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महाशिवरात्रि पर जानिए ऐसी मंदिर की कथा, यहां शादी करने वालों की संवर जाती है जिंदगी - trijuginarayan temple mythological history

आज हम महादेव के इस ऐतिहासिक मंदिर के बारे में जानेंगे. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां तीन युगों से अखंड ज्योति जल रही है.

त्रिजुगीनारायण मंदिर
त्रिजुगीनारायण मंदिर
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Published : Feb 20, 2020, 7:52 PM IST

Updated : Feb 20, 2020, 10:36 PM IST

देहरादूनः देवभूमि के कण-कण में भगवान शिव विराजते हैं. शिवरात्रि के मौके पर चारों ओर बम-बम भोले के जयकारे सुनाई देते हैं. सदाशिव भोलेनाथ से जुड़ी ऐसी ही एक पौराणिक कहानी, हम आप तक पहुंचा रहे हैं. क्या आपको पता है कि भगवान शिव और पार्वती की शादी का गवाह कौन सा पर्वत बना था? कौन सी वह भूमि थी, जहां पर शिव और पार्वती ने सात फेरे लिए थे?

आज हम महादेव के इस ऐतिहासिक मंदिर के बारे में जानेंगे. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां तीन युगों से अखंड ज्योति जल रही है. जिसके दर्शन मात्र से ही मानव को मोक्ष की प्राप्ति होती है. हम बात कर रहे हैं त्रियुगीनारायण मंदिर की.

त्रिजुगीनारायण मंदिर.

देवों के देव महादेव सनातन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में गिने जाते हैं. ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव देश दुनिया के हर कण-कण में विद्यमान हैं. यही वजह है कि महाशिवरात्रि का सनातन परंपराओं में एक विशेष महत्व है. केदारघाटी की तलहटी में स्थित पवित्र त्रियुगीनारायण मंदिर कई पौराणिक मान्यताओं को समेटे हुए है. इस मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है.

तीन युगों से जल रही है अखंड ज्योति

रुद्रप्रयाग जिले में स्थित त्रियुगीनारायण मंदिर में शिव और पार्वती का पाणिंग्रहण संस्कार भगवान नारायण की उपस्थिति में हुआ था. मंदिर में शादी की साक्षी रही अग्नि तीन युगों से प्रज्वल्लित है. कहते हैं कि भगवान शिव ने माता पार्वती से इसी ज्योति के समक्ष विवाह के फेरे लिए थे. मंदिर में स्थित हवन कुंड की अग्नि में घृत, जौ, तिल और काष्ठ अर्पित किया जाता है. यहां की भस्म बहुत पवित्र मानी जाती है. मान्यता है कि इस मंदिर के हवन कुण्ड की राख भक्तों के वैवाहिक जीवन को सुखी रहने का आशीर्वाद देती है.

पढ़ेंः उत्तरकाशी में मौजूद है बाबा काशी विश्वनाथ का मंदिर, यहां 'त्रिशूल रूप' में विराजमान हैं मां दुर्गा

भगवान शिव-पार्वती का शुभ विवाह

केदारघाटी की तलहटी में स्थित शिव-पार्वती का विवाह त्रियुगीनारायण गांव में संपन्न हुआ था. विवाह में भाई की सभी रस्में भगवान विष्णु ने निभाई थी. जबकि पंडित की रस्में स्वयं भगवान ब्रह्माजी ने पूरी की थी. यही नहीं विवाह में महान तपस्वी के रूप में ऋषि-महर्षि भी शामिल हुए थे. यही नहीं मंदिर में जिस जगह शिव पार्वती की शादी हुई थी, मन्दिर में वो स्थान आज भी मौजूद है. विवाह स्थल के नियत स्थान को ब्रह्म शिला कहा जाता है.

तीन कुंडों में देवताओं ने किया था स्नान

शिव और पार्वती के विवाह में शामिल होने पहुंचे देवी देवताओं ने विवाह समारोह में शामिल होने से पहले कुंड में स्नान किया था. मान्यता है कि सभी देवी देवताओं के स्नान के लिए तीन कुंड बनाये गए थे. जिन्हे रुद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्म कुंड कहा जाता है. हालांकि इन तीनों कुंडों में जल, सरस्वती कुंड से आता है. मान्यता है कि सरस्वती कुंड का निर्माण विष्णु की नासिका (नाभि) से हुआ था. ये कुंड आज भी त्रिजुगीनारायण मंदिर के समीप देखा जा सकता है. इन कुंड से जुड़ी मान्यता है कि यहां स्नान से संतानहीनता से मुक्ति मिल जाती है.

पढ़ेंः काठमांडू में पशुपतिनाथ धाम पहुंचे भक्त, तस्वीरों में देखिए महाशिवरात्रि का रंग

केदारनाथ और बदरीनाथ से एक युग पहले है त्रिजुगीनारायण मंदिर

पौराणिक ग्रंथों में ऐसी मान्यता है कि त्रियुगीनारायण मंदिर की स्थापना केदारनाथ और बदरीनाथ धाम से भी पहले की है. वेदों के अनुसार, त्रियुगीनारायण मंदिर की स्थापना त्रेता युग में हुई थी. इस स्थान पर भगवान विष्णु ने वामन देवता का अवतार लिया था. जबकि केदारनाथ व बदरीनाथ द्वापरयुग में स्थापित हुए.

देहरादूनः देवभूमि के कण-कण में भगवान शिव विराजते हैं. शिवरात्रि के मौके पर चारों ओर बम-बम भोले के जयकारे सुनाई देते हैं. सदाशिव भोलेनाथ से जुड़ी ऐसी ही एक पौराणिक कहानी, हम आप तक पहुंचा रहे हैं. क्या आपको पता है कि भगवान शिव और पार्वती की शादी का गवाह कौन सा पर्वत बना था? कौन सी वह भूमि थी, जहां पर शिव और पार्वती ने सात फेरे लिए थे?

आज हम महादेव के इस ऐतिहासिक मंदिर के बारे में जानेंगे. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां तीन युगों से अखंड ज्योति जल रही है. जिसके दर्शन मात्र से ही मानव को मोक्ष की प्राप्ति होती है. हम बात कर रहे हैं त्रियुगीनारायण मंदिर की.

त्रिजुगीनारायण मंदिर.

देवों के देव महादेव सनातन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में गिने जाते हैं. ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव देश दुनिया के हर कण-कण में विद्यमान हैं. यही वजह है कि महाशिवरात्रि का सनातन परंपराओं में एक विशेष महत्व है. केदारघाटी की तलहटी में स्थित पवित्र त्रियुगीनारायण मंदिर कई पौराणिक मान्यताओं को समेटे हुए है. इस मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है.

तीन युगों से जल रही है अखंड ज्योति

रुद्रप्रयाग जिले में स्थित त्रियुगीनारायण मंदिर में शिव और पार्वती का पाणिंग्रहण संस्कार भगवान नारायण की उपस्थिति में हुआ था. मंदिर में शादी की साक्षी रही अग्नि तीन युगों से प्रज्वल्लित है. कहते हैं कि भगवान शिव ने माता पार्वती से इसी ज्योति के समक्ष विवाह के फेरे लिए थे. मंदिर में स्थित हवन कुंड की अग्नि में घृत, जौ, तिल और काष्ठ अर्पित किया जाता है. यहां की भस्म बहुत पवित्र मानी जाती है. मान्यता है कि इस मंदिर के हवन कुण्ड की राख भक्तों के वैवाहिक जीवन को सुखी रहने का आशीर्वाद देती है.

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भगवान शिव-पार्वती का शुभ विवाह

केदारघाटी की तलहटी में स्थित शिव-पार्वती का विवाह त्रियुगीनारायण गांव में संपन्न हुआ था. विवाह में भाई की सभी रस्में भगवान विष्णु ने निभाई थी. जबकि पंडित की रस्में स्वयं भगवान ब्रह्माजी ने पूरी की थी. यही नहीं विवाह में महान तपस्वी के रूप में ऋषि-महर्षि भी शामिल हुए थे. यही नहीं मंदिर में जिस जगह शिव पार्वती की शादी हुई थी, मन्दिर में वो स्थान आज भी मौजूद है. विवाह स्थल के नियत स्थान को ब्रह्म शिला कहा जाता है.

तीन कुंडों में देवताओं ने किया था स्नान

शिव और पार्वती के विवाह में शामिल होने पहुंचे देवी देवताओं ने विवाह समारोह में शामिल होने से पहले कुंड में स्नान किया था. मान्यता है कि सभी देवी देवताओं के स्नान के लिए तीन कुंड बनाये गए थे. जिन्हे रुद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्म कुंड कहा जाता है. हालांकि इन तीनों कुंडों में जल, सरस्वती कुंड से आता है. मान्यता है कि सरस्वती कुंड का निर्माण विष्णु की नासिका (नाभि) से हुआ था. ये कुंड आज भी त्रिजुगीनारायण मंदिर के समीप देखा जा सकता है. इन कुंड से जुड़ी मान्यता है कि यहां स्नान से संतानहीनता से मुक्ति मिल जाती है.

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केदारनाथ और बदरीनाथ से एक युग पहले है त्रिजुगीनारायण मंदिर

पौराणिक ग्रंथों में ऐसी मान्यता है कि त्रियुगीनारायण मंदिर की स्थापना केदारनाथ और बदरीनाथ धाम से भी पहले की है. वेदों के अनुसार, त्रियुगीनारायण मंदिर की स्थापना त्रेता युग में हुई थी. इस स्थान पर भगवान विष्णु ने वामन देवता का अवतार लिया था. जबकि केदारनाथ व बदरीनाथ द्वापरयुग में स्थापित हुए.

Last Updated : Feb 20, 2020, 10:36 PM IST
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