टिहरी: सरकार की अनदेखी और शासन-प्रशासन के सुस्त रवैये के कारण टिहरी झील के समीप बसे रौलाकोट गांव के लोग खतरे की जद में जीने को मजबूर है. रौलाकोट गांव के चारों तरफ भारी भूस्खलन हो रहा है. भूगर्भीय वैज्ञानिकों ने भी इस गांव को अति संदेनशील क्षेत्र में रखा है. वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट में ग्रामीणों को तत्काल विस्थापित करने को कहा था, लेकिन आजतक यहां के ग्रामीणों को विस्थापित नहीं किया गया.
पढ़ें-पौड़ी के विकास भवन में लगे अग्निशमन यंत्र एक्सपायर, कैसे होगी आग से सुरक्षा?
रौलाकोट गांव के ग्रामीण बीते 15 सालों से विस्थापन की मांग कर रहे है, लेकिन आज तक किसी ने भी उनकी सुध नहीं ली. ग्रामीणों का कहना है कि टिहरी बांध की झील के कारण गांव में तीन तरफ से भूस्खलन हो रहा है. दिन प्रतिदन जमीन धंस रही है. बाजवूद उसके कोई भी उनकी तरफ ध्यान नहीं दे रहा है. ग्रामीणों ने अब सरकार को चेतावनी देते हुए बड़ा आंदोलन करने की बात की कही है.
पढ़ें-तनावमुक्त रहकर करें बोर्ड परीक्षा की तैयारी, जानें एक्सपर्ट की राय
राज्य सरकार ने 10 साल पहले भूगर्भीय वैज्ञानिकों से झील प्रभावित गांवों का सर्वे कराया गया था. एक्सपर्ट कमेटी ने राज्य और भारत सरकार को दी अपनी रिपोर्ट में रौलाकोट गांव को अति संदेनशील श्रेणी में रखा था. साथ ही इस गांव को जल्द विस्थापित करने को कहा था, ताकि कोई जनहानि न हो, लेकिन 10 साल बाद भी यहां के ग्रामीणों को विस्थापित नहीं किया गया.
बीते 10 सालों में कांग्रेस और बीजेपी पार्टियों की सरकारें बारी-बारी से सत्ता में आती रही है, लेकिन किसी ने ग्रामीणों के विस्थापन को लेकर ध्यान नहीं दिया. दोनों पार्टियों ने हमेशा एक-दूसरे पर आरोप लगाने का काम किया है. जब इस बारे में कांग्रेस के पूर्व विधायक विक्रम सिंह नेगी की बात की गई तो उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार को इसके लिए जिम्मेदार बताया. नेगी के मुताबिक रौलाकोट गांव के ग्रामीणों के साथ अन्य गांव के करीब 415 परिवारों को विस्थापन किया जाना है. इसकों लेकर हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक शासन-प्रशासन व टिहरी बांध परियोजना के अधिकारियों को रौलाकोट गांव के विस्थापन के लेकर निर्देश दे चुके है. बावजूद उसके इस पर कोर्ई कार्रवाई नहीं हुई.
इस बारे में पुर्नवास विभाग के अधिकारी सुबोध मैठाणी ने बताया कि इस पर काम किया जा रहा है. विभाग ने 415 परिवारों वो विस्थापित करने के लिए ऋषिकेश-देहरादून के आस पास की जमीन का प्रस्ताव भर भारत सरकार के वन मंत्रालय में भेजा गया है, लेकिन भारत सरकार ने इस पर आपत्ति जताई है कि वन विभाग की जमीन विस्थापन कराने के लिए नहीं दी जा सकती है.