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जौनपुर में जागड़ा पर्व की धूम, लोगों ने की सुख-समृद्धि की कामना

इन दिनों धनोल्टी में अपने लोक संस्कृति के लिए प्रसिद्ध जौनपुर ब्लॉक के ग्राम ख्यार्शी ललोटना में जागड़ा पर्व की धूम है. जिसके लिए दूर-दूर से पहुंचे लोग आपस मे मेल मिलाप करते हुए सुख-समृद्धि की कामना करते है.

इन दिनों धनोल्टी में जागड़ा पर्व धूम-धाम से मनाया जा रहा है
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Published : Sep 5, 2019, 10:07 AM IST

Updated : Sep 5, 2019, 10:42 AM IST

धनोल्टी: अपने लोक संस्कृति के लिए प्रसिद्ध जौनपुर ब्लॉक के ग्राम ख्यार्शी ललोटना में इन दिनों जागड़ा पर्व की धूम है. मान्यता है कि धार्मिक पर्व जागड़ा राजा रघुनाथ देवता की पूजा-अर्चना के रूप में मनाया जाता है. इस पर्व को कालरात्रि के रूप में भी मनाया जाता है. वहीं दूसरे दिन भव्य रुप से सभी देवी देवता अवतार लेते हैं. दूर-दूर से जागड़ा के लिए पहुंचे लोग आपस में मेल मिलाप करते हुए सुख-समृद्धि की कामना करते हैं.

इन दिनों धनोल्टी में जागड़ा पर्व धूम-धाम से मनाया जा रहा है

बता दें कि गांव ख्यार्शी के ललोटना में देर रात देवी-देवता अवतरित होते हैं और अपनी पीठ पर लोहे की सांट से खुद को मारते हैं. बताया जाता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीराम ने अपने भक्तों की रक्षा के लिए जगह-जगह अपने धाम चुनें. जिसमें कहा जाता है कि पहला मंदिर राजा रघुनाथ जी का कश्मीर में है और दूसरा हनोल के जौनसार में पड़ता है जो कि महासू देवता के नाम से जाना जाता है.

वर्षों पुरानी मान्यता है कि उस गांव की ध्याण( ब्याही बेटी बहन ) जो अपने ससुराल में रहती हैं. अगर उसके ससुराल में किसी भी प्रकार की परेशानी या उसके बच्चों कोई दुख या बीमारी हो तो वो ध्याण अपने देवता का सुमिरन करके भगवान रघुनाथजी से अपनी और अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं. जिसके बाद रघुनाथ उनकी रक्षा के लिए उनके ससुराल तक जाते हैं और उन धियाणियों की मन्नतें पूरी करते हैं.

वहीं, देवभूमि के गढ़वाल की भाषा में ये देवता महासु के नाम से भी जाने जातें हैं. मान्यता है कि जगाड़े के दिन भगवान राजा रामनाथ की डोली को स्नान कराया जाता है. जिसके बाद पूरे गांव में सभी देवता भ्रमण के लिए निकलते हैं और समापन में फल, श्रीफल और छत्र चढ़ाया जाता है. वहीं बारी-बारी से गांवों में जगाड़े का आयोजन होता है.

धनोल्टी: अपने लोक संस्कृति के लिए प्रसिद्ध जौनपुर ब्लॉक के ग्राम ख्यार्शी ललोटना में इन दिनों जागड़ा पर्व की धूम है. मान्यता है कि धार्मिक पर्व जागड़ा राजा रघुनाथ देवता की पूजा-अर्चना के रूप में मनाया जाता है. इस पर्व को कालरात्रि के रूप में भी मनाया जाता है. वहीं दूसरे दिन भव्य रुप से सभी देवी देवता अवतार लेते हैं. दूर-दूर से जागड़ा के लिए पहुंचे लोग आपस में मेल मिलाप करते हुए सुख-समृद्धि की कामना करते हैं.

इन दिनों धनोल्टी में जागड़ा पर्व धूम-धाम से मनाया जा रहा है

बता दें कि गांव ख्यार्शी के ललोटना में देर रात देवी-देवता अवतरित होते हैं और अपनी पीठ पर लोहे की सांट से खुद को मारते हैं. बताया जाता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीराम ने अपने भक्तों की रक्षा के लिए जगह-जगह अपने धाम चुनें. जिसमें कहा जाता है कि पहला मंदिर राजा रघुनाथ जी का कश्मीर में है और दूसरा हनोल के जौनसार में पड़ता है जो कि महासू देवता के नाम से जाना जाता है.

वर्षों पुरानी मान्यता है कि उस गांव की ध्याण( ब्याही बेटी बहन ) जो अपने ससुराल में रहती हैं. अगर उसके ससुराल में किसी भी प्रकार की परेशानी या उसके बच्चों कोई दुख या बीमारी हो तो वो ध्याण अपने देवता का सुमिरन करके भगवान रघुनाथजी से अपनी और अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं. जिसके बाद रघुनाथ उनकी रक्षा के लिए उनके ससुराल तक जाते हैं और उन धियाणियों की मन्नतें पूरी करते हैं.

वहीं, देवभूमि के गढ़वाल की भाषा में ये देवता महासु के नाम से भी जाने जातें हैं. मान्यता है कि जगाड़े के दिन भगवान राजा रामनाथ की डोली को स्नान कराया जाता है. जिसके बाद पूरे गांव में सभी देवता भ्रमण के लिए निकलते हैं और समापन में फल, श्रीफल और छत्र चढ़ाया जाता है. वहीं बारी-बारी से गांवों में जगाड़े का आयोजन होता है.

Intro:जौनपुर में जागड़ा पर्व की धूमBody:टिहरी (धनोल्टी)
स्लग- जौनपुर में जागड़ा पर्व की धूम दूर दराज से पहुँच रहे है लोग

एंकर- अपने लोक संस्कृति के लिए प्रसिद्ध जौनपुर ब्लाक के ग्राम ख्यार्शी ललोटना टिकरी लगडासु बिरोड अग्यारना में इन दिनों जागड़ा पर्व की धूम मची हुई है मान्यता है कि धार्मिक पर्व जागड़ा राजा रघुनाथ देवता की पूजा अर्चना के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व की संध्या कालरात्रि के रूप में मनाई जाती हैं इसके बाद दूसरे दिन भव्य रुप से सभी देवी देवता मण्डाण में पशुवा पर अवतरित होते हैं और दूर दराज से जागड़ा के लिए पहुँचे नाते रिस्तेदारी के लोग आपस मे मेल मिलाप करते हुए राँसू नृत्य के साथ देव वन्दना गा कर देवता की स्तुति करते है और क्षेत्र की सूख समृद्धि की कामना करते है । गाँव मे देर रात तक देवी देवता अवतरित होकर नंगी पीठ पर लोहे की सांट (लोहे की बनी चेन नुमा) से मारते है बताया जाता है कि द्वापर युग में भगवान श्री राम ने अपने भक्तों के रक्षा के लिए जगह जगह अपने धाम चुने जिसमें कहा जाता है कि पहला मंदिर राजा रघुनाथ जी का कश्मीर में हैं उसके बाद हनोल में है जो कि जौनसार मैं पड़ता है जो कि महासू देवता के नाम से जाना जाता है । भगवान रघुनाथ जी इस क्षेत्र में आराध्य देव के नाम से माने जाते है बर्षो पुरानी मान्यता है कि उस गांव की ध्याण( व्याही बेटी बहन )जो दूसरे जगह अपने ससुराल में रहती हैं और अगर उसके ससुराल में किसी भी प्रकार की परेशानी उसके परिवार में बच्चों को दुख बीमारी होती हैं तो वह ध्याण अपने देवता का सुमिरन करके आह्वान करती हैं और मन्नतें माँगती है। भगवान रघुनाथ से अपनी और अपने परिवार की सुख समृद्धि हेतु आराधना करती है जिसके बाद रघुनाथ उनकी रक्षा के लिए उनके ससुराल तक जाते हैं। और बदले में उन धियाणियों (व्याही बहन बेटियों )की मन्नत पूरी होने के बाद सभी बहन बेटी इस जांगड़े में अपने मायके वाले मंदिर पर शरीक होकर भगवान राजा रघुनाथ के लिए चढ़ावा छत्र श्रीफल या वस्त्र आदि लेकर पहुंचती है और पूजा अर्चना कर आशीर्वाद लेती है। कह जाता है कि जब राक्षसों का बहुत प्रकोप बढ़ गया था जिस रूप में भगवान राम ने राक्षसों का संहार किया था उसे महाशिव देवता के अर्थात महासू के नाम से भी जाना जाता है। और हमारे उत्तराखंड गढ़वाल की भाषा में इन देवता का नाम महासु देवता भी कहा जाता है। जगाड़े के दिन भगवान राजा राम नाथ की डोली को स्नान कराया जाता है। उसके पश्चात पूरे ग्राम सभा में सभी देवताओं का भ्रमण होता है और समापन में फल फूल श्रीफल ,छत्र, प्रसाद चढाया जाता है और बारी बारी से गाँवों मे जगाड़े का आयोजन होता है और इन दिनो नई फसल की उपज से माहौल और भी सुन्दर बन जाता है

बाईट- सूरज बिष्ट

Conclusion:जागड़ा जौनपुर के कुछ गाँवो मे मनाया जाता है
बारी बारी से गाँवो मे मनाया जाता है
जागड़ा के लिए दूर दराज से पहुँचते है नाते रिश्तेदार
Last Updated : Sep 5, 2019, 10:42 AM IST
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