टिहरी: जाने-माने पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा के निधन के बाद टिहरी के लोगों में मायूसी छा गई है. टिहरी के लोगों का कहना है कि सुंदरलाल बहुगुणा के चले जाने से अपूरणीय क्षति हुई है. टिहरी के लोगों ने सुंदरलाल बहुगुणा को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि वे जिले की एक विशाल धरोहर थे, जो अब हमारे बीच नहीं रहे. उन्होंने टिहरी के लोगों को संघर्ष में जीत हासिल करने का मंत्र सिखाया. सुंदरलाल बहुगुणा ने एम्स ऋषिकेश में आखिरी सांस ली.
बहुगुणा को साल 2009 में पद्मविभूषण से नवाजा गया
14 अप्रैल, 2009 में पद्मविभूषण से नवाजे गये सुन्दर लाल बहुगुणा की जन्म स्थली सिरांई मरोड़ा गांव टिहरी बांध बनने से जलमग्न हो गया था. झील का जल स्तर घटने से मकान दिखने लगने लगाता है. बहुगुणा ने अपने पैतृक गांव के स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा ली थी. स्कूल के आंगन दो पेड़ मौजूद थे, जो जल स्तर घटने से दिखने लग गये हैं.
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पुलिस हिरासत में दी 12वीं की परीक्षा
सुंदरलाल बहुगुणा की प्रारंभिक शिक्षा पैतृक गांव में ही हुई है. उसके बाद 6 से 10 तक की शिक्षा उत्तरकाशी में ग्रहण की. फिर 11वीं और 12वीं की पढ़ाई प्रताप इण्टर कॉलेज टिहरी में ली. राजशाही के खिलाफ सुमन का साथ देने के कारण उन्हें 12वीं की परीक्षा पुलिस हिरासत में देनी पड़ी. 12वीं की परीक्षा प्रधानाचार्य की कहने पर दिलवाई गई.
लाहौर में सनातन धर्म कॉलेज से किया बीए
12वीं के बाद वे लाहौर चले गए और वहीं सनातन धर्म कॉलेज से उन्होंने बीए किया. लाहौर से लौटकर काशी विद्यापीठ में एमए पढ़ने लगे. लेकिन पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए. पत्नी विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में 'पर्वतीय नवजीवन मंडल' की स्थापना की. आजादी के उपरांत 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के संपर्क में आने के बाद वे दलित विद्यार्थियों के उत्थान के लिए कार्य करने लगे.
'चिपको आंदोलन' को विश्व स्तर तक पहुंचाया
उत्तराखंड के वनों को बचाने के लिए सबसे पहले उत्तराखंड से 'चिपको आंदोलन' शुरू करते हुए राष्ट्रीय एवं विश्व स्तर तक पहंचाया. बहुगुणा का मानना था कि धीरे-धीरे जंगल कम हो रहे हैं. पहाड़ों में जंगलों का कट जाना एक दुर्भाग्यपूर्ण है. बहुगुणा कहते थे कि पहाड़ों में वृक्षारोपण का काम स्थानीय लोगों को रोजगार के तौर किया जाए, जिससे पहाड़ में बेरोजगार युवकों को रोजगार मिलेगा और इससे हिमालय सुरक्षित रहेगा.
पहाड़ों में रेगिस्तान देखकर लगा धक्का
बहुगुणा कहत थे कि तराई क्षेत्रों से जो वन काटे गये हैं, उसकी वजह से गर्मी में गलेश्यिर पिघल रहे हैं. जब उन्होंने साल 1978 में गोमुख के पास रेगिस्तान देखा, तो उन्हें धक्का लगा. उन्होंने देखा कि गलेश्यिर से लगकर पहाड़ रेगिस्तान में परिवर्तित हो रहे हैं. तब उन्होंने संकल्प लिया वो चावाल नहीं खाएंगे. उनका कहना था कि तराई क्षेत्रों व पहाड़ों में पेड़ लगाकर पानी की समस्या से निजात पाई जा सकती है.
पिघलते ग्लेशियर खतरनाक
टिहली बांध को लेकर सुंदरलाल बहुगुणा कहते थे कि उन्हें दुःख है कि इस झील से अन्य शहरों को पानी और बिजली तो दी जाती है लेकिन आज पहाड़ों में पानी का बड़ा संकट है. अगर पहाड़ से धीरे-धीरे वन कम होते रहे तो आने वाले समय पहाड़ में बर्फबारी नहीं होगी. ग्लेशियर धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगे, जो पूरे विश्व की सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक रूप लेगा.
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कई देशों में चला 'चिपको आंदोलन'
उन्होंने कई देशों में चिपको आंदोलन चलाया, जिसे इसे वह घटना मानते थे. विदेशों में प्राकृति को व्यापारिक वस्तु माना जाता था, चिपको आंदोलन से उन्होंने जो नारा दिया, उससे वह बहुत प्रभावित हुए.
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सुंदर लाल बहुगुणा का लेख-
" मुझे याद पड़ता है कि वृक्ष मानव रिचर्ड सेंट बार्ब बेकर को चिपको आंदोलन के बारे में 1977 में पत्र भेजा था. बेकर उसी साल विश्व सम्मेलन में भाग लेने दिल्ली आये थे और उनसे मुझे बेकर के बारे में अधिक जानकारी मिली. मेरी गोल्डस्मिथ से पहली मुलाकात जून 1982 में लंदन में हुई, जब संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम में स्टॉकहोम सम्मेलन के 10 वर्ष पूरे होने के उपलब्ध में पर्यावरण पर लोक सुनवाई का आयोज किया गया. मेरी पहचान सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यावरण संदेश के पहुंचाने वाले के रूप में की गई थी. तब तक हम कश्मीर-कोहिमा चिपको पैदल यात्रा के तीन चरणों में पश्चिमी और नेपाल सहित मध्य हिमालय की पैदल यात्रा कर चुके थे.
लंदन में मेरी उपस्थिति का लाभ उठाकर बीबीसी ने 'चिपको आंदोलन' पर एक फिल्म बना दी, जिसका नाम 'एक्सिंग द हिमालय' था, जिसका प्रदर्शन का कार्यक्रम रखा गया. इसमें इग्लैण्ड के कई प्रमुख प्रख्यात लोगों को बुलाया गया, जिसमें गोल्ड स्मिथ भी थे. जब सम्मलेन शुरू हुआ तो अन्य वक्ताओं की तरह मुझे भी तीन मिनट बोलने का समय मिला. मैंने तीन मिनट में अपनी बात समाप्त की. जिसके बाद अध्यक्ष ने कहा कि तुमने अपनी बात प्रभावकारी ढंग से रख दी है. इस पर मैने कहा कि मेरे लिए यह सम्मलेन तीर्थ स्थान की तरह है. हमारी संस्कृति हमें सिखाती है कि तीर्थस्थान खाली हाथ नहीं जाना.
मैं आपको कुछ भेंट करने के लिए लाया हूं. मैं मंच तक पहुंचा. अपने कंधे के झोले से चिपको यात्रा का नक्श निकाला और साथ ही गंगोत्री की पवित्र जल की बोतल दी और कहा कि यह पवित्र गंगा का उद्गम जल है. गंगा सब नदियों की प्रतिनिधि है. नदियां भोगवादी सभ्यता के कारण उनको मुक्त करना है. तब ही पर्यावरण सुरक्षित रहेगा. इस दृश्य ने गोल्डस्मिथ को इतना प्रभावित किया कि दोपहर के भोजन के लिए सभाकक्ष से बाहर निकलते ही वह मुझसे लिपट गए. हास्य बिखरते हुए कहा कि बहुगुणा जी सम्मलेन में छा गए. यहां आए हुए सब विद्धान राजनैता बौने पड़ गए. "