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मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं पहाड़वासी, कैसे सफल होगी 'आवा अपणू घौर' मुहिम? - मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं पहाड़वासी

मूलभूत सुविधाओं से दूर पहाड़वासी सरकार के दावों को आईना दिखा रहे हैं. पहाड़ों पर आज भी लोग मीलों दूर पैदल चलकर अपना पसीना बहाकर फसलों को बाजार तक पहुंचा रहे हैं.

पहाड़वासी
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Published : Nov 6, 2019, 11:21 AM IST

धनोल्टीः सरकारें बदलीं, निजाम बदले लेकिन आजादी के 70 साल के बाद भी पहाड़ों के हालात नहीं बदले. आज भी वहां के वाशिंदे बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. सरकारी दावों की हकीकत में कितनी सच्चाई है वह यहां आकर देखी जा सकती है. एक तरफ सरकार आज 'आवा अपणू घौर' जैसे आयोजनों को लेकर वाहवाही लूटने की कोशिशों में लगी है, वहीं दूसरी तरफ अपनी पूरी जिन्दगी बसर करने वाले ग्रामीण दिन रात सिर और पीठ पर बोझा ढोकर मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं.

वे अपने बच्चों को दूर शहरों में शिक्षा देने के लिए पसीना बहा रहे हैं. मामला पर्यटन नगरी धनोल्टी से सटे पत्थरखंड मध्ये आलूचक फिडोगी का डांडा का है, जिसकी दूरी इस आयोजन स्थल से महज 40 किमी है, जहां के वाशिंदें आज भी सड़क से वंचित हैं.

यहां के काश्तकार आज भी अपनी नगदी फसल अपने सिर और पीठ पर लादकर तीन चार किलोमीटर पगडंडी से पैदल चलकर सड़क तक लाते हैं. यहां के लोग मुख्य रूप से कृषि और बागवानी पर निर्भर हैं और कृषि ही इनका मुख्य रोजगार भी है. जिनकी वर्षों से मुख्य मांग सड़क की है.

पहाड़ों में बुनियादी सुविधाओं की कमी.

लोगों का कहना है कि सरकार किसानों की आय दोगुना करने की बात कर रही है, लेकिन अगर किसानों की मेहनत से कमाई गई फसल बाजारों तक न पहुंचे तो कैसे ये सब सम्भव हो पाएगा. बिना सड़क हालात ऐसे हैं कि यदि कोई बीमार हो जाये तो उसे ग्रामीणों द्वारा तीन-चार किलोमीटर पगडंडी के रास्ते चढ़ाई चढ़कर कण्डी पर लाना पड़ता है. कभी-कभी बीमार व्यक्ति को सड़क तक लाते-लाते ही वह रास्ते में ही दम तोड़ देता है. सोचा था कि उत्तराखंड बनने के बाद कुछ हालात सुधरेंगे लेकिन सरकारों के वायदे केवल कागजों में ही सिमट कर रह गये.

यह भी पढ़ेंः टिहरी झील के किनारे बसे गांवों में हो रहा भूस्खलन, डर के साए में जीने को मजबूर ग्रामीण

यहां के किसान महावीर सिंह, उमेद सिंह सिनवाल, कुलबीर सिंह का कहना है कि उन्होंने शासन प्रशासन से कई बार लिखित तथा मौखिक रूप में गुहार लगाई है लेकिन अधिकारी और सरकार इस ओर ध्यान देने को तैयार नहीं हैं.

धनोल्टीः सरकारें बदलीं, निजाम बदले लेकिन आजादी के 70 साल के बाद भी पहाड़ों के हालात नहीं बदले. आज भी वहां के वाशिंदे बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. सरकारी दावों की हकीकत में कितनी सच्चाई है वह यहां आकर देखी जा सकती है. एक तरफ सरकार आज 'आवा अपणू घौर' जैसे आयोजनों को लेकर वाहवाही लूटने की कोशिशों में लगी है, वहीं दूसरी तरफ अपनी पूरी जिन्दगी बसर करने वाले ग्रामीण दिन रात सिर और पीठ पर बोझा ढोकर मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं.

वे अपने बच्चों को दूर शहरों में शिक्षा देने के लिए पसीना बहा रहे हैं. मामला पर्यटन नगरी धनोल्टी से सटे पत्थरखंड मध्ये आलूचक फिडोगी का डांडा का है, जिसकी दूरी इस आयोजन स्थल से महज 40 किमी है, जहां के वाशिंदें आज भी सड़क से वंचित हैं.

यहां के काश्तकार आज भी अपनी नगदी फसल अपने सिर और पीठ पर लादकर तीन चार किलोमीटर पगडंडी से पैदल चलकर सड़क तक लाते हैं. यहां के लोग मुख्य रूप से कृषि और बागवानी पर निर्भर हैं और कृषि ही इनका मुख्य रोजगार भी है. जिनकी वर्षों से मुख्य मांग सड़क की है.

पहाड़ों में बुनियादी सुविधाओं की कमी.

लोगों का कहना है कि सरकार किसानों की आय दोगुना करने की बात कर रही है, लेकिन अगर किसानों की मेहनत से कमाई गई फसल बाजारों तक न पहुंचे तो कैसे ये सब सम्भव हो पाएगा. बिना सड़क हालात ऐसे हैं कि यदि कोई बीमार हो जाये तो उसे ग्रामीणों द्वारा तीन-चार किलोमीटर पगडंडी के रास्ते चढ़ाई चढ़कर कण्डी पर लाना पड़ता है. कभी-कभी बीमार व्यक्ति को सड़क तक लाते-लाते ही वह रास्ते में ही दम तोड़ देता है. सोचा था कि उत्तराखंड बनने के बाद कुछ हालात सुधरेंगे लेकिन सरकारों के वायदे केवल कागजों में ही सिमट कर रह गये.

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यहां के किसान महावीर सिंह, उमेद सिंह सिनवाल, कुलबीर सिंह का कहना है कि उन्होंने शासन प्रशासन से कई बार लिखित तथा मौखिक रूप में गुहार लगाई है लेकिन अधिकारी और सरकार इस ओर ध्यान देने को तैयार नहीं हैं.

Intro: मूलभूत सुविधाओं से दूर पहाड़वासी सरकार के दावों को दिखा रहे आईना
Body:
धनोल्टी( टिहरी)
स्लग-एक ओर गांव आने का रैबार और दूसरी ओर मूलभूत सुविधाओं के लिए ताकते घरबार

एंकर- सरकारें बदली निजाम बदले लेकिन आजादी के 70 साल बाद पहाड़ो के हालात आज भी जस के तस वहीं के वासिन्दो के हाल पर ज्यों के त्यों छोड़ गयें है जो कि सरकारी दावों की हकीकत मे कितनी सच्चाई है उसकी पोल खोलने के लिए काफी है एक तरफ सरकार आज "आवा अपणू घौर " जैसे आयोजनो को कर वाहवाही लूटने की कोशिशों में लगी है वही दूसरी तरफ अपनी पूरी जिन्दगी बसर करने वाले ग्रामीण किसान दिन रात सिर और पीठ पर बोझा ढोकर मूलभूत सुविधाओं के आभाव के चलते अपने बच्चो को दूर शहरों मे शिक्षा देने के लिए पसीना बहा रहें है मामला पर्यटन नगरी धनोल्टी से सटे पत्थर खंड मध्ये आलूचक फिडोगी का डांडा का है जिसकी दूरी इस आयोजन स्थल से महज 40 कि मी है जहाँ के वाशिंदें आज भी सड़क से वंचित है यहां के काश्तकार आज भी अपनी नगदी फसल अपने सिर और पीठ पर लाद कर तीन चार किलोमीटर पगडण्डी से पैदल चलकर सड़क तक लाते हैं। यहां के लोग मुख्य रूप से कृषि और बागवानी पर निर्भर है और कृषि ही इनका मुख्य रोजगार भी है जिनकी बर्षो से मुख्य माँग सड़क की है लोगों का कहना है कि सरकार किसानो की आय दोगुना करने की बात कर रही है लेकिन अगर किसानो की मेहनत से कमाई गई फसल बाजारों तक न पहुँचे तो कैसे ये सब सम्भव हो पायेगा बिन सड़क हालात ऐसे है कि यदि कोई बीमार हो जाये तो उसे ग्रामीणों के द्वारा तीन चार किलोमीटर पगडण्डी के रास्ते चढाई चढ़कर कण्डी पर लाना पड़ता है कभी कभी बीमार व्यक्ति को सड़क तक लाते-लाते ही वह रास्ते मे ही दम तोड़ देता है। सोचा था कि अपना उत्तराखंड बनने के बाद कुछ हालात सुधरेगें लेकिन सरकारों के वायदे केवल वायदों मे ही सिमट कर रह गये
यहाँ के किसान महाबीर सिंह, उमेद सिंह सिनवाल कुलबीर सिंह पुर्व प्रधान आदि का कहना है कि उन्होंने शासन प्रशासन से कई बार लिखित तथा मौखिक रूप में गुहार लगाई है लेकिन अधिकारी और सरकार इस ओर ध्यान देने को तैयार नहीं हैं।

बाईट -ग्रामीण



Conclusion: मूलभूत सुविधाओं से दूर पहाड़वासी सरकार के दावों को दिखा रहे आईना
पहाड़ो पर आज भी लोग मीलो दूर पैदल चलकर अपनी पसीना बहाकर अपनी नगदी फसलो को बाजार तक पहुँचा रहे है
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