उत्पादन...
गौर हो कि इससे पहले इस प्रकार की अनोखी भिंडी को अमेरिका के क्लीमसन विश्वविद्यालय में उगाया जा चुका है. अमेरिका में तो इस लाल भिंडी की पैदावार हो गई थी, लेकिन भारत में यह पैदा नहीं हो पाई थी. लाल रंग की भिंडी अभी तक पश्चिमी देशों में ही उगाई जा रही है और यह भारत में आयात होती है. इसकी विभिन्न प्रजातियों की कीमत 150 से 600 रुपये किलो तक है. इसके बाद 1995 से भिंडी की नई प्रजाति पर रिसर्च जारी था. किसान अनिलदीप सिंह बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में हमने लाल भिंडी पर विशेष ध्यान दिया और इसे विकसित कर लिया है.
अब इस देसी प्रजाति के विकसित होने के बाद भारत के अन्य किसान भी इसका उत्पादन कर सकेंगे. संस्थान में इसके बीज आम लोगों के लिए उपलब्ध हो सकेंगे. पोषक तत्वों से भरपूर इस भिंडी के उत्पादन से भारतीय किसानों को फायदा भी मिलेगा. इसके साथ ही इसकी मांग अंतरराष्ट्रीय मार्केट में भी है. भारत के साथ ही अमेरिका, मिस्र, मोरक्को, अफ्रीका में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है. सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी के अनुसार इस भिंडी का रंग बैगनी और लाल रंग का होता है. इस भिंडी की लंबाई 11-14 सेमी और व्यास 1.5 और 1.6 सेमी होती है. यह 130 से 140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है.
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इसके साथ ही किसान अनिलदीप सिंह ने गेहूं और धान की भी कुछ अलग किस्म की पैदावार की है. इनका रंग 4-5 अलग-अलग तरीके का पाया गया है. इसकी जानकारी देते हुए अनिलदीप सिंह ने बताया कि यह अलग रंग के अनाज लोगों की सेहत के लिए बहुत फायदेमंद हैं. बता दें कि किसान अनिलदीप नई-नई किस्म की खेती करने के शौकीन हैं. उन्होंने अपने फार्म हाउस में विपरीत जलवायु के बाद भी अनोखे प्रकार की प्रजातियों के फूल और पौधे भी उगाए हैं, जिनकी पैदावार ऐसी जलवायु में मुमकिन नहीं है. इनमें हींग, रुद्राक्ष, कपूर जैसे कई उत्पाद शामिल हैं.
किसानों को होगा फायदा...
इसके साथ ही किसान अनिलदीप सिंह ने कई अन्य प्रकार की खेती की है जो इस क्षेत्र के लिए अनोखी मानी जा रही है. इसमें ब्रोकली, पासले और अलग-अलग प्रकार के बांस लगा रखे हैं. अनिलदीप सिंह बताते हैं कि इस कार्य में उनकी बेटी गुरवीना महल उनका बहुत सहयोग करती हैं. उसी की मेहनत से उनको अनोखी भिंडी उगाने का अवसर प्राप्त हुआ. उनका कहना है कि आने वाले दिनों में शहरी क्षेत्रों में लाल रंग की भिंडी की भारी मांग होगी और इसका उत्पादन करने वाले किसानों को बहुत लाभ होगा.