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देखरेख के अभाव में खंडहर हुई टिहरी राजघराने की ये विरासत, इस वजह से संरक्षण था जरूरी - pratapnagar palace

1815 में पुरानी टिहरी को राजा सुदर्शन शाह ने बसाया था. 1887 में प्रतापशाह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र कीर्तिशाह गद्दी पर बैठ गए. लेकिन आश्चर्य की बात तो ये है कि इसी टिहरी सीट से माला राज्य लक्ष्मी शाह को जीत मिली है लेकिन सांसद अपने पूर्वजों का पैतृक राजमहल नहीं संजो सकीं, जिससे वो आज खण्डर में तब्दील हो गया.

खंडहर में तब्दील हुआ प्रतापनगर राजमहल.
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Published : Nov 15, 2019, 4:06 PM IST

टिहरी: भाजपा सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह के पूर्वजों की विरासत प्रतापनगर का राजमहल खंडहर में तब्दील हो चुका है. बता दें कि 28 दिसम्बर 1815 को पुरानी टिहरी को राजा सुदर्शन शाह ने बसाया था. 1887 में प्रतापशाह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र कीर्तिशाह गद्दी पर बैठ गए. लेकिन आश्चर्य की बात तो ये है कि इसी टिहरी सीट से माला राज्य लक्ष्मी शाह को जीत मिली है लेकिन सांसद अपने पूर्वजों का पैतृक राजमहल नहीं संजो सकीं, जिससे वो आज खण्डर में तब्दील हो गया.

पढ़ें- पर्यटकों के लिए बंद की गई फूलों की घाटी, इस साल टूटे कई रिकॉर्ड

प्रतापशाह ने अपने नाम से 1877 में टिहरी से करीब 15 किमी पैदल दूर उत्तर दिशा में ऊंचाई वाली पहाड़ी पर प्रतापनगर बसाना शुरू किया. इससे टिहरी का विस्तार कुछ प्रभावित हुआ. टिहरी से प्रतापनगर आने-जाने के लिए भिलंगना नदी पर झूला पुल (कण्डल पुल) का निर्माण होने से एक बड़े क्षेत्र (रैका-धारमण्डल) की आबादी का टिहरी आना-जाना आसान हो गया और इसी प्रतापनगर में राजा ने राजमहल का निर्माण कराया. जिसके बाद राजशाही सर्दी के 6 महीने पुरानी टिहरी से होती थी और गर्मी के 6 महीने प्रतापनगर से होती थी, जो राजमहल आज विरान और खंडहर बन गया.

इस वजह से होनी चाहिए थी हिफाजत
वहीं सरकार पलायन रोकने के बातें कर रही है, लेकिन प्रतापनगर का ये राज महल सरकार के पलायन नीति को अंगूठा दिखाता नजर आ रहा है. दरअसल, इस महल को देखने के लिए काफी मात्रा में लोगों की भीड़ रहती है और अगर सरकार इसे संजो कर रखे तो इससे पर्यटन को बढ़ावा मिल सकता था. लेकिन इस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया. जिससे आज ये महल खंडहर में तब्दील हो गया है.

ये भी है वजह
ये राजमहल ऐसा-वैसा नहीं बल्कि टिहरी की भाजपा सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह के पूर्वजों की विरासत है. जिसे राजा प्रतापशाह ने बनवाया था. लेकिन सांसद के इसपर ध्यान नहीं दिए जाने से पूर्वजों की विरासत खत्म होने के कगार पर आ गई है.

टिहरी: भाजपा सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह के पूर्वजों की विरासत प्रतापनगर का राजमहल खंडहर में तब्दील हो चुका है. बता दें कि 28 दिसम्बर 1815 को पुरानी टिहरी को राजा सुदर्शन शाह ने बसाया था. 1887 में प्रतापशाह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र कीर्तिशाह गद्दी पर बैठ गए. लेकिन आश्चर्य की बात तो ये है कि इसी टिहरी सीट से माला राज्य लक्ष्मी शाह को जीत मिली है लेकिन सांसद अपने पूर्वजों का पैतृक राजमहल नहीं संजो सकीं, जिससे वो आज खण्डर में तब्दील हो गया.

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प्रतापशाह ने अपने नाम से 1877 में टिहरी से करीब 15 किमी पैदल दूर उत्तर दिशा में ऊंचाई वाली पहाड़ी पर प्रतापनगर बसाना शुरू किया. इससे टिहरी का विस्तार कुछ प्रभावित हुआ. टिहरी से प्रतापनगर आने-जाने के लिए भिलंगना नदी पर झूला पुल (कण्डल पुल) का निर्माण होने से एक बड़े क्षेत्र (रैका-धारमण्डल) की आबादी का टिहरी आना-जाना आसान हो गया और इसी प्रतापनगर में राजा ने राजमहल का निर्माण कराया. जिसके बाद राजशाही सर्दी के 6 महीने पुरानी टिहरी से होती थी और गर्मी के 6 महीने प्रतापनगर से होती थी, जो राजमहल आज विरान और खंडहर बन गया.

इस वजह से होनी चाहिए थी हिफाजत
वहीं सरकार पलायन रोकने के बातें कर रही है, लेकिन प्रतापनगर का ये राज महल सरकार के पलायन नीति को अंगूठा दिखाता नजर आ रहा है. दरअसल, इस महल को देखने के लिए काफी मात्रा में लोगों की भीड़ रहती है और अगर सरकार इसे संजो कर रखे तो इससे पर्यटन को बढ़ावा मिल सकता था. लेकिन इस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया. जिससे आज ये महल खंडहर में तब्दील हो गया है.

ये भी है वजह
ये राजमहल ऐसा-वैसा नहीं बल्कि टिहरी की भाजपा सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह के पूर्वजों की विरासत है. जिसे राजा प्रतापशाह ने बनवाया था. लेकिन सांसद के इसपर ध्यान नहीं दिए जाने से पूर्वजों की विरासत खत्म होने के कगार पर आ गई है.

Intro:टिहरी

देखरेख के अभाव में टिहरी की भाजपा सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह के पूर्वजों की विरासत प्रतापनगर का राजमहल हुआ खंडरBody:28 दिसम्बर 1815 को पुरानी टिहरी को राजा सुर्दशन शाह ने बसाया था। 1959 में सुदर्शन शाह की मृत्यु हो गयी और उनके पुत्र भवानी शाह टिहरी की राजगद्दी पर बैठे। राजगद्दी पर विवाद के कारण इस दरम्यान राजपरिवार के ही कुछ सदस्यों ने राजकोष की जम कर लूट की और भवानी शाह के हाथ शुरू से तंग हो गये। उन्होंने मात्र 12 साल तक गद्दी सम्भाली। उनके शासन में टिहरी में हाथ से कागज बनाने का ऐसा कारोबार शुरू हुआ कि अंग्रेज सरकार के अधिकारी भी यहां से कागज खरीदने लगे।
भवानी शाह की मौत के बाद1871 में भवानी शाह के पुत्र प्रताप शाह टिहरी की गद्दी पर बैठे। भिलंगना के बांये तट पर सेमल तप्पड़ में उनका राज्याभिषेक हुआ। प्रताप शाह में अपने कार्यकाल में टिहरी में कई नये निर्माण करवाये, पुराना दरवार राजमहल से रानी बाग तक सड़क बनी, कोर्ट भवन बना, खैराती सफाखान खुला व स्थापना हुई। रियासत के पहले विद्यालय प्रताप कालेज की स्थापना जो पहले प्राइमरी व फिर जूनियर स्तर का उन्हीं के शासन में हो गया।ओर राजकोष में वृद्धि हुई

प्रतापशाह ने अपने नाम से 1877 में टिहरी से करीब 15 किमी पैदल दूर उत्तर दिशा में ऊंचाई वाली पहाड़ी पर प्रतापनगर बसाना शुरू किया। इससे टिहरी का विस्तार कुछ प्रभावित हुआ लेकिन टिहरी में प्रतापनगर आने-जाने हेतु भिलंगना नदी पर झूला पुल (कण्डल पुल) का निर्माण होने से एक बड़े क्षेत्र (रैका-धारमण्डल) की आबादी का टिहरी आना-जाना आसान हो गया। नदी पार के गांवों का टिहरी से जुड़ते जाना इसके विकास में सहायक हुआ। राजधानी तो यह थी ही व्यापार का केन्द्र भी बनने लगी। ओर टिहरी की राजशाही सर्दी के 6 महीने पुरानी टिहरी से होती थी और गर्मी के 6 महीने प्रतापनगर से होती थी, जो राजमहल आज बिरान ओर खण्डर बन गया

1887 में प्रतापशाह की मृत्यु के बाद उनका पुत्र कीर्तिशाह गद्दी पर बैठा। Conclusion:लेकिन आश्चर्य की बात देखो की इसी टिहरी सीट से भाजपा सांसद सीट माला राज्य लक्ष्मी शाह जीती है और टिहरी की जनता ने वही प्यार इनको दिया जो इनके राजपरिवार को दिया
पर सांसद ने अपने पूर्वजो का पैतृक राजमहल नही संजो सकी जो आज खण्डर में तब्दील हो गया,
वही सरकार पलायन रोकने के बाते कर रही है कि अपने अपने घरों की तरफ लोट आओ ओर अपने पूर्वजों के मकानों को संरक्षित करे,लेकिन प्रतापनगर का ये राज महल सरकार के पलायन नीति को चिड़ा रहा है

इस महल को देखने के लिए काफी मात्रा के लोगो की भीड़ रहती है,अगर सरकार इसे संजोती तो इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलता,परन्तु इस ओर किसी ने ध्यान नही दिया

पीटीसी अरविंद नौटियाल
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