टिहरीः उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के यमकेश्वर ब्लॉक की तर्ज पर टिहरी जिले में भी जल्द ही भांग के पौधों को औद्योगिक रूप में लिया जाएगा. भांग के पौधों से बनी ईंटों को औद्योगिक रूप में लाकर घर और होम स्टे बनाए जाएंगे. इससे कोरोना काल में पहाड़ की तरफ लौटे उत्तराखंड के युवाओं को न केवल रोजगार मिलेगा बल्कि सस्ते दामों में ईंट भी मिलेंगी.
डॉ. रमना त्रिपाठी ने बताया कि औद्योगिक भांग की खेती के लिए बेहद कम पानी और समय की जरूरत होती है. इसमें नशे की मात्रा भी 0.3 प्रतिशत होती है. भांग से बनी ईंट एंटी बैक्टीरियल, भूकंप रोधी, जल रोधी, अग्नि रोधी एवं तापमान सहयोगी भी होती है. डॉ. रमना का कहना है कि भांग के फाइबर का इस्तेमाल पुरातन काल से किया जाता रहा है. अजंता और एलोरा की गुफाओं के साथ ही दौलताबाद के किले में भी भांग फाइबर से बने प्लास्टर का इस्तेमाल हुआ है.
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इसे बनाने के लिए सिर्फ भांग हस्क, चूना और पानी की जरूरत होती है. चूने की सबसे अच्छी खासियत होती है कि ये वातावरण से कार्बन डाई ऑक्साइड को अवशोषित करके पत्थर में बदल जाता है. साथ ही समय के साथ और मजबूत होता जाता है. जबकि सीमेंट से बनी बिल्डिंग की उम्र ज्यादा से ज्यादा 50 साल तक की होती है.
उत्तराखंड में इसकी उपयोगिता इसलिए भी जरूरी है क्योंकि उत्तराखंड भूकंप सेंसिटिव जोन में आता है. डॉ. रमना का कहना है कि अगर सरकार से उन्हें सहयोग मिलता है तो वो भांग में गन्ने का इस्तेमाल कर भांग और पराली के साथ ही दूसरे और इको फ्रेंडली मैटेरियल मिलाकर उस पर रिसर्च करना चाहती हैं. इससे हमें इको फ्रेंडली घर मिलेंगे साथ ही लोगों को रोजगार भी मिलेगा.
टीएचडीसी हाइड्रो पावर इंजीनियरिंग की डीन एकेडमिक डॉ. रमना त्रिपाठी, सहायक प्राध्यापक अमित कुमार एवं हेंपक्रीट एक्सपर्ट विनोद ओझा के मार्गदर्शन से छात्रा अदिति बंदुडी, छात्रा वैभव सैनी और सुधांशु बहुगुणा ने हेंपक्रीट यानी औद्योगिक भांग की ईंट बनाई. छात्रों द्वारा बनाई गई ईंट का वजन 1.32 किलोग्राम था जबकि 20 दिन सूखने के बाद जब उसकी कंप्रेसिव स्ट्रैंथ मापी गयी तो .34 मेगापास्कल आयी. इसमें ईंट का अल्टीमेट लोड 1 किलो न्यूटन था.