ETV Bharat / state

फसाड लाइटों से फिर जगमगाया देश का सबसे लंबा सस्पेंशन ब्रिज, पर्यटकों की उमड़ी भीड़

डोबरा चांठी पुल में लगी फसाड लाइट को देखने के लिए पर्यटकों का हुजूम लगने लगा है. यह पुल 42 किलोमीटर की विशालकाय झील पर बना भारत का सबसे लंबा सस्पेंशन ब्रिज हैं. यहां दूर-दूर से पर्यटक पहुंच रहे हैं.

dobra-chanthi bridge news
dobra-chanthi bridge news
author img

By

Published : Oct 26, 2021, 11:53 AM IST

Updated : Oct 26, 2021, 1:31 PM IST

टिहरी: डोबरा-चांठी पुल पर लगी फसाड लाइट को देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ उमड़ने लगी है. कोरोना काल के कारण डोबरा चांठी पुल पर फसाड लाइटों को बंद किया गया था लेकिन कोविड केस कम होने के बाद डोबरा चांठी पुल पर एक बार फिर फसाड लाइटें जगमगाना शुरू हो गई हैं.

बता दें, पुल की इन लाइटों को शाम सात बजे से रात साढ़े आठ बजे तक जलाया जाता है, जिसे देखने के लिए हजारों की तादाद में यहां पर्यटक पहुंच रहे हैं. पर्यटकों के पहुंचने से स्थानीय लोगों द्वारा लगाई गई छोटी दुकानें को भी रोजगार मिल रहा है.

फसाड लाइटों से फिर जगमगाया देश का सबसे लंबा सस्पेंशन ब्रिज

डोबरा चांठी पुल अब उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध पर्यटक बन चुका है. इसे देखने के लिए हजारों पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है. इस बार डोबरा चांठी पुल की फसाड लाइट को देखने के लिए दिल्ली, राजस्थान, पंजाब उत्तर प्रदेश, हरियाणा और देहरादून से पर्यटक यहां पहुंच रहे हैं. डोबरा चांठी पुल पर कई पर्यटक नाचते हुए भी नजर आते हैं.

साढ़े 5 करोड़ रुपये में बना पुल: डोबरा-चांठी पुल पर साढ़े 5 करोड़ रुपये की लागत से पुल को फसाड लाइट से सजाया गया है. ये फसाड लाइटें कोलकाता के हावड़ा ब्रिज की तर्ज पर यहां लगाई गई है. इसमें रंग-बिरंगी जगमगाती लाइटें लोगों के आकर्षण का केंद्र बनती हैं. 42 वर्ग किलोमीटर की विशालकाय झील पर बना भारत का यह सबसे लंबा सस्पेंशन मोटरेबल झूला पुल है, जिसे आम जनता के लिए खोला गया है. आम लोगों और पर्यटकों की आवाजाही से डोबरा क्षेत्र में रौनक बढ़ गई है.

ऐसे पहुंचे डोबरा चांठी पुल: यहां पहुंचने के लिए आपको पहले ऋषिकेश पहुंचना होगा. यहां से चंबा-नई टिहरी-जाख (पुरानी टिहरी) होते हुए डोबरा पहुंच सकते हैं. यहां पहुंचने के लिए दूसरा रास्ता भी है, देहरादून से मसूरी-धनौल्टी-चंबा-जाख होते हुए भी डोबरा पहुंचा जा सकता है.

देश का सबसे लंबा सस्पेंशन पुल: डोबरा-चांठी देश का सबसे लंबा सस्पेंशन पुल है, जिसकी कुल लंबाई 725 मीटर है, इसमें से 440 मीटर सस्पेंशन ब्रिज (झूला पुल) हैं. इस पुल पर भारी वाहन चल सकते हैं. वहीं, 260 मीटर डोबरा साइड और 25 मीटर का एप्रोच पुल चांठी की तरफ बनाया गया है. ये पुल समुद्रतल से 850 मीटर की ऊंचाई पर बना है. टिहरी झील को अधिकतम आरएल 830 मीटर तक भरा जा सकता है. पुल की चौड़ाई सात मीटर है, जिसमें से साढ़े पांच मीटर पर वाहन चल सकते हैं. बाकी के डेढ़ मीटर पर पुल के दोनों तरफ 75-75 सेंटीमीटर फुटपाथ बनाए गए हैं. पुल के दोनों किनारों पर 58-58 मीटर ऊंचे चार टॉवर बनाए गये हैं. भारी वाहन चलने लायक यह देश का पहला झूला पुल है.

इसे भी पढ़ें- ऑल वेदर रोड जगह-जगह से टूटी, PM मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट को निर्माण कंपनी लगा रही पलीता

पुल बनने में काफी संघर्ष: इस पुल का निर्माण कार्य साल 2006 में शुरू हुआ था. पुल के निर्माण में लगभग 300 करोड़ लागत आई है. इस पुल के डिजाइन पर ही 18 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. पुल पर छह करोड़ की आधुनिक तकनीक से युक्त मल्टी कलर लाइटिंग की गई है. हालांकि, इससे पहले साल 2005 में टिहरी बांध की झील बनने के कारण प्रतापनगर के आवागमन के रास्ते बंद हो गए थे, जिसके चलते लोगों ने लंबे समय तक लंबगांव, ओखलाखाल में प्रभावितों ने धरना-प्रदर्शन किया. भारी जन दबाव के कारण तत्कालीन सीएम नारायण दत्त तिवारी ने पुल की स्वीकृति दी. जनवरी 2006 में भागीरथी नदी पर 592 लंबा मोटर पुल का निर्माण शुरू हुआ. शुरुआती दौर में पुल को दो साल के अंदर बनकर तैयार होना था, लेकिन निर्माण कार्य के बीच में ही पुल का डिजाइन बदलकर लंबाई 725 मीटर कर दी, इससे पुल की लागत भी एक अरब 25 करोड़ बढ़ गई. इससे पुल निर्माण में काफी देर हुआ.

आईआईटी रुड़की ने भी डिजाइन एक साथ देने के बजाए कई चरणों में दिया. वहीं, मार्च 2012 में चौरास झूला पुल टूटने से सरकार ने पुल के डिजाइन को क्रॉस चेकिंग के लिए आईआईटी खड़कपुर भेज दिया. वहां इंजीनियरों ने डिजायन में कई कमियां बताते हुए इसे फेल कर दिया, जिसके चलते तत्कालीन सरकार ने पुल का निर्माण रोक दिया.

निकाला गया इंटरनेशनल टेंडर: सरकार ने 2014 में पुल के डिजाइन के लिए अंतराष्ट्रीय टेंडर निकाला गया. अक्टूबर 2014 में 10 करोड़ की लागत से कोरियाई योसिन इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन कंसलटेंट कंपनी से डिजाइन तैयार करवाया. इससे पहले निर्माण के नाम पर केवल चार टॉवर और 260 मीटर एप्रोच पुल बनाने में ही एक अरब 25 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए. कोरियाई कंपनी ने पुल निर्माण के लिए एक अरब 75 करोड़ की डीपीआर दी. सरकार ने 75 करोड़ की धनराशि देकर फरवरी 2015 में फिर से काम शुरू करवाया.

इसे भी पढ़ें- नाम बड़े-दर्शन छोटे: हर मौसम में ठप हो रही ऑलवेदर रोड, दरकते पहाड़ और लैंडस्लाइड ने बढ़ाई मुश्किलें

अगस्त 2017 तक पुल निर्माण का लक्ष्य रखा था, लेकिन फिर कई कारणों से निर्माण पूरा नहीं हुआ. इसके बाद वर्तमान राज्य सरकार ने 75 करोड़ निर्माण कार्य को और 15 करोड़ कंसलटेंट के अनुबंध बढ़ाने को दिया, लेकिन दुर्भाग्य से अगस्त 2018 में निर्माण के दौरान मुख्य पुल के तीन सस्पेंडर टूट गए, जिससे पुल फिर विवादों में आ गया.

आखिरकार अगस्त 2019 में मुख्य पुल आपस में जोड़ दिया गया और चार अक्टूबर को पुल पर ट्रायल सफल रहा. 8 नवंबर 2020 को ये पुल जनता को समर्पित किया गया. इस पुल के बन जाने से प्रतापनगर, लंबगांव और धौंतरी में रहने वाली करीब 3 लाख से ज्यादा की आबादी को टिहरी जिला मुख्यालय तक आने के लिए पहले 100 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती थी. इस पुल के शुरू होने के बाद अब यह दूरी घटकर आधी हो गई है.

टिहरी: डोबरा-चांठी पुल पर लगी फसाड लाइट को देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ उमड़ने लगी है. कोरोना काल के कारण डोबरा चांठी पुल पर फसाड लाइटों को बंद किया गया था लेकिन कोविड केस कम होने के बाद डोबरा चांठी पुल पर एक बार फिर फसाड लाइटें जगमगाना शुरू हो गई हैं.

बता दें, पुल की इन लाइटों को शाम सात बजे से रात साढ़े आठ बजे तक जलाया जाता है, जिसे देखने के लिए हजारों की तादाद में यहां पर्यटक पहुंच रहे हैं. पर्यटकों के पहुंचने से स्थानीय लोगों द्वारा लगाई गई छोटी दुकानें को भी रोजगार मिल रहा है.

फसाड लाइटों से फिर जगमगाया देश का सबसे लंबा सस्पेंशन ब्रिज

डोबरा चांठी पुल अब उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध पर्यटक बन चुका है. इसे देखने के लिए हजारों पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है. इस बार डोबरा चांठी पुल की फसाड लाइट को देखने के लिए दिल्ली, राजस्थान, पंजाब उत्तर प्रदेश, हरियाणा और देहरादून से पर्यटक यहां पहुंच रहे हैं. डोबरा चांठी पुल पर कई पर्यटक नाचते हुए भी नजर आते हैं.

साढ़े 5 करोड़ रुपये में बना पुल: डोबरा-चांठी पुल पर साढ़े 5 करोड़ रुपये की लागत से पुल को फसाड लाइट से सजाया गया है. ये फसाड लाइटें कोलकाता के हावड़ा ब्रिज की तर्ज पर यहां लगाई गई है. इसमें रंग-बिरंगी जगमगाती लाइटें लोगों के आकर्षण का केंद्र बनती हैं. 42 वर्ग किलोमीटर की विशालकाय झील पर बना भारत का यह सबसे लंबा सस्पेंशन मोटरेबल झूला पुल है, जिसे आम जनता के लिए खोला गया है. आम लोगों और पर्यटकों की आवाजाही से डोबरा क्षेत्र में रौनक बढ़ गई है.

ऐसे पहुंचे डोबरा चांठी पुल: यहां पहुंचने के लिए आपको पहले ऋषिकेश पहुंचना होगा. यहां से चंबा-नई टिहरी-जाख (पुरानी टिहरी) होते हुए डोबरा पहुंच सकते हैं. यहां पहुंचने के लिए दूसरा रास्ता भी है, देहरादून से मसूरी-धनौल्टी-चंबा-जाख होते हुए भी डोबरा पहुंचा जा सकता है.

देश का सबसे लंबा सस्पेंशन पुल: डोबरा-चांठी देश का सबसे लंबा सस्पेंशन पुल है, जिसकी कुल लंबाई 725 मीटर है, इसमें से 440 मीटर सस्पेंशन ब्रिज (झूला पुल) हैं. इस पुल पर भारी वाहन चल सकते हैं. वहीं, 260 मीटर डोबरा साइड और 25 मीटर का एप्रोच पुल चांठी की तरफ बनाया गया है. ये पुल समुद्रतल से 850 मीटर की ऊंचाई पर बना है. टिहरी झील को अधिकतम आरएल 830 मीटर तक भरा जा सकता है. पुल की चौड़ाई सात मीटर है, जिसमें से साढ़े पांच मीटर पर वाहन चल सकते हैं. बाकी के डेढ़ मीटर पर पुल के दोनों तरफ 75-75 सेंटीमीटर फुटपाथ बनाए गए हैं. पुल के दोनों किनारों पर 58-58 मीटर ऊंचे चार टॉवर बनाए गये हैं. भारी वाहन चलने लायक यह देश का पहला झूला पुल है.

इसे भी पढ़ें- ऑल वेदर रोड जगह-जगह से टूटी, PM मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट को निर्माण कंपनी लगा रही पलीता

पुल बनने में काफी संघर्ष: इस पुल का निर्माण कार्य साल 2006 में शुरू हुआ था. पुल के निर्माण में लगभग 300 करोड़ लागत आई है. इस पुल के डिजाइन पर ही 18 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. पुल पर छह करोड़ की आधुनिक तकनीक से युक्त मल्टी कलर लाइटिंग की गई है. हालांकि, इससे पहले साल 2005 में टिहरी बांध की झील बनने के कारण प्रतापनगर के आवागमन के रास्ते बंद हो गए थे, जिसके चलते लोगों ने लंबे समय तक लंबगांव, ओखलाखाल में प्रभावितों ने धरना-प्रदर्शन किया. भारी जन दबाव के कारण तत्कालीन सीएम नारायण दत्त तिवारी ने पुल की स्वीकृति दी. जनवरी 2006 में भागीरथी नदी पर 592 लंबा मोटर पुल का निर्माण शुरू हुआ. शुरुआती दौर में पुल को दो साल के अंदर बनकर तैयार होना था, लेकिन निर्माण कार्य के बीच में ही पुल का डिजाइन बदलकर लंबाई 725 मीटर कर दी, इससे पुल की लागत भी एक अरब 25 करोड़ बढ़ गई. इससे पुल निर्माण में काफी देर हुआ.

आईआईटी रुड़की ने भी डिजाइन एक साथ देने के बजाए कई चरणों में दिया. वहीं, मार्च 2012 में चौरास झूला पुल टूटने से सरकार ने पुल के डिजाइन को क्रॉस चेकिंग के लिए आईआईटी खड़कपुर भेज दिया. वहां इंजीनियरों ने डिजायन में कई कमियां बताते हुए इसे फेल कर दिया, जिसके चलते तत्कालीन सरकार ने पुल का निर्माण रोक दिया.

निकाला गया इंटरनेशनल टेंडर: सरकार ने 2014 में पुल के डिजाइन के लिए अंतराष्ट्रीय टेंडर निकाला गया. अक्टूबर 2014 में 10 करोड़ की लागत से कोरियाई योसिन इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन कंसलटेंट कंपनी से डिजाइन तैयार करवाया. इससे पहले निर्माण के नाम पर केवल चार टॉवर और 260 मीटर एप्रोच पुल बनाने में ही एक अरब 25 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए. कोरियाई कंपनी ने पुल निर्माण के लिए एक अरब 75 करोड़ की डीपीआर दी. सरकार ने 75 करोड़ की धनराशि देकर फरवरी 2015 में फिर से काम शुरू करवाया.

इसे भी पढ़ें- नाम बड़े-दर्शन छोटे: हर मौसम में ठप हो रही ऑलवेदर रोड, दरकते पहाड़ और लैंडस्लाइड ने बढ़ाई मुश्किलें

अगस्त 2017 तक पुल निर्माण का लक्ष्य रखा था, लेकिन फिर कई कारणों से निर्माण पूरा नहीं हुआ. इसके बाद वर्तमान राज्य सरकार ने 75 करोड़ निर्माण कार्य को और 15 करोड़ कंसलटेंट के अनुबंध बढ़ाने को दिया, लेकिन दुर्भाग्य से अगस्त 2018 में निर्माण के दौरान मुख्य पुल के तीन सस्पेंडर टूट गए, जिससे पुल फिर विवादों में आ गया.

आखिरकार अगस्त 2019 में मुख्य पुल आपस में जोड़ दिया गया और चार अक्टूबर को पुल पर ट्रायल सफल रहा. 8 नवंबर 2020 को ये पुल जनता को समर्पित किया गया. इस पुल के बन जाने से प्रतापनगर, लंबगांव और धौंतरी में रहने वाली करीब 3 लाख से ज्यादा की आबादी को टिहरी जिला मुख्यालय तक आने के लिए पहले 100 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती थी. इस पुल के शुरू होने के बाद अब यह दूरी घटकर आधी हो गई है.

Last Updated : Oct 26, 2021, 1:31 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.