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यादों में टिहरी: तारीखों में पुरानी टिहरी की एक झलक

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Published : Jul 31, 2019, 7:04 AM IST

पुरानी टिहरी में धुनारों के साथ जो लोग यहां बसे वे सुदर्शन शाह के साथ ही आये थे. इनमें राजपरिवार के सदस्यों के साथ ही इनके राज-काज के सहयोगी व कर्मचारी थे. जब राजा रियासत के लोगों से खुश होते या प्रभावित होते थे तो उन्हें जमीन दान करते थे.  बाद में आस-पास के गांवों के वे लोग जो सक्षम थे टिहरी में बसते चले गये

तारीखों में पुरानी टिहरी की एक झलक

टिहरी: आजादी के पहले टिहरी में राजशाही का दौर. ये वो ही समय था जब एक छोटी सी धुनारों की बस्ती को एक राजधानी का रूप दिया गया. देखते ही देखते ये बस्ती एक ऐतिहासिक शहर में बदल गई. किसी भी शहर को एतिहासिक वहां कि सभ्यता,संस्कृति बनाते हैं. जो कि पुरानी टिहरी में खूब फली-फूली लेकिन साल 2004 में विकास की दौड़ में इस शहर के साथ ही यहां कि सभ्यता और संस्कृति भी डूब गई. आईये नजर डालते हैं आजादी के बाद से लेकर 2004 तक के इतिहास पर.

पढ़ें-बीजेपी का नया टारगेट, 50 सदस्य बनाओ और पार्टी में जिम्मेदारी पाओ

आजादी के बाद 1948 में अन्तरिम राज्य सरकार ने टिहरी-धरासू मोटर मार्ग पर काम शुरू करवाया था. 1949 में संयुक्त प्रांत में रियासत के विलीनीकरण के बाद टिहरी के विकास के नये रास्ते खुले ही थे कि शीघ्र ही बांध की चर्चायें शुरू हो गई. भारत विभाजन के समय सीमांत क्षेत्र से आये पंजाबी समुदाय के कई परिवार टिहरी में आकर बसे.

पढ़ें-मसूरी के इस भूतिया होटल में हो रहा हिमालयन कॉन्क्लेव, ब्रिटिश महिला की आत्मा होने का दावा

इस दौरान जिला मुख्यालय नरेन्द्रनगर में रहा लेकिन तब भी कई जिला स्तरीय कार्यालय टिहरी में ही बने रहे. जिला न्यायालय, जिला परिषद, ट्रेजरी सहित दो दर्जन जिला स्तरीय कार्यालय कुछ वर्ष पूर्व तक टिहरी में ही रहे जो बाद में नई टिहरी में लाये गये.

पढ़ें-एक बार फिर से सोशल मीडिया पर छाई उत्तरा पंत, इशारों में सीएम त्रिवेंद्र को लेकर कही ये बात

सत्तर के दशक तक यहां नई संस्थाएं भी स्थापित हुई. पहले डिग्री कॉलेज फिर विश्व विद्यालय परिसर, मॉडल स्कूल, बीटीसी स्कूल, राजमाता कॉलेज, नेपालिया इन्टर कालेज, संस्कृत महाविद्यालय सहित अनेक सरकारी व गैर सरकारी विद्यालय खुलने से यह शिक्षा का केन्द्र बन गया.साथ ही बांध की छाया भी इस पर पड़ती रही. सुमन पुस्तकालय इस शहर की बड़ी विरासत रही है जिसमें करीब 30 हजार पुस्तकें हैं.

पढ़ें-दून अस्पताल में तोड़फोड़ करने वालों के खिलाफ पुलिस ने दर्ज किया मुकदमा

पुरानी टिहरी में धुनारों के साथ जो लोग यहां बसे वे सुदर्शन शाह के साथ ही आये थे. इनमें राजपरिवार के सदस्यों के साथ ही इनके राज-काज के सहयोगी व कर्मचारी थे. जब राजा रियासत के लोगों से खुश होते या प्रभावित होते थे तो उन्हें जमीन दान करते थे. बाद में आस-पास के गांवों के वे लोग जो सक्षम थे टिहरी में बसते चले गये. आजादी के बाद टिहरी सबके लिये अपनी हो गई. व्यापार करने के लिये भी यहां काफी लोग यहां पहुंचते थे. बांध के कारण पुनर्वास हेतु जब पात्रता बनी तो टिहरी के भूस्वामी परिवारों की संख्या 1668 पाई गई. अन्य किरायेदार, बेनाप व कर्मचारी परिवारों की संख्या करीब साढ़े तीन हजार थी.

तारीखों में पुरानी टिहरी की एक झलक

17वीं सताब्दी(1629-1646) पंवार व राजा महीपत शाह के सेनापति रिखोला लोदी का धुनारों की बस्ती में आगमन

सन 1803- नेपाल की गोरखा सेना का गढ़वाल पर आक्रमण. श्रीनगर गढ़वाल राजधानी पंवार वंश से गोरखों ने हथिया ली व खुड़बूड़ (देहरादून) के युद्ध में राजा प्रद्युम्न शाह वीरगति को प्राप्त हुए. प्रद्युम्न शाह के नाबालिग पुत्र सुदर्शन शाह ने रियासत से पलायन कर दिया.

जून, 1815 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी से युद्ध में गोरखा सेना की निर्णायक पराजय, सुदर्शन शाह ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी से सहायता मांगी थी. जुलाई, 1815 सुदर्शन शाह अपनी पूर्वजों की राजधनी श्रीनगर गढ़वाल पहुंचे. नवम्बर, 1815 ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने दून क्षेत्र व श्रीनगर गढ़वाल सहित अलकनन्दा के पूरब वाला क्षेत्र अपने शासन में मिलाया और पश्चिम वाला क्षेत्र सुदर्शन शाह को शासन करने हेतु वापस सौंप दिया. 29 दिसम्बर,1815 नई राजधनी की तलाश में सुदर्शन शाह टिहरी पहुंचे. 30 दिसम्बर, 1815 टिहरी में गढ़वाल रियासत की राजधनी स्थापित की गई. जनवरी, 1816 टिहरी में राजकोष से 700 रुपये खर्च कर एक साथ 30 मकानों का निर्माण शुरू किया गया. 6 फरवरी, 1820- प्रसिद्ध ब्रिटिश पर्यटक मूर क्राफ्र्ट अपने दल के साथ टिहरी पहुंचा. 4 मार्च, 1820 सुदर्शन शाह को ईस्ट इण्डिया कम्पनी के गर्वनर जनरल ने गढ़वाल रियासत के राजा के रूप में मान्यता दी. 1858 में भागीरथी नदी पर पहली बार लकड़ी का पुल बनाया गया

1859 अंग्रेज ठेकेदार विल्सन ने चार हजार रुपये वार्षिक पर रियासत में जंगल कटान का ठेका लिया. 4 मई, 1859 को सुदर्शन शाह की मृत्यु हुई,भवानी शाह गद्दी पर बैठे.1861 में टिहरी से लगी पट्टी अठूर में नई भू-व्यवस्था लागू की गई. 1867 में अठूर के किसान नेता बदरी सिंह असवाल को टिहरी में कैद किया गया.सितम्बर, 1868 टिहरी जेल में बदरी सिंह असवाल की मौत, टिहरी व अठूर पट्टी में हलचल मची.1871 भवानी शाह की मृत्यु, राजकोष की फिर लूट हुई. 1876 में टिहरी में पहला खैराती दवा खाना खुला.1877 में भिलंगना नदी पर कण्डल झूला पुल का निर्माण हुआ

  • 1881 रानीबाग में पुराना निरीक्षण भवन का निर्माण किया गया.
  • 20 जून 1897 को टिहरी में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया की हीरक जयंती के उपलक्ष्य में घण्टाघर का निर्माण शुरू.
  • 1902 में स्वामी रामतीर्थ का टिहरी आगमन
  • 1906 में स्वामी रामतीर्थ टिहरी में भिलंगना नदी में जल समाधि ली.
  • 25 अप्रैल 1913 में कीर्ति शाह की मृत्यु के बाद नरेन्द्र शाह गद्दी पर बैठे
  • 1917 रियासत के बजीर पंडित हरिकृष्ण रतूड़ी ने नरेन्द्र हिन्दू लॉ ग्रंथ की रचना की
  • 1920 में टिहरी में कृषि बैंक की स्थापना हुई.
  • 1923 में रियासत की प्रथम पब्लिक लाइब्रेरी की स्थापना हुई
  • 1924 में बाढ़ से भागीरथी पर बना लकड़ी का पुल बहा
  • 1938 में टिहरी में रियासत का हाईकोर्ट बना. गंगा प्रसाद प्रथम जीफ जज नियुक्त किये गये.
  • 1940 में प्रताप कालेज इण्टरमीडिएट तक उच्चीकृत


आजादी के बाद टिहरी का इतिहास

1945-48 में प्रजा मंडल के नेतृत्व में टिहरी जनक्रांति का केन्द्र बना.14 जनवरी 1948 को राजतंत्र का तख्ता पलट किया गया. नरेन्द्र शाह को भागीरथी पुल पर रोक कर वापस नरेन्द्र भेजा गया. जिसके बाद जनता द्वारा चुनी गई सरकार का गठन किया गया.अगस्त 1949 में टिहरी रियासत का संयुक्त प्रांत में विलय हुआ.

1953 में टिहरी नगरपालिका का पहला चुनाव हुआ. डॉ. महावीर प्रसाद गैरोला अध्यक्ष चुने गये.1955 में आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद सरस्वती टिहरी आये. 20 मार्च 1963 को राजमाता कालेज की स्थापना की गई इसी दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ0 राधाकृष्णन भी टिहरी पहुंचे.

1963 में ऐतिहासित टिहरी में बांध बनाने की घोषणा की गई.1969 में टिहरी में प्रथम डिग्री कॉलेज खुला.1978 में टिहरी बांध विरोधी संघर्ष समिति का गठन किया गया. वीरेन्द्र दत्त सकलानी जिसके अध्यक्ष बने. 29 जुलाई, 2005 को पुरानी टिहरी शहर में पानी घुसा. करीब सौ परिवारों को शहर छोड़ना पड़ा. 29 अक्टूबर, 2005 को बांध की टनल-2 बन्द हुई. जिसके बाद टिहरी में जल भराव शुरू हुआ.

टिहरी: आजादी के पहले टिहरी में राजशाही का दौर. ये वो ही समय था जब एक छोटी सी धुनारों की बस्ती को एक राजधानी का रूप दिया गया. देखते ही देखते ये बस्ती एक ऐतिहासिक शहर में बदल गई. किसी भी शहर को एतिहासिक वहां कि सभ्यता,संस्कृति बनाते हैं. जो कि पुरानी टिहरी में खूब फली-फूली लेकिन साल 2004 में विकास की दौड़ में इस शहर के साथ ही यहां कि सभ्यता और संस्कृति भी डूब गई. आईये नजर डालते हैं आजादी के बाद से लेकर 2004 तक के इतिहास पर.

पढ़ें-बीजेपी का नया टारगेट, 50 सदस्य बनाओ और पार्टी में जिम्मेदारी पाओ

आजादी के बाद 1948 में अन्तरिम राज्य सरकार ने टिहरी-धरासू मोटर मार्ग पर काम शुरू करवाया था. 1949 में संयुक्त प्रांत में रियासत के विलीनीकरण के बाद टिहरी के विकास के नये रास्ते खुले ही थे कि शीघ्र ही बांध की चर्चायें शुरू हो गई. भारत विभाजन के समय सीमांत क्षेत्र से आये पंजाबी समुदाय के कई परिवार टिहरी में आकर बसे.

पढ़ें-मसूरी के इस भूतिया होटल में हो रहा हिमालयन कॉन्क्लेव, ब्रिटिश महिला की आत्मा होने का दावा

इस दौरान जिला मुख्यालय नरेन्द्रनगर में रहा लेकिन तब भी कई जिला स्तरीय कार्यालय टिहरी में ही बने रहे. जिला न्यायालय, जिला परिषद, ट्रेजरी सहित दो दर्जन जिला स्तरीय कार्यालय कुछ वर्ष पूर्व तक टिहरी में ही रहे जो बाद में नई टिहरी में लाये गये.

पढ़ें-एक बार फिर से सोशल मीडिया पर छाई उत्तरा पंत, इशारों में सीएम त्रिवेंद्र को लेकर कही ये बात

सत्तर के दशक तक यहां नई संस्थाएं भी स्थापित हुई. पहले डिग्री कॉलेज फिर विश्व विद्यालय परिसर, मॉडल स्कूल, बीटीसी स्कूल, राजमाता कॉलेज, नेपालिया इन्टर कालेज, संस्कृत महाविद्यालय सहित अनेक सरकारी व गैर सरकारी विद्यालय खुलने से यह शिक्षा का केन्द्र बन गया.साथ ही बांध की छाया भी इस पर पड़ती रही. सुमन पुस्तकालय इस शहर की बड़ी विरासत रही है जिसमें करीब 30 हजार पुस्तकें हैं.

पढ़ें-दून अस्पताल में तोड़फोड़ करने वालों के खिलाफ पुलिस ने दर्ज किया मुकदमा

पुरानी टिहरी में धुनारों के साथ जो लोग यहां बसे वे सुदर्शन शाह के साथ ही आये थे. इनमें राजपरिवार के सदस्यों के साथ ही इनके राज-काज के सहयोगी व कर्मचारी थे. जब राजा रियासत के लोगों से खुश होते या प्रभावित होते थे तो उन्हें जमीन दान करते थे. बाद में आस-पास के गांवों के वे लोग जो सक्षम थे टिहरी में बसते चले गये. आजादी के बाद टिहरी सबके लिये अपनी हो गई. व्यापार करने के लिये भी यहां काफी लोग यहां पहुंचते थे. बांध के कारण पुनर्वास हेतु जब पात्रता बनी तो टिहरी के भूस्वामी परिवारों की संख्या 1668 पाई गई. अन्य किरायेदार, बेनाप व कर्मचारी परिवारों की संख्या करीब साढ़े तीन हजार थी.

तारीखों में पुरानी टिहरी की एक झलक

17वीं सताब्दी(1629-1646) पंवार व राजा महीपत शाह के सेनापति रिखोला लोदी का धुनारों की बस्ती में आगमन

सन 1803- नेपाल की गोरखा सेना का गढ़वाल पर आक्रमण. श्रीनगर गढ़वाल राजधानी पंवार वंश से गोरखों ने हथिया ली व खुड़बूड़ (देहरादून) के युद्ध में राजा प्रद्युम्न शाह वीरगति को प्राप्त हुए. प्रद्युम्न शाह के नाबालिग पुत्र सुदर्शन शाह ने रियासत से पलायन कर दिया.

जून, 1815 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी से युद्ध में गोरखा सेना की निर्णायक पराजय, सुदर्शन शाह ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी से सहायता मांगी थी. जुलाई, 1815 सुदर्शन शाह अपनी पूर्वजों की राजधनी श्रीनगर गढ़वाल पहुंचे. नवम्बर, 1815 ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने दून क्षेत्र व श्रीनगर गढ़वाल सहित अलकनन्दा के पूरब वाला क्षेत्र अपने शासन में मिलाया और पश्चिम वाला क्षेत्र सुदर्शन शाह को शासन करने हेतु वापस सौंप दिया. 29 दिसम्बर,1815 नई राजधनी की तलाश में सुदर्शन शाह टिहरी पहुंचे. 30 दिसम्बर, 1815 टिहरी में गढ़वाल रियासत की राजधनी स्थापित की गई. जनवरी, 1816 टिहरी में राजकोष से 700 रुपये खर्च कर एक साथ 30 मकानों का निर्माण शुरू किया गया. 6 फरवरी, 1820- प्रसिद्ध ब्रिटिश पर्यटक मूर क्राफ्र्ट अपने दल के साथ टिहरी पहुंचा. 4 मार्च, 1820 सुदर्शन शाह को ईस्ट इण्डिया कम्पनी के गर्वनर जनरल ने गढ़वाल रियासत के राजा के रूप में मान्यता दी. 1858 में भागीरथी नदी पर पहली बार लकड़ी का पुल बनाया गया

1859 अंग्रेज ठेकेदार विल्सन ने चार हजार रुपये वार्षिक पर रियासत में जंगल कटान का ठेका लिया. 4 मई, 1859 को सुदर्शन शाह की मृत्यु हुई,भवानी शाह गद्दी पर बैठे.1861 में टिहरी से लगी पट्टी अठूर में नई भू-व्यवस्था लागू की गई. 1867 में अठूर के किसान नेता बदरी सिंह असवाल को टिहरी में कैद किया गया.सितम्बर, 1868 टिहरी जेल में बदरी सिंह असवाल की मौत, टिहरी व अठूर पट्टी में हलचल मची.1871 भवानी शाह की मृत्यु, राजकोष की फिर लूट हुई. 1876 में टिहरी में पहला खैराती दवा खाना खुला.1877 में भिलंगना नदी पर कण्डल झूला पुल का निर्माण हुआ

  • 1881 रानीबाग में पुराना निरीक्षण भवन का निर्माण किया गया.
  • 20 जून 1897 को टिहरी में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया की हीरक जयंती के उपलक्ष्य में घण्टाघर का निर्माण शुरू.
  • 1902 में स्वामी रामतीर्थ का टिहरी आगमन
  • 1906 में स्वामी रामतीर्थ टिहरी में भिलंगना नदी में जल समाधि ली.
  • 25 अप्रैल 1913 में कीर्ति शाह की मृत्यु के बाद नरेन्द्र शाह गद्दी पर बैठे
  • 1917 रियासत के बजीर पंडित हरिकृष्ण रतूड़ी ने नरेन्द्र हिन्दू लॉ ग्रंथ की रचना की
  • 1920 में टिहरी में कृषि बैंक की स्थापना हुई.
  • 1923 में रियासत की प्रथम पब्लिक लाइब्रेरी की स्थापना हुई
  • 1924 में बाढ़ से भागीरथी पर बना लकड़ी का पुल बहा
  • 1938 में टिहरी में रियासत का हाईकोर्ट बना. गंगा प्रसाद प्रथम जीफ जज नियुक्त किये गये.
  • 1940 में प्रताप कालेज इण्टरमीडिएट तक उच्चीकृत


आजादी के बाद टिहरी का इतिहास

1945-48 में प्रजा मंडल के नेतृत्व में टिहरी जनक्रांति का केन्द्र बना.14 जनवरी 1948 को राजतंत्र का तख्ता पलट किया गया. नरेन्द्र शाह को भागीरथी पुल पर रोक कर वापस नरेन्द्र भेजा गया. जिसके बाद जनता द्वारा चुनी गई सरकार का गठन किया गया.अगस्त 1949 में टिहरी रियासत का संयुक्त प्रांत में विलय हुआ.

1953 में टिहरी नगरपालिका का पहला चुनाव हुआ. डॉ. महावीर प्रसाद गैरोला अध्यक्ष चुने गये.1955 में आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद सरस्वती टिहरी आये. 20 मार्च 1963 को राजमाता कालेज की स्थापना की गई इसी दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ0 राधाकृष्णन भी टिहरी पहुंचे.

1963 में ऐतिहासित टिहरी में बांध बनाने की घोषणा की गई.1969 में टिहरी में प्रथम डिग्री कॉलेज खुला.1978 में टिहरी बांध विरोधी संघर्ष समिति का गठन किया गया. वीरेन्द्र दत्त सकलानी जिसके अध्यक्ष बने. 29 जुलाई, 2005 को पुरानी टिहरी शहर में पानी घुसा. करीब सौ परिवारों को शहर छोड़ना पड़ा. 29 अक्टूबर, 2005 को बांध की टनल-2 बन्द हुई. जिसके बाद टिहरी में जल भराव शुरू हुआ.

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टिहरी: आजादी के पहले टिहरी में राजशाही का दौर. ये वो ही समय था जब एक छोटी सी धुनारों की बस्ती को एक राजधानी का रूप दिया गया. देखते ही देखते ये बस्ती एक ऐतिहासिक शहर में बदल गई. किसी भी शहर को एतिहासिक वहां कि सभ्यता,संस्कृति बनाते हैं. जो कि पुरानी टिहरी में खूब फली-फूली लेकिन साल 2004 में विकास की दौड़ में इस शहर के साथ ही यहां कि सभ्यता और संस्कृति भी डूब गई. आईये नजर डालते हैं आजादी के बाद से लेकर 2004 तक के इतिहास पर. 

आजादी के बाद 1948 में अन्तरिम राज्य सरकार ने टिहरी-धरासू मोटर मार्ग पर काम शुरू करवाया था. 1949 में संयुक्त प्रांत में रियासत के विलीनीकरण के बाद टिहरी के विकास के नये रास्ते खुले ही थे कि शीघ्र ही बांध की चर्चायें शुरू हो गई.  भारत विभाजन के समय सीमांत क्षेत्र से आये पंजाबी समुदाय के कई परिवार टिहरी में आकर बसे. 

इस दौरान जिला मुख्यालय नरेन्द्रनगर में रहा लेकिन तब भी कई जिला स्तरीय कार्यालय टिहरी में ही बने रहे. जिला न्यायालय, जिला परिषद, ट्रेजरी सहित दो दर्जन जिला स्तरीय कार्यालय कुछ वर्ष पूर्व तक टिहरी में ही रहे जो बाद में नई टिहरी में लाये गये.

सत्तर के दशक तक यहां नई संस्थाएं भी स्थापित हुई. पहले डिग्री कॉलेज फिर विश्व विद्यालय परिसर, मॉडल स्कूल, बीटीसी स्कूल, राजमाता कॉलेज, नेपालिया इन्टर कालेज, संस्कृत महाविद्यालय सहित अनेक सरकारी व गैर सरकारी विद्यालय खुलने से यह शिक्षा का केन्द्र बन गया.साथ ही बांध की छाया भी इस पर पड़ती रही. सुमन पुस्तकालय इस शहर की बड़ी विरासत रही है जिसमें करीब 30 हजार पुस्तकें हैं.

पुरानी टिहरी में धुनारों के साथ जो लोग यहां बसे वे सुदर्शन शाह के साथ ही आये थे. इनमें राजपरिवार के सदस्यों के साथ ही इनके राज-काज के सहयोगी व कर्मचारी थे. जब राजा रियासत के लोगों से खुश होते या प्रभावित होते थे तो उन्हें जमीन दान करते थे.  बाद में आस-पास के गांवों के वे लोग जो सक्षम थे टिहरी में बसते चले गये. आजादी के बाद टिहरी सबके लिये अपनी हो गई. व्यापार करने के लिये भी यहां काफी लोग यहां पहुंचते थे. बांध के कारण पुनर्वास हेतु जब पात्रता बनी तो टिहरी के भूस्वामी परिवारों की संख्या 1668 पाई गई. अन्य किरायेदार, बेनाप व कर्मचारी परिवारों की संख्या करीब साढ़े तीन हजार थी.



तारीखों में पुरानी टिहरी की एक झलक



17वीं सताब्दी(1629-1646) पंवार व राजा महीपत शाह के सेनापति रिखोला लोदी का धुनारों की बस्ती में आगमन



सन 1803- नेपाल की गोरखा सेना का गढ़वाल पर आक्रमण. श्रीनगर गढ़वाल राजधानी पंवार वंश से गोरखों ने हथिया ली व खुड़बूड़ (देहरादून) के युद्ध में राजा प्रद्युम्न शाह वीरगति को प्राप्त हुए. प्रद्युम्न शाह के नाबालिग पुत्र सुदर्शन शाह ने रियासत से पलायन कर दिया.



जून, 1815 में  ईस्ट इण्डिया कम्पनी से युद्ध में गोरखा सेना की निर्णायक पराजय, सुदर्शन शाह ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी से सहायता मांगी थी. जुलाई, 1815 सुदर्शन शाह अपनी पूर्वजों की राजधनी श्रीनगर गढ़वाल पहुंचे. नवम्बर, 1815 ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने दून क्षेत्र व श्रीनगर गढ़वाल सहित अलकनन्दा के पूरब वाला क्षेत्र अपने शासन में मिलाया और पश्चिम वाला क्षेत्र सुदर्शन शाह को शासन करने हेतु वापस सौंप दिया. 29 दिसम्बर,1815 नई राजधनी की तलाश में सुदर्शन शाह टिहरी पहुंचे. 30 दिसम्बर, 1815  टिहरी में गढ़वाल रियासत की राजधनी स्थापित की गई.  जनवरी, 1816 टिहरी में राजकोष से 700 रुपये खर्च कर एक साथ 30 मकानों का निर्माण शुरू किया गया. 6 फरवरी, 1820- प्रसिद्ध ब्रिटिश पर्यटक मूर क्राफ्र्ट अपने दल के साथ टिहरी पहुंचा. 4 मार्च, 1820 सुदर्शन शाह को ईस्ट इण्डिया कम्पनी के गर्वनर जनरल ने गढ़वाल रियासत के राजा के रूप में मान्यता दी. 1858 में भागीरथी नदी पर पहली बार लकड़ी का पुल बनाया गया



1859 अंग्रेज ठेकेदार विल्सन ने चार हजार रुपये वार्षिक पर रियासत में जंगल कटान का ठेका लिया. 4 मई, 1859 को सुदर्शन शाह की मृत्यु हुई,भवानी शाह गद्दी पर बैठे.1861 में  टिहरी से लगी पट्टी अठूर में नई भू-व्यवस्था लागू की गई. 1867 में अठूर के किसान नेता बदरी सिंह असवाल को टिहरी में कैद किया गया.सितम्बर, 1868 टिहरी जेल में बदरी सिंह असवाल की मौत, टिहरी व अठूर पट्टी में हलचल मची.1871 भवानी शाह की मृत्यु, राजकोष की फिर लूट हुई. 1876 में टिहरी में पहला खैराती दवा खाना खुला.1877 में भिलंगना नदी पर कण्डल झूला पुल का निर्माण हुआ 





1881 रानीबाग में पुराना निरीक्षण भवन का निर्माण किया गया.

20 जून 1897 को टिहरी में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया की हीरक जयंती के उपलक्ष्य में घण्टाघर का निर्माण शुरू. 

1902 में स्वामी रामतीर्थ का टिहरी आगमन

1906 में स्वामी रामतीर्थ टिहरी में भिलंगना नदी में जल समाधि ली.

25 अप्रैल 1913 में कीर्ति शाह की मृत्यु के बाद नरेन्द्र शाह गद्दी पर बैठे

1917 रियासत के बजीर पंडित हरिकृष्ण रतूड़ी ने नरेन्द्र हिन्दू लॉ ग्रंथ की रचना की

1920 में टिहरी में कृषि बैंक की स्थापना हुई. 

1923 में रियासत की प्रथम पब्लिक लाइब्रेरी की स्थापना हुई

1924 में बाढ़ से भागीरथी पर बना लकड़ी का पुल बहा

1938 में टिहरी में रियासत का हाईकोर्ट बना. गंगा प्रसाद प्रथम जीफ जज नियुक्त किये गये.

1940- प्रताप कालेज इण्टरमीडिएट तक उच्चीकृत।

आजादी के बाद टिहरी का इतिहास

1945-48 में प्रजा मंडल के नेतृत्व में टिहरी जनक्रांति का केन्द्र बना.14 जनवरी 1948 को राजतंत्र का तख्ता पलट किया गया. नरेन्द्र शाह को भागीरथी पुल पर रोक कर वापस नरेन्द्र भेजा गया. जिसके बाद जनता द्वारा चुनी गई सरकार का गठन किया गया.अगस्त 1949 में टिहरी रियासत का संयुक्त प्रांत में विलय हुआ



1953 में टिहरी नगरपालिका का पहला चुनाव हुआ. डॉ. महावीर प्रसाद गैरोला अध्यक्ष चुने गये.1955 में आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद सरस्वती टिहरी आये. 20 मार्च 1963 को राजमाता कालेज की स्थापना की गई इसी दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ0 राधाकृष्णन भी टिहरी पहुंचे



1963 में ऐतिहासित टिहरी में बांध बनाने की घोषणा की गई.1969 में टिहरी में प्रथम डिग्री कॉलेज खुला.1978 में  टिहरी बांध विरोधी संघर्ष समिति का गठन किया गया. वीरेन्द्र दत्त सकलानी जिसके अध्यक्ष बने. 29 जुलाई, 2004 को पुरानी टिहरी शहर में पानी घुसा. करीब सौ परिवारों को शहर छोड़ना पड़ा. 29 अक्टूबर, 2005 को बांध की टनल-2 बन्द हुई. जिसके बाद  टिहरी में जल भराव शुरू हुआ 

 


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