टिहरी: उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले की एक विधानसभा सीट देवप्रयाग है. देवप्रयाग विधानसभा सीट के अंतर्गत देवप्रयाग संगम एक ऐसा संगम है जहां पर देश-विदेशों से हजारों पर्यटक घूमने और स्नान करने पहुंचते हैं. यह प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है. देवप्रयाग में ही अलकनंदा और भागीरथी नदियों का संगम स्थल है. देवप्रयाग से आगे भागीरथी और अलकनंदा नदी गंगा बनकर यहां से बहती हैं. देवप्रयाग तहसील मुख्यालय भी है. ऐसे में उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के मतदान में अब कुछ ही दिन बचे हैं, तो आइये जानते हैं क्या है यहां की जनता का मूड ?
बीजेपी के विनोद कंडारी हैं देवप्रयाग से विधायक: देवप्रयाग विधानसभा सीट के सामाजिक समीकरणों की बात करें तो यहां ब्राह्मण मतदाताओं की तादाद अधिक है. तीर्थ स्थल होने के कारण यहां तीर्थ पुरोहित बड़ी तादाद में रहते हैं. वर्तमान में इस विधानसभा सीट से बीजेपी के विनोद कंडारी विधायक हैं.
यहां भागीरथी है सास तो अलकनंदा है बहू: देवप्रयाग में अगर विकास की बात करें तो यहां के पुजारियों का कहना है कि देवप्रयाग संगम का कुंभ मेला घोषित होने के बाद भी विकास नहीं हुआ है. देवप्रयाग संगम में भागीरथी नदी है जो तेज बहाव के साथ आती है. उसे सास के नाम से जाना जाता है और जो अलकनंदा नदी है जो शांत स्वभाव से आती है, उसे बहू के नाम से जाना जाता है. इसलिए इसे सास-बहू का संगम भी कहते हैं और यहीं से गंगा बनती है. इसके बावजूद सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है.
किसी की भी सरकार आए, हमें तो विकास चाहिए: पुजारियों ने कहा कि जिस तरह से देवप्रयाग संगम का विकास होना चाहिए था, उस तरह से विकास नहीं हुआ. हमेशा से ही देवप्रयाग के पुजारियों के साथ छलावा किया गया. देश-विदेशों के जितने भी पर्यटक यहां आते हैं, उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. पुजारियों ने आगे कहा कि देवप्रयाग विश्व पटल पर प्रसिद्ध है और सरकार चाहे किसी की भी हो लेकिन यहां पर विकास होना चाहिए. लेकिन विरोध किसी सरकार का नहीं है. सरकार किसी की भी आए. हमें तो विकास से मतलब है और स्थानीय जो मुद्दे हैं वह हल होने चाहिए. आने वाली सरकार जो भी हो, हमें बहुत अपेक्षाएं हैं. जो वायदे पहले देवप्रयाग के पुजारियों के साथ किए गए थे वह वादे पूरे नहीं किए गए हैं.
देवस्थानम बोर्ड ने छीनी रोजी-रोटी: उन्होंने कहा कि पहले यहां पर्यटकों की भारी भीड़ देखने को मिलती थी, जिससे यहां के लोगों की रोजी-रोटी चलती थी और पलायन रुकता था. लेकिन कोरोना के कारण बीते दो सालों से सब ठप पड़ा हुआ है. किसी के पास कमाई का कोई साधन नहीं है. सरकार झूठे वादे करके ब्राह्मणों के अधिकारों पर अपना हक जता रही है. चारधाम के लिए देवस्थानम बोर्ड बनाया गया. जिससे कई लोगों की रोजी-रोटी चली गई. माना कि देवस्थानम बोर्ड भंग हो गया है लेकिन ये चुनाव होने तक ही भंग है. उन्होंने कहा कि जब से उत्तराखंड बना है तब से ही उत्तराखंड में कोई विकास नहीं हुआ है.
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में कितनी सरकारें आईं और गईं, लेकिन विकास किसी ने नहीं किया, जिससे जनता परेशान हैं. अन्य पुजारी का कहना है कि देवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी के संगम के बाद ही गंगोत्री गोमुख से आने वाली गंगा, मुक्ति वाहिनी गंगा कहलाती है जो बदरीनाथ से 22 किलोमीटर आगे माना गांव से अलकापुरी से होकर बहने वाली अलकनंदा से मिलती है. यहां पंचप्रयाग हैं- देवप्रयाग, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग, विष्णुप्रयाग और गुप्तप्रयाग.
देवप्रयाग में श्रीराम ने किया था पिंडदान: पुजारियों ने देवप्रयाग के बारे में बताया कि श्री राम भगवान ने ब्राह्मण हत्या से मुक्ति पाने के लिए यहां पर पिंडदान किया था. यहां पर आज भी श्री राम की चरण पादुका पत्थर पर अंकित हैं. साथ में भगवान हनुमान की भी शिला है. देवप्रयाग में उत्तर भारत में ऐसी कहीं भी 5 फीट की मूर्ति नहीं निकली, जैसी यहां पर है. इस स्थान पर पिंडदान का बहुत ही महत्व है. पिंडदान का महत्व तीन स्थानों पर सबसे अच्छा है. पहला जहां पर भगवान के पैर हैं. दूसरा नाभि देवप्रयाग में है. तीसरा बदरीनाथ में सिर है. इन 3 जगहों पर पिंडदान करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है.
पुजारियों ने कहा कि देवप्रयाग कुंभ क्षेत्र है और जिस तरह से देवप्रयाग को कुंभ क्षेत्र घोषित किया गया और उसके बाद यहां पर जो काम होने थे उस तरह से यहां पर कोई काम नहीं हुए हैं. आज भी यहां कोई विकास नहीं हुआ है. जिस तरह से ऋषिकेश-हरिद्वार में कार्य किए जाते हैं.