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रावण के घमंड को तोड़ 'बर्तातोड़ू' मनाते हैं पहाड़ी लोग, पौराणिक काल से जुड़ा है इतिहास

बर्तातोडू भी ऐसा पर्व है जो बड़ी दीपावली के एक दिन बाद अन्नकूट के दिन मनाया जाता है. कुछ लोग इसे प्रभु राम के घर आने के रुप में जोड़ कर देखते हैं.

दीपावली के बाद पहाड़ों में मनाया जाता है बर्तातोडू
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Published : Oct 29, 2019, 11:42 PM IST

Updated : Oct 30, 2019, 5:24 PM IST

धनोल्टी: उत्तराखंड में समय-समय पर अलग-अलग त्योहार मनाये जाते हैं जोकि अपनी-अपनी परम्पराओं के द्योतक हैं. इनमें बर्तातोड़ू भी एक ऐसा ही पर्व है. इस पर्व को दीपावली के एक दिन बाद अन्नकूट के दिन मनाया जाता है. लोग इसे पौराणिक काल से जोड़कर देखते हैं हालांकि, वैज्ञानिकों के अपने तर्क हैं.

दीपावली के बाद पहाड़ों में मनाया जाता है बर्तातोड़ू पर्व.

विविधता में एकता की संस्कृति व परम्परा मनाने की अनूठी मिसाल उत्तराखंड में देखने को मिलती है. यूं तो उत्तराखंड में समय-समय पर मनाये जाने वाले त्यौहार अपने-अपने क्षेत्र की परम्परा के अनुसार मनाये जाते हैं, जिसमें रांसू, तादि, मण्डाण, आदि शामिल हैं लेकिन कुछ त्यौहार ऐसे भी हैं जो अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी अपनी परम्परा के अनुसार मनाये जाते हैं. इन्ही में से एक है बर्तातोड़ू जो बड़ी दीपावली के एक दिन बाद अन्नकूट के दिन मनाया जाता है.

पढ़ें- देश ही नहीं सात समुंदर पार भी मिठास घोल रही अल्मोड़ा की बाल मिठाई

कैसे पड़ा नाम

स्थानीय लोग इस पर्व को रावण के अहंकार रूपी बल (जिसका प्रतीक एक रस्सी को माना जाता है) को तोड़कर जश्न मानने से जोड़ते हैं. लोगों का मानना है कि जब भगवान राम ने रावण को मारकर विजय हासिल की तो उसी के प्रतीक रूप में बलरूपी अहंकारी रस्से को तोड़कर उसके घमंड को खत्म किया जाता है.

उसके बाद रस्से के एक टुकड़े के दोनों सिरों को बांधकर बल्दियाताण करवायी जाती है. बल्दियाताण में दो बराबर के लोगों के कंधों पर रस्सी डालकर हाथ के सहारे जमीन पर लेटकर एक दूसरे को विपरीत दिशा में खींचा जाता है. इन चीजों को देखने व खेलने के लिए दूर-दराज के इलाकों से लोग यहां पहुंचते हैं.

वहीं, कुछ लोग इसे प्रभु राम के दीपावली के दिन घर आने पर दो दिन तक मनाये जाने वाले त्योहार के दिन खाये जाने वाले पकवानों के बाद रस्साकशी कर पाचन करने से जोड़ते हैं.

पूरा गांव आयोजन में होता है शामिल

बर्तातोड़ू के लिए पूरे गांव से रस्सी बनाने के लिए प्रत्येक घर से सेलू, बबलू (रस्सी बनाने के प्रयोग में लाई जाने वाली घास) को एकत्रित किया जाता है. जिसके बाद गांव के बड़े बुजुर्ग एक लम्बी व मोटी रस्सी तैयार करते हैं. शाम के समय गांव के सभी लोग एक स्थान स्थान पर जमा होकर इसकी पूजा-अर्चना करते हैं. जिसके बाद रस्साकशी का खेल जोकि ढोल-नगाड़ों की थाप पर शुरू होता है. जो कि काफी देर तक चलता है.

क्या कहते हैं वैज्ञानिक

हालांकि, इस पर्व के पीछे वैज्ञानिक तर्क है कि दो दिन खाने पीने के बाद पाचन के लिए इस प्रकार के आयोजन किये जाते हैं.

रावण के घमंड को तोड़ 'बर्तातोड़ू' मनाते हैं पहाड़ी लोग, पौराणिक काल से जुड़ा है इतिहास

धनोल्टी: उत्तराखंड में समय-समय पर अलग-अलग त्योहार मनाये जाते हैं जोकि अपनी-अपनी परम्पराओं के द्योतक हैं. इनमें बर्तातोड़ू भी एक ऐसा ही पर्व है. इस पर्व को दीपावली के एक दिन बाद अन्नकूट के दिन मनाया जाता है. लोग इसे पौराणिक काल से जोड़कर देखते हैं हालांकि, वैज्ञानिकों के अपने तर्क हैं.

दीपावली के बाद पहाड़ों में मनाया जाता है बर्तातोड़ू पर्व.

विविधता में एकता की संस्कृति व परम्परा मनाने की अनूठी मिसाल उत्तराखंड में देखने को मिलती है. यूं तो उत्तराखंड में समय-समय पर मनाये जाने वाले त्यौहार अपने-अपने क्षेत्र की परम्परा के अनुसार मनाये जाते हैं, जिसमें रांसू, तादि, मण्डाण, आदि शामिल हैं लेकिन कुछ त्यौहार ऐसे भी हैं जो अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी अपनी परम्परा के अनुसार मनाये जाते हैं. इन्ही में से एक है बर्तातोड़ू जो बड़ी दीपावली के एक दिन बाद अन्नकूट के दिन मनाया जाता है.

पढ़ें- देश ही नहीं सात समुंदर पार भी मिठास घोल रही अल्मोड़ा की बाल मिठाई

कैसे पड़ा नाम

स्थानीय लोग इस पर्व को रावण के अहंकार रूपी बल (जिसका प्रतीक एक रस्सी को माना जाता है) को तोड़कर जश्न मानने से जोड़ते हैं. लोगों का मानना है कि जब भगवान राम ने रावण को मारकर विजय हासिल की तो उसी के प्रतीक रूप में बलरूपी अहंकारी रस्से को तोड़कर उसके घमंड को खत्म किया जाता है.

उसके बाद रस्से के एक टुकड़े के दोनों सिरों को बांधकर बल्दियाताण करवायी जाती है. बल्दियाताण में दो बराबर के लोगों के कंधों पर रस्सी डालकर हाथ के सहारे जमीन पर लेटकर एक दूसरे को विपरीत दिशा में खींचा जाता है. इन चीजों को देखने व खेलने के लिए दूर-दराज के इलाकों से लोग यहां पहुंचते हैं.

वहीं, कुछ लोग इसे प्रभु राम के दीपावली के दिन घर आने पर दो दिन तक मनाये जाने वाले त्योहार के दिन खाये जाने वाले पकवानों के बाद रस्साकशी कर पाचन करने से जोड़ते हैं.

पूरा गांव आयोजन में होता है शामिल

बर्तातोड़ू के लिए पूरे गांव से रस्सी बनाने के लिए प्रत्येक घर से सेलू, बबलू (रस्सी बनाने के प्रयोग में लाई जाने वाली घास) को एकत्रित किया जाता है. जिसके बाद गांव के बड़े बुजुर्ग एक लम्बी व मोटी रस्सी तैयार करते हैं. शाम के समय गांव के सभी लोग एक स्थान स्थान पर जमा होकर इसकी पूजा-अर्चना करते हैं. जिसके बाद रस्साकशी का खेल जोकि ढोल-नगाड़ों की थाप पर शुरू होता है. जो कि काफी देर तक चलता है.

क्या कहते हैं वैज्ञानिक

हालांकि, इस पर्व के पीछे वैज्ञानिक तर्क है कि दो दिन खाने पीने के बाद पाचन के लिए इस प्रकार के आयोजन किये जाते हैं.

Intro:दीपावली के बाद बर्तातोड़ू मनाने की खास परम्पराBody:
धनोल्टी (टिहरी)

स्लग-दीपावली के बाद है बर्तातोड़ू मनाने की है खास परम्परा

एंकर- विविधता मे एकता की संस्कृति व परम्परा मानने वाले हमारे देश के बारे यूँ ही नही कह जाता है कि "पग पग में बदले बानी कोश कोश में पानी " जिसकी अनूठी मिशाल कुछ उत्तराखंड में यूँ देखने को मिलती है

भैलो - दीपावली के दिन भैलो बग्वाल काफी प्रचलित है जहां शहरों में पटाखो व रोशनियों की चकाचौंध लोगो को दीपावली की खुशियों का अहसास देती है वहीं शहरों में पढाई ,रोजगार , के लिए गयें लोगों को पहाड़ के भैलों की याद गाँव खींच लाती है भैलो (लकड़ी के गठ्ठे को एक घास की बेल में बाधा जाता है ) बड़े ही उत्साह से बनाया जाता है
जिसकी पूजा अर्चना कर गाँव के सभी लोग एक स्थान पर एकत्रित होकर उसे जलाकर घुमाते है

यूँ तो उत्तराखंड में समय समय पर मनाये जाने वाले त्यौहार अपने अपने क्षेत्र की परम्परा के अनुसार मनाये जाते है जिसमें अपने अपने क्षेत्र की राँसू , तादि, मण्डाण , आदि सम्मलित है लेकिन कुछ त्यौहार ऐसे भी है जो अलग अलग क्षेत्रो में अपनी अपनी परम्परा के अनुसार मनाये जाते इन्ही मे से एक है बर्तातोड़ू जो कि बड़ी दीपावली के एक दिन बाद अन्नकूट के दिन मनाया जाता है

बर्तातोड़ू
बर्तातोड़ू के पीछे अलग अलग मन्यता है कुछ लोग इसे प्रभु राम के दीपावली के दिन घर आने पर जश्न के रुप मे जोड़ कर देखते है कि रावण के अहंकार रूपी बल ( जिसका प्रतीक एक रस्से को माना जाता है) को तोड़ कर जश्न मानने से जोड़ते है तो वही कुछ लोग इसे प्रभु राम के दीपावली के दीन घर आने पर दो दिन तक मनाये जाने वाले त्यौहार के दिन खाये जाने वाले पक्वानों के बाद रस्साकशी खीच कर पाचन करने से जोड़ते है । बर्तातोड़ू के लिए पूरे गाँव से रस्सी बनाने के लिए प्रत्येक घर से सेलू , बाबलू (रस्सी बनाने के प्रयोग मे लाई जाने वाली घास) को एकत्रित कर गाँव के बड़े बुजुर्गों के द्वारा एक लम्बी व मोटी रस्सी बनाई जाती है इसके बाद साँय काल मे गाँव के सभी लोग एक स्थान स्थान पर एकत्रित होकर इसकी पूजा अर्चना करते है और फिर शुरू होता है रस्साकशी का खेल जो कि ढोल नगाड़े की थाप पर काफी देर तक चलता है इसके बाद जब रस्सा टूट जाता है तो रस्से के एक टुकड़े के मुह के दोनो सिरों से बाँधकर दो लोग कन्धो में डालकर जोर अजमाईस करते है जिसे बल्दिया ताँण ( बैलों की तान) कहते है का आयोजन होता है जिसे गोबर्धन पूजा से जोड़ा जाता है इसे देखने के लिए लोगों की भीड़ काफी उत्सुक रहती है





Conclusion:बर्तातोड़ू दीपावली के अगले दिन अन्नकूट पूजा के दिन मनाया जाता है रावण के अंहकार रुपी बल के प्रतीक बर्तातोड़ू (एक रस्सी )को गाँव के लोग मिलकर तोड़ते है
Last Updated : Oct 30, 2019, 5:24 PM IST
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