खटीमाः किसान आंदोलन (farmers agitation) को आज एक साल पूरे हो गए हैं. हालांकि, किसानों के आंदोलन के बाद केंद्र सरकार ने कृषि कानून (farm laws repealed) वापस ले लिया है, लेकिन अब किसान एमएसपी पर कानून (MSP law) बनाने, आंदोलन में मारे गए किसानों के परिजनों को मुआवजा समेत कई मांगों पर अड़े हैं. इसी कड़ी में किसान संयुक्त मोर्चा के आह्वान पर सितारगंज से किसान दिल्ली रवाना हो गए हैं.
बता दें कि कृषि कानूनों के विरोध में एक साल पहले किसानों ने आंदोलन (One Year of kisan andolan) शुरू किया गया था. आंदोलन के एक साल पूरा होने पर किसान संयुक्त किसान मोर्चा (Samyukt Kisan Morcha) के आह्वान पर पूरे देशभर से किसान गाजीपुर बॉर्डर पर इकट्ठे हो रहे हैं.
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गुरुद्वारे में मत्था टेक कर रवाना हुए किसानः इसी कड़ी में उधम सिंह नगर जिले के सितारगंज से भी दर्जनों किसान गाजीपुर बॉर्डर के लिए रवाना हो गए हैं. इससे पहले किसान सितारगंज के आगरा गुरु का ताल गुरुद्वारा में इकट्ठा हुए. जहां किसानों ने गुरुद्वारा साहिब में मत्था टेक और दिल्ली के लिए रवाना हुए.
दिल्ली जा रहे किसानों का कहना है कि आज से एक साल पहले उन्होंने कृषि कानूनों को समाप्त करने, एमएसपी लागू करने समेत कई मांगों को लेकर आंदोलन शुरू किया था. जिसमें कृषि कानूनों को तो मोदी सरकार ने रद्द कर दिया है, लेकिन अभी भी उनकी कई मांगे बाकी हैं. जब तक केंद्र सरकार एमएससी पर कानून नहीं बनाएगी. साथ ही किसान आंदोलन में शहीद हुए किसानों के परिवारों को मुआवजा नहीं देगी. तब तक उनका यह आंदोलन जारी रहेगा.
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वहीं, गाजीपुर बॉर्डर (Ghazipur Border) पर शुक्रवार काे किसान पंचायत आयोजित होगी. 27 नवंबर को होने वाली संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक से पहले यह पंचायत काफी अहम है. इसमें आंदोलन की दिशा और दशा के अलावा आगे की रणनीति पर सभी किसान मशवरा करेंगे. राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) भी इस पंचायत में शामिल होंगे.
किसान पंचायत के लिए उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से बड़ी संख्या में किसान गाजीपुर बॉर्डर (Ghazipur Border) पहुंच गए हैं. आंदोलन के एक साल पूरा होने पर मृत किसानों को श्रद्धांजलि कार्यक्रम (Tribute program at Ghazipur border) भी रखा गया है.
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आखिर क्या है एमएसपी? किसी भी फसल पर न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी (Minimum support price) किसानों के लिए एक गारंटी का काम करती है. इसका मतलब है कि सरकार ने जो खरीद मूल्य निर्धारित कर दिए हैं, उससे कम पर किसान की फसल नहीं बिकेगी. अगर बाजार में रेट कम है तो सरकार वो अनाज खुद खरीदेगी. हालांकि, इसका लाभ देश के काफी कम किसानों को ही मिल पाता है.