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टिहरी जिले के कंडारस्यूं गांव पांडव नृत्य की धूम, जानिये क्या है इतिहास

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 2, 2023, 7:32 PM IST

Updated : Oct 2, 2023, 10:29 PM IST

टिहरी जिले के कंडारस्यूं गांव में हर तीसरे वर्ष पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है. इस साल भी यहां धूमधाम से पांडव नृत्य का आयोजन किया जा रहा है. जिसमें बड़ी संख्या में ग्रामीण भाग ले रहे हैं.

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टिहरी जिले के कंडारस्यूं गांव पांडव नृत्य की धूम
टिहरी जिले के कंडारस्यूं गांव पांडव नृत्य की धूम

टिहरी: हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड को देवभूमि भी कहा जाता है. उत्तराखंड अपनी अलौकिक खूबसरती, प्राचीन मंदिर और संस्कृति के लिए विश्वविख्यात है. यहां की लोक कलाएं और लोक संगीत बरसों से भारत की प्राचीन कथाओं का बखान करती आ रही हैं. पांडव नृत्य उत्तराखंड की ऐसी ही एक परंपरा है. उत्तराखंड में पांडव नृत्य पूरे एक माह के लिए आयोजित होता है. गढ़वाल क्षेत्र में अलग अलग समय पर पांडव नृत्य का आयोजन होता रहता है. गांव वाले खाली समय में पांडव नृत्य के आयोजन के लिए बढ़ चढ़कर भागीदारी करते हैं.


उत्तराखंड के टिहरी स्थित कंडारस्यूं गांव में हर तीसरे वर्ष पांडव नृत्य का आयोजन बड़े धूमधाम से किया गया. जिसमें प्रवासी ग्रामीण भी बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं. भारतीय जनता पार्टी के जिला उपाध्यक्ष व ग्रामीण अनिल चौहान ने बताया भगवान हुणेश्वर और नागराज की धरती पर हर तीसरे वर्ष पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है. उन्होंने बताया इस कार्यक्रम का आयोजन सिर्फ मनोरंजन के लिए ही नहीं बल्कि क्षेत्र की खुशहाली और अन्न धन्न की वृद्धि के लिए मनाया जाता है. इस नौ दिवसीय आयोजन के बाद ही क्षेत्र में धान की कटाई मंडाई का कार्यक्रम किया जाता है.

पढे़ं- केदारघाटी में गंगा स्नान के साथ पांडव नृत्य का आगाज, परंपरा निर्वहन न करने पर होती है अनहोनी

पांडव नृत्य कार्यक्रम समिति के अध्यक्ष दिनेश नेगी व डॉ देव सिंह कंडारी ने बताया वर्षों से चली आ रही इस धार्मिक परंपरा को आगे बढ़ाते हुए बासर पट्टी के कंडारस्यूं, पोनी और खिरबेल तोनी गांव के ग्रामीण आगे बढ़ा रहे हैं. जिसमें गांव के जवान से लेकर बुजुर्ग तक हर व्यक्ति इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं.

पढे़ं- उत्तरकाशी के पटुडी धनारी में पांडव लीला का समापन, अंतिम दिन किया पांडव नृत्य


बता दें टिहरी के सीमांत घनसाली विधानसभा स्थित बासर पट्टी के कंडारस्यूं गांव में कई वर्षों से पांडव नृत्य का आयोजन किया जा रहा है. जिसमें मुख्य किरदार पांच पांडव होते हैं. बाकी उनके सैनिक होते हैं. हाथी का रूप ऐरावत का होता है. पाण्डव नृत्य कराने के पीछे गांव वालों द्वारा विभिन्न तर्क दिए जाते हैं, जिनमें मुख्य रूप से गांव में खुशहाली, अच्छी फसल को माना जाता है. साथ ही पशुओं में होने वाले रोग पांडव नृत्य के बाद ठीक हो जाते हैं.

टिहरी जिले के कंडारस्यूं गांव पांडव नृत्य की धूम

टिहरी: हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड को देवभूमि भी कहा जाता है. उत्तराखंड अपनी अलौकिक खूबसरती, प्राचीन मंदिर और संस्कृति के लिए विश्वविख्यात है. यहां की लोक कलाएं और लोक संगीत बरसों से भारत की प्राचीन कथाओं का बखान करती आ रही हैं. पांडव नृत्य उत्तराखंड की ऐसी ही एक परंपरा है. उत्तराखंड में पांडव नृत्य पूरे एक माह के लिए आयोजित होता है. गढ़वाल क्षेत्र में अलग अलग समय पर पांडव नृत्य का आयोजन होता रहता है. गांव वाले खाली समय में पांडव नृत्य के आयोजन के लिए बढ़ चढ़कर भागीदारी करते हैं.


उत्तराखंड के टिहरी स्थित कंडारस्यूं गांव में हर तीसरे वर्ष पांडव नृत्य का आयोजन बड़े धूमधाम से किया गया. जिसमें प्रवासी ग्रामीण भी बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं. भारतीय जनता पार्टी के जिला उपाध्यक्ष व ग्रामीण अनिल चौहान ने बताया भगवान हुणेश्वर और नागराज की धरती पर हर तीसरे वर्ष पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है. उन्होंने बताया इस कार्यक्रम का आयोजन सिर्फ मनोरंजन के लिए ही नहीं बल्कि क्षेत्र की खुशहाली और अन्न धन्न की वृद्धि के लिए मनाया जाता है. इस नौ दिवसीय आयोजन के बाद ही क्षेत्र में धान की कटाई मंडाई का कार्यक्रम किया जाता है.

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पांडव नृत्य कार्यक्रम समिति के अध्यक्ष दिनेश नेगी व डॉ देव सिंह कंडारी ने बताया वर्षों से चली आ रही इस धार्मिक परंपरा को आगे बढ़ाते हुए बासर पट्टी के कंडारस्यूं, पोनी और खिरबेल तोनी गांव के ग्रामीण आगे बढ़ा रहे हैं. जिसमें गांव के जवान से लेकर बुजुर्ग तक हर व्यक्ति इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं.

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बता दें टिहरी के सीमांत घनसाली विधानसभा स्थित बासर पट्टी के कंडारस्यूं गांव में कई वर्षों से पांडव नृत्य का आयोजन किया जा रहा है. जिसमें मुख्य किरदार पांच पांडव होते हैं. बाकी उनके सैनिक होते हैं. हाथी का रूप ऐरावत का होता है. पाण्डव नृत्य कराने के पीछे गांव वालों द्वारा विभिन्न तर्क दिए जाते हैं, जिनमें मुख्य रूप से गांव में खुशहाली, अच्छी फसल को माना जाता है. साथ ही पशुओं में होने वाले रोग पांडव नृत्य के बाद ठीक हो जाते हैं.

Last Updated : Oct 2, 2023, 10:29 PM IST
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