टिहरी: उत्तराखंड को प्रकृति ने अपने नेमत से संवारा है. उच्च हिमालयी क्षेत्र में कई ऐसे बुग्याल हैं, जो बेहद खूबसूरत हैं. बुग्यालों की मखमली घास रोमानियत का एहसास कराती है. बुग्यालों की प्राकृतिक नैसर्गिक छटा सैलानियों को बरबस ही अपनी ओर खींच लाती है. यहां एक बार आने वाले पर्यटक बार-बार आना चाहते हैं.
प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज पांवली कांठा बुग्याल
बुग्यालों की मखमली हरियाली, प्रकृति के बीच किलकारियां और अठखेलियां करते वन्य जीव, पक्षियों की चहचहाहट सैलानियों को मदहोश कर देती है. कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है, पंवाली कांठा बुग्याल में. जब पर्यटक यहां पहुंचते हैं तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता. पर्यटकों ने हिमालयी नैसर्गिक सौन्दर्य को स्वर्ग की अनुभूति से नवाजा. हालांकि, वो सरकार की उदासीनता से खासे नाराज हैं. उनका कहना है कि सरकार थोड़ा सा प्रयास करें तो बुग्यालों को पर्यटन से आसानी से जोड़ा जा सकता है.
बुग्याल पहुंचने के लिए राह नहीं आसान
पांवली कांठा बुग्याल टिहरी जिले के घनसाली विधानसभा के अंतर्गत आता है. यह उत्तराखंड का सबसे बड़ा बुग्याल होने के साथ ही काफी सुंदर ट्रैक भी माना जाता है. यह कई विभिन्न प्रकार के खिले फूल और जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं. टिहरी से घनसाली होते हुए घुत्तू से 18 किलोमीटर के खड़ी चढ़ाई पैदल चलकर यहां पहुंचा जाता है, जहां पथरीले रास्ते सैलानियों का इम्तिहान लेते हैं. यहां सूर्योदय और सूर्यास्त को देखने पर्यटक दूर-दूर से पहुंचते हैं. बता दें कि यह ट्रैक गंगोत्री से केदारनाथ के प्राचीन मार्ग पर पड़ता है. यह शिवालिक रेंज और हिमालय के बीच में स्थित है. लेकिन सरकार और जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा से यह बुग्याल पर्यटन के मानचित्र पर अपनी जगह नहीं बना पाया है.
क्या कह रहे जिम्मेदार अधिकारी?
वहीं, पर्यटन विकास अधिकारी एसएस यादव ने बताया कि घुत्तू से पंवाली कांठा तक 18 किलोमीटर के मार्ग में 4 किलोमीटर सिविल भूमि है और शेष वनभूमि में आती है. 4 किलोमीटर की सिविल भूमि के काम करवा दिया गया है. शेष भूमि वन विभाग के अंतर्गत आने से विभाग ही कार्य करायेगा. वहीं वन विभाग के प्रभागीय अधिकारी डॉ कोको रोसो का कहना है कि पंवाली कांठा के 18 किलोमीटर के बीच मे भूमि धसाव होने के कारण रास्ते खराब है. जिसको ठीक करने का प्रस्ताव बनाया गया है और मंजूरी मिलने पर जल्द कार्य शुरू कर दिया जाएगा.