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देवभूमि की ये दो नदियां कहलाती हैं सास-बहू, हर कोई जानता चाहता है इनकी कहानी - Tehri News

भागीरथी नदी की कोलाहल तेज आवाज के साथ आकर अलकनंदा के शांत स्वरूप में विलय हो जाता है और साथ ही कहा गया है कि बहू चाहे तो सास को अपने शांत स्वरूप से अपने मन में जगह बना सकती है जैसा कि देवप्रयाग में भागीरथी अलकनंदा में मिलकर शांत हो जाती है.

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देवभूमि की ये दो नदियां कहलाती हैं सास-बहू.
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Published : Oct 3, 2020, 10:51 AM IST

टिहरी: देवभूमि उत्तराखंड में नदियों की बात करें तो यहां नदियों को रिश्तों की डोर से बांधकर देखा जाता है. जिनकी लोककथा काफी रोचक हैं जिसे सुनकर हर कोई इनका दीदार करने के लिए लालायित रहता है. जहां मां गंगा के साथ ही अन्य सहायक नदियों का अपना विशेष महत्व है. इन्हीं में से एक अलकनंदा और भागीरथी नदी भी हैं, जिनकी रोचक कथा लोगों के मन में रची-बसी है.

देवभूमि की ये दो नदियां कहलाती हैं सास-बहू.

गढ़वाल क्षेत्र में बहने वाली भागीरथी और अलकनंदा नदी को सांस-बहू भी कहा जाता है.भागीरथी के कोलाहल भरे आगमन और अलकनंदा के शांत रूप को देखकर ही इन्हें सास-बहू की संज्ञा दी जाती है. वहीं भागीरथी और अलकनंदा नदी देवप्रयाग में मिलकर गंगा बन जाती है. भागीरथी नदी के रौद्र रूप को देखकर उसे सास और अलकनंदा के शांत स्वरूप के कारण उसे बहू कहा जाता है इससे यह सीख देने की कोशिश की गई है कि यदि बहू सर्वगुण संपन्न है तो बहू सास से मां जैसा वात्सल्य व्यवहार पा सकती है.

वहीं भागीरथी नदी की कोलाहल तेज आवाज के साथ आकर अलकनंदा के शांत स्वरूप में विलय हो जाता है और साथ ही कहा गया है कि बहू चाहे तो सास को अपने शांत स्वरूप से अपने मन में जगह बना सकती है जैसा कि देवप्रयाग में भागीरथी अलकनंदा में मिलकर शांत हो जाती है. मान्यता है कि जहां दो नदियों का संगम होता हैं वह स्थान हमेशा आध्यात्मिक उर्जा से भरपूर होता है. इसलिए इस स्थान का महत्व भी बढ़ जात है.

पढ़ें- जल्द होगा सौंग और जमरानी परियोजना का शिलान्यास, केंद्र से मिलेगा बजट

भागीरथी नदी का उद्गम उत्तरकाशी जिले के गोमुख से होता है और भागीरथी अपने उद्गम स्थल से 205 किलोमीटर का रास्ता तय करते हुए देवप्रयाग तक पहुंचती है और उद्गम स्थल से लेकर देवप्रयाग तक बीच में कई सहायक नदियां जिनमें रूद्र गंगा, केदार गंगा, जाड़ गंगा, सिया गंगा, असी गंगा और भिलंगना नदी मिलती हैं. वहीं टिहरी में भागीरथी और भिलंगना का जो संगम है वहां पर टिहरी बांध बनाया गया है और इसी बांध से भागीरथी नदी निकल कर देवप्रयाग तक पहुंचती है.

पढ़ें- डोबरा चांठी पुल पर जल्द शुरू होगी आवाजाही, फाइनल लोड टेस्टिंग का इंतजार

वहीं इतिहासकार बेनी राम अंथवाल का कहना है कि नदियों को अलग-अलग मान्यताओं से देखा गया है. अगर धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देखा जाए तो भागीरथी आवाज करते हुए देवप्रयाग तक आती है और अलकनंदा शांत होकर देवप्रयाग तक पहुंचती है. जिसका मुख्य कारण है कि उत्तरकाशी जिले के गोमुख से देवप्रयाग तक घाटी होने के कारण पानी का बहाव तेज होता है जिस कारण तेज आवाज के साथ नदी बहती है. अलकनंदा नदी चमोली से चौड़े क्षेत्र में बहती हुई आती है, जिससे पानी का बहाव समतल होकर बहता है जिसमें आवाज नहीं आती है. इसलिए अलकनंदा को बहू और भागीरथी को सास का नाम दिया गया है

टिहरी: देवभूमि उत्तराखंड में नदियों की बात करें तो यहां नदियों को रिश्तों की डोर से बांधकर देखा जाता है. जिनकी लोककथा काफी रोचक हैं जिसे सुनकर हर कोई इनका दीदार करने के लिए लालायित रहता है. जहां मां गंगा के साथ ही अन्य सहायक नदियों का अपना विशेष महत्व है. इन्हीं में से एक अलकनंदा और भागीरथी नदी भी हैं, जिनकी रोचक कथा लोगों के मन में रची-बसी है.

देवभूमि की ये दो नदियां कहलाती हैं सास-बहू.

गढ़वाल क्षेत्र में बहने वाली भागीरथी और अलकनंदा नदी को सांस-बहू भी कहा जाता है.भागीरथी के कोलाहल भरे आगमन और अलकनंदा के शांत रूप को देखकर ही इन्हें सास-बहू की संज्ञा दी जाती है. वहीं भागीरथी और अलकनंदा नदी देवप्रयाग में मिलकर गंगा बन जाती है. भागीरथी नदी के रौद्र रूप को देखकर उसे सास और अलकनंदा के शांत स्वरूप के कारण उसे बहू कहा जाता है इससे यह सीख देने की कोशिश की गई है कि यदि बहू सर्वगुण संपन्न है तो बहू सास से मां जैसा वात्सल्य व्यवहार पा सकती है.

वहीं भागीरथी नदी की कोलाहल तेज आवाज के साथ आकर अलकनंदा के शांत स्वरूप में विलय हो जाता है और साथ ही कहा गया है कि बहू चाहे तो सास को अपने शांत स्वरूप से अपने मन में जगह बना सकती है जैसा कि देवप्रयाग में भागीरथी अलकनंदा में मिलकर शांत हो जाती है. मान्यता है कि जहां दो नदियों का संगम होता हैं वह स्थान हमेशा आध्यात्मिक उर्जा से भरपूर होता है. इसलिए इस स्थान का महत्व भी बढ़ जात है.

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भागीरथी नदी का उद्गम उत्तरकाशी जिले के गोमुख से होता है और भागीरथी अपने उद्गम स्थल से 205 किलोमीटर का रास्ता तय करते हुए देवप्रयाग तक पहुंचती है और उद्गम स्थल से लेकर देवप्रयाग तक बीच में कई सहायक नदियां जिनमें रूद्र गंगा, केदार गंगा, जाड़ गंगा, सिया गंगा, असी गंगा और भिलंगना नदी मिलती हैं. वहीं टिहरी में भागीरथी और भिलंगना का जो संगम है वहां पर टिहरी बांध बनाया गया है और इसी बांध से भागीरथी नदी निकल कर देवप्रयाग तक पहुंचती है.

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वहीं इतिहासकार बेनी राम अंथवाल का कहना है कि नदियों को अलग-अलग मान्यताओं से देखा गया है. अगर धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देखा जाए तो भागीरथी आवाज करते हुए देवप्रयाग तक आती है और अलकनंदा शांत होकर देवप्रयाग तक पहुंचती है. जिसका मुख्य कारण है कि उत्तरकाशी जिले के गोमुख से देवप्रयाग तक घाटी होने के कारण पानी का बहाव तेज होता है जिस कारण तेज आवाज के साथ नदी बहती है. अलकनंदा नदी चमोली से चौड़े क्षेत्र में बहती हुई आती है, जिससे पानी का बहाव समतल होकर बहता है जिसमें आवाज नहीं आती है. इसलिए अलकनंदा को बहू और भागीरथी को सास का नाम दिया गया है

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