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चाइनीज लाइटों से फीकी पड़ रही दीयों की चमक, दिवाली पर कैसे रोशन होंगे कुम्हारों के आशियाने?

देशभर में दीपावली को लेकर बाजारों में रौनक देखी जा रही है. वहीं, इसके बावजूद कुम्हारों के मेहनत से बनाये दीयों और मिट्टी के सामानों को खरीदार नहीं मिल रहे हैं. पिछले कई सालों से लोग बड़ी ही कम संख्या में दीये खरीद रहे हैं. जिससे इन कुम्हारों के आजीवका पर संकट मंडरा रहा है.

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कैसे रोशन होंगे कुम्हारों के आशियाने
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Published : Oct 22, 2022, 4:37 PM IST

Updated : Oct 22, 2022, 5:34 PM IST

काशीपुर: दो दिन बाद देशभर में बड़े ही हर्षोल्लास से दिवाली मनाई जाएगी. दीपावली को लेकर बाजारों में रौनक दिख रही है. कोरोना काल में 2 साल बाद लोग इस बार खुलकर खरीदारी कर रहे हैं. ऐसे में मिट्टी के दीये बनाने वाले कारीगर अपनी मेहनत को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं, लेकिन बाजारों में बिजली की झालरों और चाइनीज लड़ियों के साथ इलेक्ट्रॉनिक लाइटों की बड़ी संख्या में बिक्री है. जिसके कारण दीये बनाने वाले मिट्टी के कारीगर की उम्मीदों की रोशनी फीकी पड़ती नजर आ रही है.

दीपावली मतलब दीयों का त्योहार. हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक दिवाली में लोग अपने घरों को पहले दीयों से सजाते थे, लेकिन पिछले कई सालों से जगमगाती झालरों, चाइनीज लड़ियां और रंग बिरंगी लाइटों की वजह से इन दीयों की चमक फीकी पड़ती नजर आ रही है. साल दर साल मिट्टी के दीयों की बिक्री में कमी देखी जा रही है. अगर मिट्टी के कारीगरों की बात की जाए तो यह लोग भी अन्य लोगों की तरह दीपावली के त्योहार से काफी उम्मीद रखते हैं, लेकिन दीयों की बिक्री कम होने से इन गरीब कुम्हारों परिवारों पर रोजी रोटी का संकट गहरा गया है.

चाइनीज लाइटों से फीकी पड़ रही दीयों की चमक.

ऐसे में ईटीवी भारत आपको दिखाने जा रहा है, इन कुम्हारों की कहानी. काशीपुर में आबादी क्षेत्र से 2 किलोमीटर दूर स्थित स्टेडियम के पास दक्ष प्रजापति चौक पर इन मिट्टी के कारीगरों के आशियाने हैं. जहां ये कुम्हार जी जान से मेहनत से दीये बनाने में जुटे हुए हैं. ये कुम्हार दीये, कलश और मिट्टी के अन्य सामानों की बिक्री कर दीपावली पर खूब पैसे कमाने की उम्मीद कर रहे हैं, लेकिन कई सालों से दीपावली पर बाजार में इलेक्ट्रॉनिक झालर, दीये और चाइनीज लड़ियों ने इन कुम्हारों की चाक की रफ्तार को धीमा कर दिया है.
ये भी पढ़ें: अबकी बार दिवाली पटाखों वाली या नहीं?, सुनिये लोगों के मजेदार रिएक्शन

गौरतलब है कि साल में एक ही बार दीपावली का त्योहार आता है. इस त्योहार में मिट्टी के दिए, पुरुए, हठली और करवे आदि की बिक्री से ही इन गरीब कुम्हार परिवार की आस बंधी रहती है. कुम्हार आदेश प्रजापति बताते हैं कि दीपावली को लेकर वह पिछले 3 महीने से मिट्टी के दिए और अन्य सामान को बनाने में जुटे हैं. वह दीपावली को लेकर छोटे चिराग, बड़े चिराग, हठली, दीए पुरवे आदि तैयार करते हैं.

वहीं, अपनी परेशानी को लेकर आदेश कहते हैं कि हमें किसी भी तरह की सुविधा नहीं मिलती है. कुम्हारों की मिट्टी को आसपास के भू माफिया ने अपने खेतों में मिला लिया है. जिस कारण मिट्टी के कारीगरों को अपने कारोबार के लिए सही से मिट्टी नहीं मिल पाती है. इसके बावजूद अपनी 3 महीने की मेहनत को लेकर जब कुम्हार बाजार में जाते हैं तो, ग्राहक उनकी मेहनत को नजरअंदाज करते हुए इलेक्ट्रॉनिक दीयों की तरफ अपना रुख करते हैं. ऐसे में बाजार में मिट्टी के बने उत्पाद को बेचते इन कारीगरों के दिल से यही आवाज निकलती है. 'बनाकर दिए मिट्टी के, जरा सी आस पाली है', 'मेरी मेहनत खरीदो लोगों, मेरे घर भी दिवाली है'.

काशीपुर: दो दिन बाद देशभर में बड़े ही हर्षोल्लास से दिवाली मनाई जाएगी. दीपावली को लेकर बाजारों में रौनक दिख रही है. कोरोना काल में 2 साल बाद लोग इस बार खुलकर खरीदारी कर रहे हैं. ऐसे में मिट्टी के दीये बनाने वाले कारीगर अपनी मेहनत को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं, लेकिन बाजारों में बिजली की झालरों और चाइनीज लड़ियों के साथ इलेक्ट्रॉनिक लाइटों की बड़ी संख्या में बिक्री है. जिसके कारण दीये बनाने वाले मिट्टी के कारीगर की उम्मीदों की रोशनी फीकी पड़ती नजर आ रही है.

दीपावली मतलब दीयों का त्योहार. हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक दिवाली में लोग अपने घरों को पहले दीयों से सजाते थे, लेकिन पिछले कई सालों से जगमगाती झालरों, चाइनीज लड़ियां और रंग बिरंगी लाइटों की वजह से इन दीयों की चमक फीकी पड़ती नजर आ रही है. साल दर साल मिट्टी के दीयों की बिक्री में कमी देखी जा रही है. अगर मिट्टी के कारीगरों की बात की जाए तो यह लोग भी अन्य लोगों की तरह दीपावली के त्योहार से काफी उम्मीद रखते हैं, लेकिन दीयों की बिक्री कम होने से इन गरीब कुम्हारों परिवारों पर रोजी रोटी का संकट गहरा गया है.

चाइनीज लाइटों से फीकी पड़ रही दीयों की चमक.

ऐसे में ईटीवी भारत आपको दिखाने जा रहा है, इन कुम्हारों की कहानी. काशीपुर में आबादी क्षेत्र से 2 किलोमीटर दूर स्थित स्टेडियम के पास दक्ष प्रजापति चौक पर इन मिट्टी के कारीगरों के आशियाने हैं. जहां ये कुम्हार जी जान से मेहनत से दीये बनाने में जुटे हुए हैं. ये कुम्हार दीये, कलश और मिट्टी के अन्य सामानों की बिक्री कर दीपावली पर खूब पैसे कमाने की उम्मीद कर रहे हैं, लेकिन कई सालों से दीपावली पर बाजार में इलेक्ट्रॉनिक झालर, दीये और चाइनीज लड़ियों ने इन कुम्हारों की चाक की रफ्तार को धीमा कर दिया है.
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गौरतलब है कि साल में एक ही बार दीपावली का त्योहार आता है. इस त्योहार में मिट्टी के दिए, पुरुए, हठली और करवे आदि की बिक्री से ही इन गरीब कुम्हार परिवार की आस बंधी रहती है. कुम्हार आदेश प्रजापति बताते हैं कि दीपावली को लेकर वह पिछले 3 महीने से मिट्टी के दिए और अन्य सामान को बनाने में जुटे हैं. वह दीपावली को लेकर छोटे चिराग, बड़े चिराग, हठली, दीए पुरवे आदि तैयार करते हैं.

वहीं, अपनी परेशानी को लेकर आदेश कहते हैं कि हमें किसी भी तरह की सुविधा नहीं मिलती है. कुम्हारों की मिट्टी को आसपास के भू माफिया ने अपने खेतों में मिला लिया है. जिस कारण मिट्टी के कारीगरों को अपने कारोबार के लिए सही से मिट्टी नहीं मिल पाती है. इसके बावजूद अपनी 3 महीने की मेहनत को लेकर जब कुम्हार बाजार में जाते हैं तो, ग्राहक उनकी मेहनत को नजरअंदाज करते हुए इलेक्ट्रॉनिक दीयों की तरफ अपना रुख करते हैं. ऐसे में बाजार में मिट्टी के बने उत्पाद को बेचते इन कारीगरों के दिल से यही आवाज निकलती है. 'बनाकर दिए मिट्टी के, जरा सी आस पाली है', 'मेरी मेहनत खरीदो लोगों, मेरे घर भी दिवाली है'.

Last Updated : Oct 22, 2022, 5:34 PM IST
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