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त्रियुगीनारायण की महिलाएं जीविकोपार्जन के लिए सीख रही हैं पारंपरिक मांगल गीत

त्रियुगीनारायण मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह भगवान शिव और माता पार्वती का शुभ विवाह स्थल है. विवाह के दौरान अग्निकुंड में जलाई गई अग्नि तब से लेकर अब तक लगातार प्रज्वलित है. आज त्रियुगीनारायण को वेडिंग डेस्टीनेशन के रूप में भी नई पहचान मिल रही है. जीविकोपार्जिन के लिए स्थानीय महिलाएं पारंपरिक मांगल गीत सीख रही हैं.

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त्रियुगीनारायण
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Published : Sep 10, 2020, 8:28 AM IST

Updated : Sep 10, 2020, 9:22 AM IST

रुद्रप्रयाग: शिव-पार्वती का विवाह स्थल त्रियुगीनारायण किसी पहचान का मोहताज तो नहीं है. मान्यता है कि भगवान शिव ने पार्वती से इसी मंदिर में विवाह कर जीवनसंगिनी बनाया था. यहां तक कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री स्वयं ही कई बार कह चुके हैं कि इस स्थल का नई वेडिंग डेस्टिनेशन के तौर पर देश और दुनिया में प्रचार-प्रसार किया जाएगा.

पारंपरिक मांगल गीत सीख रही हैं महिलाएं.

इस स्थल पर देशभर से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग अपने विवाह के गठबंधन के लिए आते हैं. ऐसा विश्वास है कि भगवान शिव और पार्वती ने भी त्रियुगीनारायण मंदिर में ही विवाह किया था. विवाह के दौरान अग्निकुंड में जलाई गई अग्नि तब से लेकर अब तक लगातार प्रज्वलित है. आज त्रियुगीनारायण को वेडिंग डेस्टीनेशन के रूप में भी नई पहचान मिल रही है. यही कारण है कि अब त्रियुगीनारायण के ग्रामीण भी त्रियुगीनारायण का प्रचार-प्रसार अब वेडिंग डेस्टीनेशन के रूप में कर रहे हैं. यहां होने वाली शादियों के लिये पौराणिक एवं पारंपरिक मांगल गीतों को सीख रहे हैं. इन गीतों को जब यहां की महिला मंगल दल की महिलाएं पारंपरिक अंदाज में गाती हैं तो मानो साक्षात भोलेनाथ ही इस स्थल पर हो रहे विवाह का गवाह बन रहे हैं.

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मांगल गीतों से होगा जीविकोपार्जन.

आज त्रियुगीनारायण मंदिर स्थल ना केवल पूजा पाठ के लिए बल्कि विवाह स्थल के रूप में पूरे देश-विदेश में महशूर है. प्रत्येक वर्ष यहां लाखों यात्री दर्शनों के लिये आते हैं. देश-विदेश से कई लोग शिव-पार्वती विवाह स्थल में अपना विवाह भी संपन्न कराते हैं. शिव और पार्वती ने भगवान विष्णु के मंदिर में विष्णु भगवान को साक्षी मानकर विवाह संपन्न किया था. यही कारण है कि लोग भी अपना विवाह यहां संपन्न कराते हैं. अपना विवाह यहां संपन्न कराने वाले जोड़े हमेशा खुश रहते हैं और उनके सभी दोष भी दूर होते हैं. त्रियुगीनारायण को जब से वेडिंग डेस्टिनेशन का दर्जा मिला है, तब से यहां पौराणिक पहाड़ी रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह संपन्न कराये जा रहे हैं. विवाह में पहाड़ी पकवान, पहाड़ी रस्में आदि का प्रयोग किया जाता है. अब यहां विवाह के दौरान पहाड़ी मांगल गीत भी गाये जाते हैं.

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पारंपरिक मांगल गीतों की क्लास.

पढ़ें: यूं ही नहीं कोई बन जाता 'अपराजित' अपर्णा, जानें हौसलों की उड़ान की कहानी

विवाह के दौरान प्रयोग होने वाले मांगल गीतों को इन दिनों त्रियुगीनारायण गांव की महिलाओं को विशेष तौर पर सिखाया जा रहा है. ग्रामीण महिलाओं को मेहंदी, हल्दी हाथ, साथ फेरे, डोली विदाई आदि के समय गाये जाने वाले मांगल गीत सिखाये जा रहे हैं. इन मांगल गीतों को सीखने के बाद स्थानीय महिलाएं त्रियुगीनारायण मंदिर में होने वाली शादियों में गाएंगी. इससे ना केवल बाहर से आने वाले परिवार को शादी के दौरान होने वाले गीत संगीत उपलब्ध होगा बल्कि उनकी आजीविका का भी हिस्सा बनेगा.

रुद्रप्रयाग: शिव-पार्वती का विवाह स्थल त्रियुगीनारायण किसी पहचान का मोहताज तो नहीं है. मान्यता है कि भगवान शिव ने पार्वती से इसी मंदिर में विवाह कर जीवनसंगिनी बनाया था. यहां तक कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री स्वयं ही कई बार कह चुके हैं कि इस स्थल का नई वेडिंग डेस्टिनेशन के तौर पर देश और दुनिया में प्रचार-प्रसार किया जाएगा.

पारंपरिक मांगल गीत सीख रही हैं महिलाएं.

इस स्थल पर देशभर से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग अपने विवाह के गठबंधन के लिए आते हैं. ऐसा विश्वास है कि भगवान शिव और पार्वती ने भी त्रियुगीनारायण मंदिर में ही विवाह किया था. विवाह के दौरान अग्निकुंड में जलाई गई अग्नि तब से लेकर अब तक लगातार प्रज्वलित है. आज त्रियुगीनारायण को वेडिंग डेस्टीनेशन के रूप में भी नई पहचान मिल रही है. यही कारण है कि अब त्रियुगीनारायण के ग्रामीण भी त्रियुगीनारायण का प्रचार-प्रसार अब वेडिंग डेस्टीनेशन के रूप में कर रहे हैं. यहां होने वाली शादियों के लिये पौराणिक एवं पारंपरिक मांगल गीतों को सीख रहे हैं. इन गीतों को जब यहां की महिला मंगल दल की महिलाएं पारंपरिक अंदाज में गाती हैं तो मानो साक्षात भोलेनाथ ही इस स्थल पर हो रहे विवाह का गवाह बन रहे हैं.

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मांगल गीतों से होगा जीविकोपार्जन.

आज त्रियुगीनारायण मंदिर स्थल ना केवल पूजा पाठ के लिए बल्कि विवाह स्थल के रूप में पूरे देश-विदेश में महशूर है. प्रत्येक वर्ष यहां लाखों यात्री दर्शनों के लिये आते हैं. देश-विदेश से कई लोग शिव-पार्वती विवाह स्थल में अपना विवाह भी संपन्न कराते हैं. शिव और पार्वती ने भगवान विष्णु के मंदिर में विष्णु भगवान को साक्षी मानकर विवाह संपन्न किया था. यही कारण है कि लोग भी अपना विवाह यहां संपन्न कराते हैं. अपना विवाह यहां संपन्न कराने वाले जोड़े हमेशा खुश रहते हैं और उनके सभी दोष भी दूर होते हैं. त्रियुगीनारायण को जब से वेडिंग डेस्टिनेशन का दर्जा मिला है, तब से यहां पौराणिक पहाड़ी रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह संपन्न कराये जा रहे हैं. विवाह में पहाड़ी पकवान, पहाड़ी रस्में आदि का प्रयोग किया जाता है. अब यहां विवाह के दौरान पहाड़ी मांगल गीत भी गाये जाते हैं.

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पारंपरिक मांगल गीतों की क्लास.

पढ़ें: यूं ही नहीं कोई बन जाता 'अपराजित' अपर्णा, जानें हौसलों की उड़ान की कहानी

विवाह के दौरान प्रयोग होने वाले मांगल गीतों को इन दिनों त्रियुगीनारायण गांव की महिलाओं को विशेष तौर पर सिखाया जा रहा है. ग्रामीण महिलाओं को मेहंदी, हल्दी हाथ, साथ फेरे, डोली विदाई आदि के समय गाये जाने वाले मांगल गीत सिखाये जा रहे हैं. इन मांगल गीतों को सीखने के बाद स्थानीय महिलाएं त्रियुगीनारायण मंदिर में होने वाली शादियों में गाएंगी. इससे ना केवल बाहर से आने वाले परिवार को शादी के दौरान होने वाले गीत संगीत उपलब्ध होगा बल्कि उनकी आजीविका का भी हिस्सा बनेगा.

Last Updated : Sep 10, 2020, 9:22 AM IST
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