टिहरी: जंगलों को आग से बचाने के लिए उत्तराखंड वन विभाग मुस्तैद हो गया है. विभाग ने सभी वन प्रभाग के अधिकारियों को अलर्ट रहने को कहा है. साथ ही वन विभाग ने सभी वन कर्मियों की छुट्टियां रद्द कर दी हैं. बता दें, टिहरी में 2 लाख 31 हजार 517 हेक्टेयर रिजर्व फॉरेस्ट है, जबकि 1 लाख 5 हजार 127 हेक्टेयर सिविल फॉरेस्ट है. गर्मियों के सीजन में अक्सर जंगल में आग लग जाती है.
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आखिर क्यों लगती है आग
- गर्मी के सीजन में जंगल में आग लगने का मुख्य कारण पिरोल हैं.
- चीड़ की पत्तियां ज्वलनशील पदार्थ का काम करती है.
- चीड़ की पत्तियों में लिग्निन नाम का रसायन होता है, जिसकी वजह से वे ज्वलनशील होती हैं और जल्दी आग पकड़ लेती हैं.
- जंगलों में चीड़ के पेड़ की पत्तियां गिरने से नई घास तब तक नहीं उगती, जब तक इन पत्तियों को हटा न दिया जाए.
इन आवश्यक बिंदुओं पर भी एक नजर
- आग के कारण जंगलों में सबसे ज्यादा नुकसान पक्षियों और जंगली जानवरों का होता है जो आग के कारण मारे जाते हैं.
- टिहरी जिले में हिमालयी वनस्पतियों की विशाल श्रृंखला पाई जाती है. जो उष्ण कटिबंध प्रजाति से भिन्न हैं.
- वनस्पति को 6 प्रकार से विभाजित किया गया है. जिसमें ऊष्ण कटिबंधीय यानी सूखा वन, साल वन, चीड़ वन, देवदार वन और ओंक वन हैं.
- टिहरी जनपद के जंगल उत्तरकाशी, पौड़ी गढ़वाल, रुद्रप्रयाग और देहरादून के बीच चारों ओर से घिरा हुआ है.
टिहरी वन प्रभाग अधिकारी कोको रोसे ने बताया कि जिले में सभी वन कर्मियों को अलर्ट रहने के निर्देश दिए गये हैं. साथ ही वन कर्मियों की छुट्टियां भी रद्द कर दी गईं हैं. जंगलों को आग से बचाने के लिए 42 फायर स्टेशन बनाये हैं. बता दें, 15 फरवरी से 15 जून तक फायर सीजन चलता है.