धनोल्टीः सरकारें बदलीं, निजाम बदले लेकिन आजादी के 70 साल के बाद भी पहाड़ों के हालात नहीं बदले. आज भी वहां के वाशिंदे बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. सरकारी दावों की हकीकत में कितनी सच्चाई है वह यहां आकर देखी जा सकती है. एक तरफ सरकार आज 'आवा अपणू घौर' जैसे आयोजनों को लेकर वाहवाही लूटने की कोशिशों में लगी है, वहीं दूसरी तरफ अपनी पूरी जिन्दगी बसर करने वाले ग्रामीण दिन रात सिर और पीठ पर बोझा ढोकर मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं.
वे अपने बच्चों को दूर शहरों में शिक्षा देने के लिए पसीना बहा रहे हैं. मामला पर्यटन नगरी धनोल्टी से सटे पत्थरखंड मध्ये आलूचक फिडोगी का डांडा का है, जिसकी दूरी इस आयोजन स्थल से महज 40 किमी है, जहां के वाशिंदें आज भी सड़क से वंचित हैं.
यहां के काश्तकार आज भी अपनी नगदी फसल अपने सिर और पीठ पर लादकर तीन चार किलोमीटर पगडंडी से पैदल चलकर सड़क तक लाते हैं. यहां के लोग मुख्य रूप से कृषि और बागवानी पर निर्भर हैं और कृषि ही इनका मुख्य रोजगार भी है. जिनकी वर्षों से मुख्य मांग सड़क की है.
लोगों का कहना है कि सरकार किसानों की आय दोगुना करने की बात कर रही है, लेकिन अगर किसानों की मेहनत से कमाई गई फसल बाजारों तक न पहुंचे तो कैसे ये सब सम्भव हो पाएगा. बिना सड़क हालात ऐसे हैं कि यदि कोई बीमार हो जाये तो उसे ग्रामीणों द्वारा तीन-चार किलोमीटर पगडंडी के रास्ते चढ़ाई चढ़कर कण्डी पर लाना पड़ता है. कभी-कभी बीमार व्यक्ति को सड़क तक लाते-लाते ही वह रास्ते में ही दम तोड़ देता है. सोचा था कि उत्तराखंड बनने के बाद कुछ हालात सुधरेंगे लेकिन सरकारों के वायदे केवल कागजों में ही सिमट कर रह गये.
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यहां के किसान महावीर सिंह, उमेद सिंह सिनवाल, कुलबीर सिंह का कहना है कि उन्होंने शासन प्रशासन से कई बार लिखित तथा मौखिक रूप में गुहार लगाई है लेकिन अधिकारी और सरकार इस ओर ध्यान देने को तैयार नहीं हैं.