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रुद्रप्रयाग के सौर भूतेर मंदिर में मिलती है मन की शांति, जानें क्या है मान्यता

प्रदेश के रुद्रप्रयाग जिले में विराजमान सौर भूतेर तीर्थ की महिमा का गुणगान जितनी की जाए, उतनी कम है. यहां पहुंचने पर भटके मन को अपार शांति मिलती है.

Devbhoomi uttarakhand
सौर भुतेर तीर्थ
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Published : Dec 4, 2020, 7:23 PM IST

रुद्रप्रयाग : उत्तराखंड के पग-पग पर विराजमान हर तीर्थ व घाटी की विशिष्ट पहचान युग युगान्तर से रही है, लेकिन केदारखंड के अन्तर्गत क्यूंजा घाटी के हिल स्टेशन भणज से लगभग चार किमी दूर अपार वन सम्पदा के मध्य विराजमान सौर भूतेर तीर्थ की महिमा का गुणगान जितनी की जाए, उतनी कम है. यहां पहुंचने पर भटके मन को अपार शांति मिलती है.

सौर भूतनाथ क्यूंजा घाटी के ग्रामीणों के कुल देवता, ईष्ट देवता व भूम्याल देवता के रूप में पूजित हैं. संस्कृत महाविद्यालय बसुकेदार के पूर्व प्रधानाचार्य जगदम्बा प्रसाद नौटियाल की पुस्तक श्री तुंगेश्वरयहात्यम के अनुसार यह स्थान भगवान तुंगनाथ की क्रीड़ा भूमि मानी गई है. इस भूमि से तुंगनाथ का अत्यधिक लगाव रहा है, जिन्होंने प्रसन्नता पूर्वक यह स्थान अपने प्रतिष्ठावान वीर भद्ररूप भूतनाथ को समर्पित किया है.

लोक मान्यताओं के अनुसार शंकराचार्य ने इस तीर्थ का नाम रखा. उस समय पर मार्कण्डेय नामक ऋषि ने सौरभूत की उस धरा पर आकर भगवान सूर्य की तप साधना की. वास्तव में सौर का शाब्दिक अर्थ कालवाचक है, जिसे सूर्य के एक उदय से दूसरे उदयकाल तक के समय को कहते हैं तथा दूसरा अर्थ सूर्य का उपासक अथवा भक्त कहा गया है. इससे पूर्ण प्रतीत होता है कि इस स्थान का नाम तब से सौर ही प्रचलित हुआ है.

भूतनाथ आवाज लगाकर लोगों को करते हैं सचेत

सौर भूतेर तीर्थ के निकट अखोडी गांव में आज भी यदि किसी प्रकार की अप्रिय घटना घटती है तो सौर भूतनाथ आवाज लगाकर ग्रामीणों को सचेत कर देते हैं. सौर भूतनाथ तीर्थ के ऊपरी हिस्से में विराजमान विशाल पर्वत पर तीन जलधाराएं प्रवाहित होने से उस स्थान को त्रिवेणी नाम से जाना जाता है. रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग से बांसवाडा हिल स्टेशन से बांसवाडा-मोहनखाल मोटर मार्ग पर भणज हिल स्टेशन तक बस, टैक्सी या निजी वाहन से पहुंचने के बाद सौर भुतेर तीर्थ पहुंचने के लिए मचकण्डी गांव होते हुए चार किमी की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है या फिर भणज-अखोडी चार किमी निजी वाहन से अखोडी गांव पहुंचने के बाद अखोडी गांव से तीन किमी दूरी तय करने बाद सौर भूतनाथ तीर्थ पहुंचा जा सकता है. पण्डित बच्ची राम नौटियाल, दिवाकर प्रसाद नौटियाल, आशुतोष प्रसाद नौटियाल, अरूण प्रसाद नौटियाल बताते हैं कि सौर भूतनाथ तीर्थ में हर श्रद्धालु को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.

ये भी पढ़ें : रुद्रप्रयाग के मुख्य बाजार में आवासीय भवन गिरा, लोगों ने भागकर बचाई जान

जिला पंचायत उपाध्यक्ष सुमन्त तिवारी, जिला पंचायत सदस्य कंडारा सुमन नेगी, जिला पंचायत सदस्य कालीमठ विनोद राणा बताते हैं कि सौर भूतनाथ तीर्थ प्रकृति की अनुपम छटा, विशाल वृक्ष, सघन वन, विस्तृत मैदान, वास्तविक तप भूमि का दृश्यालोकन करने से तीर्थ यात्री मंत्रमुग्ध हो जाता है. प्रधान अखोडी रेखा देवी, मचकण्डी मधु चौहान, भणज सुशुला देवी का कहना है कि सौर भूतनाथ तीर्थ में वर्ष भर धार्मिक अनुष्ठानों के आयोजन से क्यूंजा घाटी का वातावरण भक्तिमय बना रहता है.

ये भी पढ़ें : सपना की उम्मीदों को लगे पंख, यूजीसी नेट परीक्षा की पास

तुंगनाथ धाम के प्रबन्धक प्रकाश पुरोहित, सामाजिक कार्यकर्ता कुंवर सिंह नेगी, पूर्व प्रधान महेन्द्र सिंह रावत, पूर्व क्षेपस रश्मि नेगी का कहना है कि सौर भूतनाथ तीर्थ बरसात के समय रंग-बिरंगे पुष्पों से सुसज्जित रहता है. शिक्षाविद देवानन्द गैरोला, गौरव कठैत, बीरबल सिंह नेगी, बीरेंद्र सिंह नेगी का कहना है कि सौर भूतनाथ पहुंचने पर ऐसा आभास होता है कि यह भूभाग देव जगत के किसी सौन्दर्य प्रेमी का विहार स्थल हो. सौर भूतनाथ तीर्थ किसी युग में साहित्य सृजन और ईश्वर साधना की तप स्थली रही है, इसलिए इस तीर्थ में पहुंचने पर भटके मन को अपार शान्ति मिलती है.

रुद्रप्रयाग : उत्तराखंड के पग-पग पर विराजमान हर तीर्थ व घाटी की विशिष्ट पहचान युग युगान्तर से रही है, लेकिन केदारखंड के अन्तर्गत क्यूंजा घाटी के हिल स्टेशन भणज से लगभग चार किमी दूर अपार वन सम्पदा के मध्य विराजमान सौर भूतेर तीर्थ की महिमा का गुणगान जितनी की जाए, उतनी कम है. यहां पहुंचने पर भटके मन को अपार शांति मिलती है.

सौर भूतनाथ क्यूंजा घाटी के ग्रामीणों के कुल देवता, ईष्ट देवता व भूम्याल देवता के रूप में पूजित हैं. संस्कृत महाविद्यालय बसुकेदार के पूर्व प्रधानाचार्य जगदम्बा प्रसाद नौटियाल की पुस्तक श्री तुंगेश्वरयहात्यम के अनुसार यह स्थान भगवान तुंगनाथ की क्रीड़ा भूमि मानी गई है. इस भूमि से तुंगनाथ का अत्यधिक लगाव रहा है, जिन्होंने प्रसन्नता पूर्वक यह स्थान अपने प्रतिष्ठावान वीर भद्ररूप भूतनाथ को समर्पित किया है.

लोक मान्यताओं के अनुसार शंकराचार्य ने इस तीर्थ का नाम रखा. उस समय पर मार्कण्डेय नामक ऋषि ने सौरभूत की उस धरा पर आकर भगवान सूर्य की तप साधना की. वास्तव में सौर का शाब्दिक अर्थ कालवाचक है, जिसे सूर्य के एक उदय से दूसरे उदयकाल तक के समय को कहते हैं तथा दूसरा अर्थ सूर्य का उपासक अथवा भक्त कहा गया है. इससे पूर्ण प्रतीत होता है कि इस स्थान का नाम तब से सौर ही प्रचलित हुआ है.

भूतनाथ आवाज लगाकर लोगों को करते हैं सचेत

सौर भूतेर तीर्थ के निकट अखोडी गांव में आज भी यदि किसी प्रकार की अप्रिय घटना घटती है तो सौर भूतनाथ आवाज लगाकर ग्रामीणों को सचेत कर देते हैं. सौर भूतनाथ तीर्थ के ऊपरी हिस्से में विराजमान विशाल पर्वत पर तीन जलधाराएं प्रवाहित होने से उस स्थान को त्रिवेणी नाम से जाना जाता है. रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग से बांसवाडा हिल स्टेशन से बांसवाडा-मोहनखाल मोटर मार्ग पर भणज हिल स्टेशन तक बस, टैक्सी या निजी वाहन से पहुंचने के बाद सौर भुतेर तीर्थ पहुंचने के लिए मचकण्डी गांव होते हुए चार किमी की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है या फिर भणज-अखोडी चार किमी निजी वाहन से अखोडी गांव पहुंचने के बाद अखोडी गांव से तीन किमी दूरी तय करने बाद सौर भूतनाथ तीर्थ पहुंचा जा सकता है. पण्डित बच्ची राम नौटियाल, दिवाकर प्रसाद नौटियाल, आशुतोष प्रसाद नौटियाल, अरूण प्रसाद नौटियाल बताते हैं कि सौर भूतनाथ तीर्थ में हर श्रद्धालु को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.

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जिला पंचायत उपाध्यक्ष सुमन्त तिवारी, जिला पंचायत सदस्य कंडारा सुमन नेगी, जिला पंचायत सदस्य कालीमठ विनोद राणा बताते हैं कि सौर भूतनाथ तीर्थ प्रकृति की अनुपम छटा, विशाल वृक्ष, सघन वन, विस्तृत मैदान, वास्तविक तप भूमि का दृश्यालोकन करने से तीर्थ यात्री मंत्रमुग्ध हो जाता है. प्रधान अखोडी रेखा देवी, मचकण्डी मधु चौहान, भणज सुशुला देवी का कहना है कि सौर भूतनाथ तीर्थ में वर्ष भर धार्मिक अनुष्ठानों के आयोजन से क्यूंजा घाटी का वातावरण भक्तिमय बना रहता है.

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तुंगनाथ धाम के प्रबन्धक प्रकाश पुरोहित, सामाजिक कार्यकर्ता कुंवर सिंह नेगी, पूर्व प्रधान महेन्द्र सिंह रावत, पूर्व क्षेपस रश्मि नेगी का कहना है कि सौर भूतनाथ तीर्थ बरसात के समय रंग-बिरंगे पुष्पों से सुसज्जित रहता है. शिक्षाविद देवानन्द गैरोला, गौरव कठैत, बीरबल सिंह नेगी, बीरेंद्र सिंह नेगी का कहना है कि सौर भूतनाथ पहुंचने पर ऐसा आभास होता है कि यह भूभाग देव जगत के किसी सौन्दर्य प्रेमी का विहार स्थल हो. सौर भूतनाथ तीर्थ किसी युग में साहित्य सृजन और ईश्वर साधना की तप स्थली रही है, इसलिए इस तीर्थ में पहुंचने पर भटके मन को अपार शान्ति मिलती है.

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