नैनीताल: बदरीनाथ केदारनाथ सहित 51 अन्य मंदिरों को देवस्थानम बोर्ड के तहत लाने के मामले पर आज हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ में एक बार फिर सुनवाई हुई. इस दौरान राज्य सरकार ने कोर्ट में अपना विस्तृत रूप से पक्ष रखा. गुरुवार को राज्य सरकार की तरफ से सुनवाई पूरी हो गयी. अब इस मामले में कल यानि शुक्रवार को देहरादून की रूलक लिटिगेशन संस्था अपना पक्ष रखेगी.
राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि 1933 में पंडित मदन मोहन मालवीय ने बदरीनाथ और केदारनाथ में भ्रष्टाचार का मामला उठाया था. साथ ही आंदोलन भी किया गया. जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने 1939 में बीकेटीसी एक्ट बनाया. जिसमें साफ लिखा है कि बदरीनाथ और केदारनाथ मंदिर में हो रहे भ्रष्टाचार को खत्म करने और श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधा देने के लिए यह एक्ट बनाया गया. जो आज भी वजूद में है, और उसी एक्ट को अपग्रेड कर देवस्थानम बोर्ड बनाया गया है.
बता दें कि राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि उत्तराखंड सरकार द्वारा बदरीनाथ केदारनाथ मंदिरों समिति 51 अन्य मंदिरों के संचालन के लिए देवस्थानम बोर्ड बनाया गया है, जो पूर्ण रूप से असंवैधानिक है. याचिका में कहा गया है कि देवस्थानम बोर्ड के माध्यम से सरकार द्वारा चारधाम समेत करीब 51 अन्य मंदिरों का प्रबंधन अपने हाथ में लेना चाहती है. जो संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 का उल्लंघन है.
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वहीं, सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका के खिलाफ देहरादून की रूलर लिटिगेशन संस्था ने हाईकोर्ट में इंटरवेंशन एप्लीकेशन दायर कर कहा है कि राज्य सरकार द्वारा बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति को देवस्थानम बोर्ड के तहत लाना बिल्कुल सही है. सरकार के फैसले से किसी भी आस्था को नुकसान नहीं पहुंचता. लिहाजा, सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका को खारिज किया जाए.