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बूढ़ाकेदार मंदिर की शिला पर बनी आकृतियां हैं एक पहेली, आज तक नहीं सुलझ पाई गुत्थी - टिहरी न्यूज

ये मन्दिर धर्मगंगा नदी और बाल गंगा के संगम के पास 5 पहाड़ियों  से घिरा हुआ है. इन पर्वतमालाओं को भृगु, यक्ष, द्रोण, संतोपथ, महापन्त पर्वत के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि पांडव इन्हीं पर्वतों से होकर स्वर्गरोहिणी तक पहुंचे थे.

बूढ़ाकेदार मंदिर.
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Published : Mar 20, 2019, 7:04 AM IST

Updated : Mar 21, 2019, 9:41 AM IST

टिहरी: देवभूमि उत्तराखंड की नैसर्गिक छटा और अध्यात्म हमेशा ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है. देवभूमि में कई मंदिर हैं और हर किसी का अपना अलग महत्व है. जिनका वर्णन पुराणों में विस्तार से मिलता है. उन्हीं में से एक बूढ़ाकेदार मंदिर भी है. जहां शिला पर बनी आकृतियां आज भी रहस्य बनी हुई हैं.

बूढ़ाकेदार मंदिर.


पौराणिक महत्व

बूढ़ाकेदार मंदिर हमेशा से ही लोगों के आस्था का केन्द्र रहा है. बूढ़ाकेदार मंदिर गढ़वाल के टिहरी जनपद में पड़ता है. देवभूमि में पंच केदार मंदिरों का खास महत्व है. बूढ़ाकेदार मंदिर उन्हीं में से एक है. जहां हर साल देश के कई प्रान्तों से श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

गोत्रहत्या से मिली थी मुक्ति

मान्यता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों ने गोत्रहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए हिमालय का रुख किया था. यहीं पर पांडवों को बाबा भोलेनाथ ने बूढ़े ब्राह्मण के रुप में बालगंगा-धर्मगंगा के संगम पर दर्शन दिए थे. जिससे उन्हें गोत्रहत्या के पाप से मुक्ति मिली थी. पांडवों को दर्शन देने के बाद बाबा भोलेनाथ यहीं पर शिला पर अंतर्ध्यान हो गए थे. वहीं शिला पर बनी आकृतियां आज भी रहस्य बनी हुई हैं.

पांच पहाड़ियों से घिरा है मंदिर

ये मन्दिर धर्मगंगा नदी और बाल गंगा के संगम के समीप 5 पहाड़ियों से घिरा हुआ है. इन पर्वतमालाओं को भृगु, यक्ष, द्रोण, संतोपथ, महापन्त पर्वत के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि पांडव इन्हीं पर्वतों से होकर स्वर्गरोहिणी तक पहुंचे थे.


टिहरी: देवभूमि उत्तराखंड की नैसर्गिक छटा और अध्यात्म हमेशा ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है. देवभूमि में कई मंदिर हैं और हर किसी का अपना अलग महत्व है. जिनका वर्णन पुराणों में विस्तार से मिलता है. उन्हीं में से एक बूढ़ाकेदार मंदिर भी है. जहां शिला पर बनी आकृतियां आज भी रहस्य बनी हुई हैं.

बूढ़ाकेदार मंदिर.


पौराणिक महत्व

बूढ़ाकेदार मंदिर हमेशा से ही लोगों के आस्था का केन्द्र रहा है. बूढ़ाकेदार मंदिर गढ़वाल के टिहरी जनपद में पड़ता है. देवभूमि में पंच केदार मंदिरों का खास महत्व है. बूढ़ाकेदार मंदिर उन्हीं में से एक है. जहां हर साल देश के कई प्रान्तों से श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

गोत्रहत्या से मिली थी मुक्ति

मान्यता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों ने गोत्रहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए हिमालय का रुख किया था. यहीं पर पांडवों को बाबा भोलेनाथ ने बूढ़े ब्राह्मण के रुप में बालगंगा-धर्मगंगा के संगम पर दर्शन दिए थे. जिससे उन्हें गोत्रहत्या के पाप से मुक्ति मिली थी. पांडवों को दर्शन देने के बाद बाबा भोलेनाथ यहीं पर शिला पर अंतर्ध्यान हो गए थे. वहीं शिला पर बनी आकृतियां आज भी रहस्य बनी हुई हैं.

पांच पहाड़ियों से घिरा है मंदिर

ये मन्दिर धर्मगंगा नदी और बाल गंगा के संगम के समीप 5 पहाड़ियों से घिरा हुआ है. इन पर्वतमालाओं को भृगु, यक्ष, द्रोण, संतोपथ, महापन्त पर्वत के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि पांडव इन्हीं पर्वतों से होकर स्वर्गरोहिणी तक पहुंचे थे.


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बूढ़ाकेदार मंदिर की शिला पर बनी आकृतियां बनी पहेली, आज तक नहीं सुलझ पाई गुत्थी

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टिहरी: देवभूमि उत्तराखंड की नैसर्गिक छटा और अध्यात्म हमेशा ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है. देवभूमि में कई मंदिर हैं और हर किसी का अपना अलग महत्व है. जिनका वर्णन पुराणों में विस्तार से मिलता है. उन्हीं में से एक बूढ़ाकेदार मंदिर भी है. जहां शिला पर बनी आकृतियां आज भी रहस्य बनी हुई हैं.

पौराणिक महत्व

बूढ़ाकेदार मंदिर हमेशा से ही लोगों के आस्था का केन्द्र रहा है. बूढ़ाकेदार मंदिर गढ़वाल  के टिहरी जनपद में पड़ता है. देवभूमि में पंच केदार मंदिरों का खास महत्व है. बूढ़ाकेदार मंदिर उन्हीं में से एक है. जहां हर साल देश के कई प्रान्तों से श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

गोत्रहत्या से मिली थी मुक्ति

मान्यता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों ने गोत्रहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए हिमालय का रुख किया था. यहीं पर पांडवों को  बाबा भोलेनाथ ने बूढ़े ब्राह्मण के रुप में बालगंगा-धर्मगंगा के संगम पर दर्शन दिए थे. जिससे उन्हें गोत्रहत्या के पाप से मुक्ति मिली थी. पांडवों को दर्शन देने के बाद बाबा भोलेनाथ यहीं पर शिला पर अंतर्ध्यान हो गए थे. वहीं शिला पर बनी आकृतियां आज भी रहस्य बनी हुई हैं.

पांच पहाड़ियों से घिरा है मंदिर

ये मन्दिर धर्मगंगा नदी और बाल गंगा के संगम के समीप 5 पहाड़ियों  से घिरा हुआ है. इन पर्वतमालाओं को भृगु, यक्ष, द्रोण, संतोपथ, महापन्त पर्वत के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि पांडव इन्हीं पर्वतों से होकर स्वर्गरोहिणी तक पहुंचे थे.

 


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Last Updated : Mar 21, 2019, 9:41 AM IST
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