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500 वर्ष पुरानी परंपरा को निभा रहे बूढ़ाकेदारवासी,  यहां आज से मनाई जाएगी दिवाली

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Published : Nov 25, 2019, 1:16 PM IST

बूढ़ाकेदार में मंगशीर पर्व गुरु कैलापीर बग्वाल धूमधाम से मनाया जाता है. देश-विदेश के लोग इस दीपावली को मनाने के लिये घर आते हैं.

दिवाली

टिहरीः बूढ़ाकेदार क्षेत्र में सोमवार से पांच दिवसीय मगशीर दिवाली महोत्सव का शुभारंभ होगा. टिहरी जिले के घनसाली बूढ़ाकेदार में 500 वर्ष पहले से प्रत्येक वर्ष अमवास्या प्रतिपदा के दिन मगशीर बग्वाल का त्योहार मनाया जाता है, जिसमें क्षेत्र के ही नहीं बल्कि देश-विदेश के लोग भी इस त्योहार में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं और तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है.

भिंलगना ब्लॉक के बूढ़ाकेदार में मंगशीर पर्व गुरु कैलापीर बग्वाल धूमधाम से मनाया जाता हैं. जिसमें क्षेत्र के लोग ही नहीं बल्कि देश-विदेश के लोग इस दीपावली को मनाने के लिये घर आते हैं और बग्वाल पर्व धूमधाम से मनाते हैं. लोग 25 को छोटी दीपावाली, 26 को बड़ी दीपावली, 27 को गुरू कैलापीर देवता के साथ पंडुरा के सेरो में दौड़ लगाएंगे. वहीं 28 को बलराज और 29 को मेले का समापन होगा.

मंगशीर पर्व का आज से शुभारंभ.

इस दौरान बूढ़ाकेदार गांव में लकड़ी से बने भैलों को जलाकर उन्हें खेतों में घुमाया जाता है. जिस पर गांव व आस-पास के लोग भैलों को घुमाकर आनन्द लेते हैं. तो वहीं गुरु कैलापीर का निशाना मन्दिर से बाहर आकर लोगों को आशीर्वाद देते हैं. वहीं खेतों में निशान के साथ सात चक्कर लगाकर देवता पर पराल की बौछारें फेंकी जाती हैं.

गुरु कैलापीर बूढ़ाकेदार समिति के अध्यक्ष ने बताया कि इस इलाके के लोग इस दीवाली को गुरू कैलापीर देवता के आने की खुशी में मनाते हैं जोकि दीपावली के एक महीने बाद मनाया जाता है.

वहीं अमावास्या प्रतिपदा के दिन गुरू कैलापीर देवता एक साल में मन्दिर के बाहर आते हैं. इस दौरान सभी लोगों को अपना आशीर्वाद देते हैं. दिन में लोग गुरू कैलापीर देवता के दर्शन करते हैं और रात को खुशी में दिवाली मनाते हैं.

गुरू कैलापीर देवता के बारे में बताया जाता है कि वे मूल रुप से चम्पावत के रहने वाले थे. वहां पर गुरू कैलापीर देवता की पूजा पाठ पद्धति में व्यवधान होने के कारण गुरू कैलापीर देवता अपने 54 चेलों के साथ नेपाल से श्रीनगर होते हुये बूढ़ाकेदार पहुंचे. गुरू कैलापीर देवता टिहरी राजशाही के महाराजाओं व बीर भड के आराध्य रहे हैं. गुरू कैलापीर देवता राजाओं के सपने में आते थे.

यह भी पढ़ेंः पिथौरागढ़: प्राचीन रंग भाषा को संरक्षित कर रहा रं समुदाय, प्रधानमंत्री ने की सराहना

गुरु कैलापीर बग्वाल के बारे में कहा जाता हैं कि जब गोरखाओं ने कुमाऊं पर आक्रमण किया था तो वीर माधो सिंह भण्डारी के इष्ट देव गुरु कैलापीर भी युद्ध की भूमिका में थे, लेकिन गोरखाओं से युद्ध काफी लंबे समय तक चला, जिसमें माधो सिंह भण्डारी दीपावली नहीं मना पाये तो फिर गुरु कैलापीर ने माधो सिंह से कहा कि तुम अपनी दीपावली ठीक इसी तारीख को अगले महीने बग्वाल के रुप में मनाना. जिससे आज भी यह पंरमपरा 500 साल से चली आ रही है और यह दीपावली गाजणा कठूड़ए नैल कठूड़ए थाती कठूड़ए व उत्तराकाशी के क्षेत्र में यह दीपावली मनायी जाती है.

टिहरीः बूढ़ाकेदार क्षेत्र में सोमवार से पांच दिवसीय मगशीर दिवाली महोत्सव का शुभारंभ होगा. टिहरी जिले के घनसाली बूढ़ाकेदार में 500 वर्ष पहले से प्रत्येक वर्ष अमवास्या प्रतिपदा के दिन मगशीर बग्वाल का त्योहार मनाया जाता है, जिसमें क्षेत्र के ही नहीं बल्कि देश-विदेश के लोग भी इस त्योहार में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं और तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है.

भिंलगना ब्लॉक के बूढ़ाकेदार में मंगशीर पर्व गुरु कैलापीर बग्वाल धूमधाम से मनाया जाता हैं. जिसमें क्षेत्र के लोग ही नहीं बल्कि देश-विदेश के लोग इस दीपावली को मनाने के लिये घर आते हैं और बग्वाल पर्व धूमधाम से मनाते हैं. लोग 25 को छोटी दीपावाली, 26 को बड़ी दीपावली, 27 को गुरू कैलापीर देवता के साथ पंडुरा के सेरो में दौड़ लगाएंगे. वहीं 28 को बलराज और 29 को मेले का समापन होगा.

मंगशीर पर्व का आज से शुभारंभ.

इस दौरान बूढ़ाकेदार गांव में लकड़ी से बने भैलों को जलाकर उन्हें खेतों में घुमाया जाता है. जिस पर गांव व आस-पास के लोग भैलों को घुमाकर आनन्द लेते हैं. तो वहीं गुरु कैलापीर का निशाना मन्दिर से बाहर आकर लोगों को आशीर्वाद देते हैं. वहीं खेतों में निशान के साथ सात चक्कर लगाकर देवता पर पराल की बौछारें फेंकी जाती हैं.

गुरु कैलापीर बूढ़ाकेदार समिति के अध्यक्ष ने बताया कि इस इलाके के लोग इस दीवाली को गुरू कैलापीर देवता के आने की खुशी में मनाते हैं जोकि दीपावली के एक महीने बाद मनाया जाता है.

वहीं अमावास्या प्रतिपदा के दिन गुरू कैलापीर देवता एक साल में मन्दिर के बाहर आते हैं. इस दौरान सभी लोगों को अपना आशीर्वाद देते हैं. दिन में लोग गुरू कैलापीर देवता के दर्शन करते हैं और रात को खुशी में दिवाली मनाते हैं.

गुरू कैलापीर देवता के बारे में बताया जाता है कि वे मूल रुप से चम्पावत के रहने वाले थे. वहां पर गुरू कैलापीर देवता की पूजा पाठ पद्धति में व्यवधान होने के कारण गुरू कैलापीर देवता अपने 54 चेलों के साथ नेपाल से श्रीनगर होते हुये बूढ़ाकेदार पहुंचे. गुरू कैलापीर देवता टिहरी राजशाही के महाराजाओं व बीर भड के आराध्य रहे हैं. गुरू कैलापीर देवता राजाओं के सपने में आते थे.

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गुरु कैलापीर बग्वाल के बारे में कहा जाता हैं कि जब गोरखाओं ने कुमाऊं पर आक्रमण किया था तो वीर माधो सिंह भण्डारी के इष्ट देव गुरु कैलापीर भी युद्ध की भूमिका में थे, लेकिन गोरखाओं से युद्ध काफी लंबे समय तक चला, जिसमें माधो सिंह भण्डारी दीपावली नहीं मना पाये तो फिर गुरु कैलापीर ने माधो सिंह से कहा कि तुम अपनी दीपावली ठीक इसी तारीख को अगले महीने बग्वाल के रुप में मनाना. जिससे आज भी यह पंरमपरा 500 साल से चली आ रही है और यह दीपावली गाजणा कठूड़ए नैल कठूड़ए थाती कठूड़ए व उत्तराकाशी के क्षेत्र में यह दीपावली मनायी जाती है.

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टिहरी

बूढ़ाकेदारर क्षेत्र में आज से पांच दिनो तक धूमधाम से मनाया जायेगा मगशीर की दिवालीBody:टिहरी जिले के घनसाली बूढ़ाकेदार में 500 वर्ष पहले से प्रत्येक वर्ष अमवास्या प्रतिपदा के दिन मंगशीर बग्वाल का त्यौहार मनाया जाता हैं जिसमें क्षेत्र के ही नहीं बल्कि देश विदेश के लोग भी इस त्यौहार में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं और तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है।

पेश हैं घनसाली से हमारे संवाददाता अरबिन्द नोटियाल की स्पेशल रिर्पोट

भिंलगना ब्लाॅक के बूढ़ाकेदार में मंगशीर पर्व की गुरु कैलापीर बग्वाल बड़े धूम धाम से मनायी जाती हैं जिसमें क्षेत्र लोग ही नहीं बल्कि देश विदेश के लोग इस दीपावली को मनाने के लिये अपने घरों में आते हें। और बग्वाल पर्व धूमधाम से मनाते हैं। 25 को छोटी दीपरवाली 26 को बडी दीपरवली 27 को गुरू कैलापीर देवता के साथ पंडुरा के सेरो में दौड लगायेगें 28 को बलराज 29 मैले का समापन होगा

गुरु कैलापीर बग्वाल का महत्व बूढ़ाकेदार गांव में लकड़ी से बने भैलों को जलाकर उन्हें खेतों में घुमाया जाता हैं जिस पर गंाव व आस पास के लोग भैलों को घुमा कर आनन्द लेते हेै तो वहीं गुरु कैलापीर का निशाना मन्दिर से बहार आकार लोगों को आर्शीवाद देते हैं। वहीं खेतों में निशान के साथ सात चक्कर लगाकर देवता पर पराल की बौछारें फेंकी जाती हैं जिससे लोगों को देवता आर्शीवाद मनता हैं

Conclusion:गुरू कैलापीर बुढाकेदार समीति के अध्यक्ष ने बताया कि इस इलाके के लोग इस दीवाली को गुरू कैलापीर देवता के आने की खुश में इस दीवाली को मनाते हैं। जो राष्ट्रीय दीपावली मनाते हे उसके एक महिने बाद इस दीवाली को मनाते हे इसमें अमावास्या प्रतिपदा का दिन गुरू कैलापीर देवता एक साल में मन्दिर के बहार आते हे ओर बहार आकर उसकी पूजा पाठ करके दर्शन करते हे ओर गाव के खेतो में 7 बार दौड लगाते हे इस दोरान सभी लोगो को अपना आर्शीवाद दैते हे कहते हे यह की जो लडकी कही भी शादी हुई हो वह गुरू कैलापीर देवता के दर्शन करने जरूर आती हे ओर वह जो भी मन्नत मागेगी वह जरूर पूरी होती हे इस अवसर पर यह के जो देश बिदेशे में रहते हे वह जरूर शामिल होते हे। दिन में गुरू कैलापीर देवता के दर्शन करते हे ओर रात को खुशी में दीवाली मनाते हे।

गुरू कैलापीर देवता के बारे में बताया जाता हे गुरू कैलापीर देवता मूल चम्पावत के रहने वाले थे वह पर गुरू कैलापीर देवता की पूजा पाठ पद्धति व्यवधान होने के कारण गुरू कैलापीर देवता अपने 54 चेलो 52 बेडो के साथ नेपाल से श्रीनगर होते हुये बूढाकेदार पहुचे । गुरू कैलापीर देवता टिहरी राजशाही के महाराजाओ व बीर भड के आरध्य रहे हे गुरू कैलापीर देवता राजाओ के सपने में आकर उनको हर बात में मदद करते थे जिससे श्रीनगर के राजा मान शाह ने गुरू कैलापीर देवता को 90 जोला अलनकरण से नवाजा गया साथ ही जिसमें थाती कठूड टिहरी जिले में हे व गाजणा कठूड उत्तरकाशी जिले में हे साथ ही टिहरी राजाओ के द्धारा उत्तराखण्ड के चार धाम मन्दिरो में जो व्यस्थायें लागू की जाती हे वही व्यवस्था यह पर लागू होती हे टिहरी राजा ने बूढाकेदार के पास बुग्याल में जो भी प्शु चराने का शुल्क मिलता था उसे राजा के आदेश पर गुरू कैलापीर देवता की पूजा पर खर्च किया जाता हे ।
गुरु कैलापीर बग्वाल के बारे में कहा जाता हैं कि जब गौरखाओं ने कुमाउ पर आक्रमण किया था तो वीर माधो सिंह भण्डारी के ईष्ट देव गुरु कैलापीर भी युद्व की भूमिका में थे लेकिन गौरखाओं से युद्व काफी लबें समय तक चला जिसमें माधो सिंह भण्डारी नवंबर की दीपावली नहीं मना पाये तो फिर गुरु कैलापीर ने माधो सिंह से कहा कि तुम अपनी दीपावली ठीक इसी तारीक को अगले महीने बग्वाल के रुप में मनाना जिससे आज भी यह पंरमपरा 500 साल पूर्व से चली आ रही हैं। और यह दीपावली गाजणा कठूड़ए नैल कठूड़ए थाती कठूड़ए व उत्तराकाशी के क्षेत्र में यह दीपावली मनायी जाती हैं

बाईट .भूपेन्द्र सिह नेगी अध्यक्ष मन्दिर समीति
बाईट. रोशनी राणा दर्शन करने वाली स्थानीय महिला
बाइट कमल नयन स्थानीय निवासी
पीटीसी दो हे सर इसकेा मिलकर लगावाना आप
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