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पौड़ी में मौजूद चंद्रशेखर आजाद की स्मृतियों से अंजान हैं सांसद तीरथ सिंह रावत

शहीदे-ए-आजम चंद्रशेखर आजाद का पौड़ी जिले की दुगड्डा नगरी से गहरा नाता रहा है. उन्होंने यहां अपने साथियों को निशानेबाजी का अभ्यास कराया था, लेकिन स्थानीय सांसद तीरथ सिंह रावत को इस बात की जानकारी ही नहीं है.

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Published : Aug 26, 2019, 12:43 PM IST

कोटद्वारः आजादी के नायक क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का पौड़ी जिले की दुगड्डा नगरी से गहरा नाता रहा है. इस नगरी में आजाद ने अपने साथियों के समक्ष अचूक निशानेबाजी का प्रमाण दिया. आज भी दुगड्डा में यह स्थान शहीद स्मारक के नाम से जाना जाता है, लेकिन बड़ी दुर्भाग्य की बात है कि गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत को इस स्थान का आज तक पता ही नहीं है और वे कहते हैं कि अगर आपने मेरे संज्ञान में मामला लाए हैं तो जरूर इसको ढूंढा जाएगा और उसका सुनियोजित ढंग से विकास किया जाएगा.

क्रांतिकारी दल के लिए धन जुटाने के उद्देश्य से 6 जुलाई 1930 को चंद्रशेखर आजाद ने भवानी सिंह रावत, काशीराम, धनवंतरी, विद्याभूषण और विशंभर दयाल के साथ गडोडिया स्टोर चांदनी चौक दिल्ली में हुई डकैती में शामिल हुए.

उस दौरान पुलिस की सक्रियता बढ़ने के कारण चंद्रशेखर आजाद एक ऐसे स्थान की तलाश में थे, जहां वह अपने युवा साथियों को बंदूक और पिस्तौल से सही निशाना लगाने का अभ्यास करा सकें. तब भवानी सिंह रावत ने बताया कि उनका गांव नाथूपुर पौड़ी गढ़वाल जिले में जंगल के पास स्थित है.

शहीद चंद्रशेखर आजाद स्मारक से अनभिज्ञ सांसद तीरथ रावत.

वहां पर हथियार चलाने का अभ्यास किया जा सकता है. आजाद ने भवानी सिंह रावत का निमंत्रण स्वीकार किया और सन 1930 के जुलाई माह के दूसरे सप्ताह में रात्रि को नाथूपुर के लिए रवाना हुए. नाथूपुर के पास जंगलों में आजाद ने अपने साथियों को निशानेबाजी का अभ्यास कराया.

नाथूपुर से दिल्ली वापस जाते समय महान क्रांतिकारी विशंभर दयाल ने पिस्तौल से अचूक निशाना लगाया गया था, उसका अवशेष आज भी पार्क में मौजूद है.

गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत से पूछा गया कि दुगड्डा के समीप नाथूपुर में चंद्रशेखर आजाद ने अपने अचूक निशाने का अभ्यास किया था और अब वह पेड़ जिस पर अचूक निशाने से गोली लगी थी उस पेड़ का कुछ हिस्सा आज भी उस पार्क में है, तो गढ़वाल सांसद का कहना है कि मामला मेरे संज्ञान में नहीं है.

यह भी पढ़ेंः कैंसर पीड़ित की मदद के लिए आगे आए छात्र-छात्राएं, डोर टू डोर चलाएंगे अभियान

अगर आपने बताया है तो हम इस ओर जरूर आगे बढ़ेंगे. अगर पार्क उनके नाम से है तो उसके जीर्णोद्धार की जिम्मेदारी का काम हमारा है. उसको ढूंढा जाएगा. यदि वह स्थान नगर पालिका के अंतर्गत है तो नगर पालिका से उसका जीणोद्धार करवाया जाएगा, नहीं तो जिला प्रशासन और स्थानीय प्रशासन उसका जीर्णोद्धार करेगा.

उन्होंने कहा कि मोदी जी का तो इस ओर विशेष ध्यान है अगर जैसे दुगड्डा के समीप चंद्रशेखर आजाद के नाम से अगर पार्क है, तो उसे सुनियोजित ढंग से विकसित करना हमारा काम है. वहां की नगर पालिका, जिला प्रशासन, स्थानीय प्रशासन उसको सुनियोजित तरीके से विकसित करेगा. उनके नाम के साथ किसी तरह भी खिलवाड़ नहीं होने दिया जाएगा.

कोटद्वारः आजादी के नायक क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का पौड़ी जिले की दुगड्डा नगरी से गहरा नाता रहा है. इस नगरी में आजाद ने अपने साथियों के समक्ष अचूक निशानेबाजी का प्रमाण दिया. आज भी दुगड्डा में यह स्थान शहीद स्मारक के नाम से जाना जाता है, लेकिन बड़ी दुर्भाग्य की बात है कि गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत को इस स्थान का आज तक पता ही नहीं है और वे कहते हैं कि अगर आपने मेरे संज्ञान में मामला लाए हैं तो जरूर इसको ढूंढा जाएगा और उसका सुनियोजित ढंग से विकास किया जाएगा.

क्रांतिकारी दल के लिए धन जुटाने के उद्देश्य से 6 जुलाई 1930 को चंद्रशेखर आजाद ने भवानी सिंह रावत, काशीराम, धनवंतरी, विद्याभूषण और विशंभर दयाल के साथ गडोडिया स्टोर चांदनी चौक दिल्ली में हुई डकैती में शामिल हुए.

उस दौरान पुलिस की सक्रियता बढ़ने के कारण चंद्रशेखर आजाद एक ऐसे स्थान की तलाश में थे, जहां वह अपने युवा साथियों को बंदूक और पिस्तौल से सही निशाना लगाने का अभ्यास करा सकें. तब भवानी सिंह रावत ने बताया कि उनका गांव नाथूपुर पौड़ी गढ़वाल जिले में जंगल के पास स्थित है.

शहीद चंद्रशेखर आजाद स्मारक से अनभिज्ञ सांसद तीरथ रावत.

वहां पर हथियार चलाने का अभ्यास किया जा सकता है. आजाद ने भवानी सिंह रावत का निमंत्रण स्वीकार किया और सन 1930 के जुलाई माह के दूसरे सप्ताह में रात्रि को नाथूपुर के लिए रवाना हुए. नाथूपुर के पास जंगलों में आजाद ने अपने साथियों को निशानेबाजी का अभ्यास कराया.

नाथूपुर से दिल्ली वापस जाते समय महान क्रांतिकारी विशंभर दयाल ने पिस्तौल से अचूक निशाना लगाया गया था, उसका अवशेष आज भी पार्क में मौजूद है.

गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत से पूछा गया कि दुगड्डा के समीप नाथूपुर में चंद्रशेखर आजाद ने अपने अचूक निशाने का अभ्यास किया था और अब वह पेड़ जिस पर अचूक निशाने से गोली लगी थी उस पेड़ का कुछ हिस्सा आज भी उस पार्क में है, तो गढ़वाल सांसद का कहना है कि मामला मेरे संज्ञान में नहीं है.

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अगर आपने बताया है तो हम इस ओर जरूर आगे बढ़ेंगे. अगर पार्क उनके नाम से है तो उसके जीर्णोद्धार की जिम्मेदारी का काम हमारा है. उसको ढूंढा जाएगा. यदि वह स्थान नगर पालिका के अंतर्गत है तो नगर पालिका से उसका जीणोद्धार करवाया जाएगा, नहीं तो जिला प्रशासन और स्थानीय प्रशासन उसका जीर्णोद्धार करेगा.

उन्होंने कहा कि मोदी जी का तो इस ओर विशेष ध्यान है अगर जैसे दुगड्डा के समीप चंद्रशेखर आजाद के नाम से अगर पार्क है, तो उसे सुनियोजित ढंग से विकसित करना हमारा काम है. वहां की नगर पालिका, जिला प्रशासन, स्थानीय प्रशासन उसको सुनियोजित तरीके से विकसित करेगा. उनके नाम के साथ किसी तरह भी खिलवाड़ नहीं होने दिया जाएगा.

Intro:summary गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत को नहीं पता कि चंद्रशेखर आजाद का दुगड्डा से गहरा नाता था, उनसे पूछे जाने पर उनका कहना है कि अगर आपने हमें बताया है तो इसकी ढूंढ की जाएगी, अब सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर ऐसे में कैसे गढ़वाल का विकास होगा।

intro आजादी के नायक क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का पौड़ी जिले की दुगड्डा नगरी से गहरा नाता रहा है, इस नगरी में आजाद ने अपने साथियों के समक्ष अचूक निशाने बाजी का प्रमाण दिया आज भी दुगड्डा में यह स्थान शहीद स्मारक के नाम से जाना जाता है, बड़ी दुर्भाग्य की बात है कि गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत को इस स्थान का आज तक पता ही नहीं है और वह कहते हैं कि अगर आपने मेरे संज्ञान में मामला लाए हैं तो जरूर इसकी ढूंढ की जाएगी और उसका सुनियोजित ढंग से विकास किया जाएगा।



Body:वीओ1- क्रांतिकारी दल के लिए धन जुटाने के उद्देश्य से 6 जुलाई 1930 को चंद्र शेखर आजाद भवानी सिंह रावत काशीराम, धनवंतरी, विद्याभूषण, और विशंभर दयाल के साथ गडोडिया स्टोर चांदनी चौक दिल्ली में डकैती अभियान में भाग लिया था, उस दौरान पुलिस की सक्रियता बढ़ने के कारण चंद्र शेखर आजाद एक ऐसे स्थान की तलाश में थे, जहां वह अपने युवा साथियों को बंदूक और पिस्तौल से सही निशाना लगाने का अभ्यास करा सके, तब भवानी सिंह रावत ने बताया कि उनका गांव नाथूपुर पौडी गढ़वाल जिले में जंगल के पास स्थित है, वहां पर निरापद ढंग से हथियार चलाने का अभ्यास किया जा सकता है, चंद शेखर आजाद ने भवानी सिंह रावत का निमंत्रण स्वीकार किया और सन 1930 के जुलाई माह के दूसरे सप्ताह में रात्रि को नाथूपुर के लिए रवाना हुए, नाथूपुर के पास जंगलों में आजाद ने अपने साथियों को निशानेबाजी का अभ्यास कराया रास्ते में विशंभर दयाल अन्य साथियों के आगरा पर आजाद ने खड़े पेड़ के पत्ते पर निशाना लगा नाथूपुर से दिल्ली वापस जाते समय महान क्रांतिकारी विशंभर दयाल के आगरा पिस्तौल से अचूक निशाना लगाया था उसका अवशेष आज भी पार्क में मौजूद है।

वीओ2- गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत से पूछा गया कि दुगड्डा के समीप नाथूपुर में चंद्रशेखर आजाद ने अपना अचूक निशाने का अभ्यास किया था, और अब वह पेड़ जिस पर अचूक निशाने से गोली लगी थी वह पेड़ का कुछ हिस्सा आज भी उस पार्क में है, तो गढ़वाल सांसद का कहना है कि मामला मेरे संज्ञान में नहीं है अगर आपने बताया है तो हम इस ओर जरूर आगे बढ़ेंगे, यदि पार्क उनके नाम से है तो उसके जीर्णोद्धार की जिम्मेदारी का काम हमारा है, उसकी ढूंढ की जाएगी यदि वह स्थान नगरपालिका के अंतर्गत है तो नगरपालिका से उसका जीणोद्धार करवाया जाएगा, नहीं तो जिला प्रशासन और स्थानीय प्रशासन उसका जीर्णोद्धार करेगा, मोदी जी का तो इस ओर विशेष ध्यान है, अगर जैसे दुगड्डा के समीप चंद्रशेखर आजाद के नाम से अगर पार्क है तो उसे सुनियोजित ढंग से विकसित करना हमारा काम है, वहां की नगर पालिका जिला प्रशासन स्थानीय प्रशासन उसको सुनियोजित तरीके से विकसित करेगा उनके नाम के साथ किसी तरह भी खिलवाड़ नहीं होने दिया जाएगा।

बाइट तीरथ सिंह रावत


Conclusion:उसके ढूंढ की जाएगी यदि नगरपालिका के अंदर है तो उसकी धुन की जाएगी यदि वह स्थान नगरपालिका के अंदर है तो उसकी ढूंढ की जाएगी
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