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टिहरीः बिना श्मशान घाट के हैं 42 गांव, जान जोखिम में डाल करते हैं शवों का दाह संस्कार - टिहरी झील में डूबे श्मशान घाट

टिहरी के रौलाकोट समेत 42 गांवों के लिए श्मशान घाट की सुविधा नहीं है. आलम ये है कि जान जोखिम में डालकर लोग टिहरी झील के किनारे शवों का अंतिम संस्कार करते हैं. बावजूद इसके टीएचडीसी और पुनर्वास विभाग आंखें मूंदे बैठे हैं.

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टिहरी
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Published : Sep 10, 2021, 4:02 PM IST

टिहरी: टिहरी बांध बनने से टिहरी वासियों को फायदा हुआ तो दूसरी तरफ नुकसान भी हुआ. 15 साल से पहले टिहरी बांध का निर्माण हुआ. लेकिन तब से टिहरी बांध की झील के आस-पास के गांवों के लिए श्मशान घाट नहीं बन पाया है. ये हालत तब है जब नदी किनारे शवों का दाह संस्कार करते हुए कई घटनाएं घट चुकी हैं. बावजूद इसके THDC व पुनर्वास विभाग लोगों की मांग पर चुप्पी साधे बैठे हैं.

15 साल पहले टिहरी बांध का निर्माण हुआ तो 42 वर्ग किलोमीटर तक टिहरी बांध की झील बन गई. इस दौरान लोगों के शव गृह भी झील में डूब गए. अब लोगों को झील के किनारे ही शवों का दाह संस्कार करना पड़ता है. सबसे ज्यादा प्रभावित इससे रौलाकोट गांव के ग्रामीण हैं. क्योंकि रौलाकोट गांव के नीचे नदी किनारे पालेंन नाम की जगह पर एक पैतृक श्मशान घाट हुआ करता था, जिसमें रेका पट्टी के 42 गांवों के लोग शवों का अंतिम संस्कार करने के लिए जाते थे. लेकिन टिहरी झील बनने के बाद अब ग्रामीणों को झील के किनारे ही जान जोखिम में डालकर शवों का अंतिम संस्कार करना पड़ता है.

शवदाह में जान का जोखिम

ये भी पढ़ेंः नैनीताल में ठंडी सड़क क्षेत्र में हुआ भूस्खलन, नैनीझील में गिर रहा मलबा

कई बार शवों के दाह संस्कार के दौरान लोगों के डूबने जैसी घटनाएं भी हो चुकी हैं. ये हाल तब है जब घाट बनाने के लिए पुनर्वास विभाग के पास 65 लाख रुपये की राशि उपलब्ध है. लेकिन पुनर्वास विभाग घाट निर्माण पर बिल्कुल पर ध्यान नहीं दे रहा है. वहीं, अब रौलाकोट सहित 42 गांवों के ग्रामीणों ने पुनर्वास विभाग और टीएसडीसी को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर जल्दी ही रौलाकोट गांव के नीचे श्मशान घाट नहीं बनाया गया तो शासन-प्रशासन के खिलाफ बड़ा आंदोलन किया जाएगा.

वहीं, पुनर्वास विभाग के अधिशासी अभियंता दिनेश कुमार नेगी का कहना है कि इस मामले पर साइट विजिट करने के बाद श्मशान घाट बनाने की कार्रवाई की जाएगी.

टिहरी: टिहरी बांध बनने से टिहरी वासियों को फायदा हुआ तो दूसरी तरफ नुकसान भी हुआ. 15 साल से पहले टिहरी बांध का निर्माण हुआ. लेकिन तब से टिहरी बांध की झील के आस-पास के गांवों के लिए श्मशान घाट नहीं बन पाया है. ये हालत तब है जब नदी किनारे शवों का दाह संस्कार करते हुए कई घटनाएं घट चुकी हैं. बावजूद इसके THDC व पुनर्वास विभाग लोगों की मांग पर चुप्पी साधे बैठे हैं.

15 साल पहले टिहरी बांध का निर्माण हुआ तो 42 वर्ग किलोमीटर तक टिहरी बांध की झील बन गई. इस दौरान लोगों के शव गृह भी झील में डूब गए. अब लोगों को झील के किनारे ही शवों का दाह संस्कार करना पड़ता है. सबसे ज्यादा प्रभावित इससे रौलाकोट गांव के ग्रामीण हैं. क्योंकि रौलाकोट गांव के नीचे नदी किनारे पालेंन नाम की जगह पर एक पैतृक श्मशान घाट हुआ करता था, जिसमें रेका पट्टी के 42 गांवों के लोग शवों का अंतिम संस्कार करने के लिए जाते थे. लेकिन टिहरी झील बनने के बाद अब ग्रामीणों को झील के किनारे ही जान जोखिम में डालकर शवों का अंतिम संस्कार करना पड़ता है.

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कई बार शवों के दाह संस्कार के दौरान लोगों के डूबने जैसी घटनाएं भी हो चुकी हैं. ये हाल तब है जब घाट बनाने के लिए पुनर्वास विभाग के पास 65 लाख रुपये की राशि उपलब्ध है. लेकिन पुनर्वास विभाग घाट निर्माण पर बिल्कुल पर ध्यान नहीं दे रहा है. वहीं, अब रौलाकोट सहित 42 गांवों के ग्रामीणों ने पुनर्वास विभाग और टीएसडीसी को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर जल्दी ही रौलाकोट गांव के नीचे श्मशान घाट नहीं बनाया गया तो शासन-प्रशासन के खिलाफ बड़ा आंदोलन किया जाएगा.

वहीं, पुनर्वास विभाग के अधिशासी अभियंता दिनेश कुमार नेगी का कहना है कि इस मामले पर साइट विजिट करने के बाद श्मशान घाट बनाने की कार्रवाई की जाएगी.

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