टिहरी: दो दशक बाद भी उत्तराखंड में विकास कुछ शहरों तक ही सिमटा नजर आता है. आज भी पहाड़ी जनपदों और दूरस्थ क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं के लिए लोगों को सालों इंतजार करना पड़ रहा है. आलम ये है कई गांव आज भी सड़क से महरूम हैं. ऐसे में कोई बीमार पड़ जाए तो लोग उसे डंडी पल्ली के सहारे खड़ी चढ़ाई के रास्ते कई किलोमीटर चलकर सड़क तक और अस्पताल ले जाना पड़ता है.
दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्र में एंबुलेंस की सुविधा की चाह रखना तो मानो जैसे खुली आंखों से सपना देखने के बराबर है. क्योंकि प्रदेश के कई गांवों में सड़क तक नहीं है. ऐसे में एंबुलेंस का वहां पहुंचना नामुमकिन है. कुछ ऐसी ही कहानी टिहरी जिले के प्रताप नगर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत गोदड़ी गांव के क्यार्शी की है.
गोदड़ी गांव के क्यार्शी में विनोद अपने खेत में पानी डाल रहे थे. तभी उनका पैर फिसला और फैक्चर हो गया. जैसे-तैसे विनोद ने ग्रामीणों को अपने पैर टूटने की सूचना फोन से दी. उसके बाद ग्रामीणों ने विनोद को एक डंडे पर चादर बांधकर (डंडी पल्ली) 4 किलोमीटर पैदल खड़ी चढ़ाई के रास्ते गोदड़ी सड़क मार्ग तक पहुंचाया. यहां से विनोद को मैक्स गाड़ी से जिला अस्पताल बौराड़ी लाया गया. डॉक्टरों ने विनोद के पांव की नाजुक स्थिति को देखते हुए उसे हायर सेंटर जौलीग्रांट अस्पताल रेफर कर दिया.
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वहीं, ग्रामीण सुरबीर ने शासन प्रशासन पर आरोप लगाया कि 2006 में लोक निर्माण विभाग बौराड़ी ने 1 करोड़ 45 लाख रुपए की लागत से रोड काटने का काम शुरू किया गया था, लेकिन काम अधूरा ही छोड़ दिया गया. इस कारण आज तक यहां सड़क नहीं बन पाई है. वहीं, सड़क नहीं होने से ग्रामीणों को आने-जाने की समस्याओं से जूझना पड़ता है.
अगर गांव में कोई भी हादसा होता है तो ग्रामीणों को मरीज को डंडी पल्ली से बांधकर 4 किलोमीटर पैदल चलकर सड़क तक ले जाना पड़ता है. शासन-प्रशासन का इस ओर कोई ध्यान नहीं है. ऐसे में ये ग्रामीण परेशानी झेलने को मजबूर हैं.